शिमला। प्रीमियम अपफ्रंट के 260 करोड़ वापस करने के लिए प्रदेश हाईकोर्ट में अदानी पावर की ओर से वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए अपना पक्ष रखने के लिए दायर अर्जी पर सुनवाई करते हुए प्रदेश हाईकोर्ट ने एक सितंबर को सुनवाई निर्धारित की है।
अदानी पावर की ओर से प्रदेश हाईकोर्ट में अर्जी दायर की गई थी कोरोना महामारी के कारण उनके प्रतिनिधियों की ओर से प्रदेश हाईकोर्ट में सुनवाई के लिए मौजूद रहना संभव नहीं है। ऐसे में उन्हें वीडियोकांफ्रेंसिंग के जरिए arguments करने की इजाजत दी जाए।
मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति लिंगप्पा नारायण स्वामी और न्यायमूर्ति अनूप चितकारा ने अदाणी पावर की अर्जी पर पांच अगस्त को सुनवाई करते हुए इस मामले को एक सितंबर को नियमित अदालत में सुनवाई निर्धारित किया है।
अदाणी पावर की ओर से 2019 के शुरू में अपफ्रंट मनी की ये बड़ी रकम लौटाने को लेकर प्रदेश हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की थी। अदाणी पावर ने अपनी याचिका में कहा गया है कि 2008 में जिला किन्नौर में स्थित 960 मेगावाट की छह से नौ हजार करोड़ जंगी थोपन पन बिजली परियोजना जो नीदरलैंड की कंपनी ब्रेकल एनवी को आवंटित की गई थी उसकी ओर से अपफ्रंट मनी के 280 करोड़ रुपए अदाणी पावर ने जमा कराए थे।
इस मामले में जयराम ठाकुर मंत्रिमंडल पहले ही फैसला कर चुका है कि ये परियोजना ब्रेकल कारपोरेशन को आवंटित की गई थी व अप फ्रंट मनी भी उसी ने जमा कराया था। ऐसे में सरकार का अदाणी पावर से कोई लेना देना है। अदाणी पावर को कोई रकम नहीं लौटाई जाएगी।
याद रहे इस अपफ्रंट मनी को सरकार ने निविदा की शर्तों के मुताबिक जब्त कर लिया था। 2007 व2008 में जब अंबाणी इंफ्रास्ट्रक्चर की याचिका पर प्रदेश हाईकोर्ट ने ब्रेकल को अपफ्रंट मनी जमा कराने के नोटिस भेजे थे तो ब्रेकल की ओर से अदाणी पावर ने ये 280 करोड़ की रकम जमा कराई थी। इसमें 20 करोड़ जुर्माना भी था।लेकिन अदाणी पावर ब्रेकल एनवी के साथ कंसोरटियम में शामिल नहीं था।सरकार ने इसे कभी भी कंसोरटियम मंजूर नहीं किया था।
पूर्व की वीरभद्र सिंह सरकार में फर्जी कागजातों के आधार पर हजारों करोड़ रुपए की इस परियोजना को हासिल करने के लिए जयराम सरकार ने ब्रेकल के खिलाफ एफआइआर दर्ज कर रखी है जिसकी जांच कछुआ चाल से चल रही है। हालांकि इको लेकर प्रारंभिक जांच पूर्व की धूमल सरकार में शुरू हो गई थी वतब विजीलेंस ने इस मामले में नियमित एफआइआर दर्ज करने की तत्कालीन सरकार से मंजूरी मांगी थी। लेकिन मामला अदालतों में था तो अधिकारियों ने फाइल पर लिख दिया कि जब तक ये मामला अदालतों से बाहर नहीं आ जाता तब तक एफआइआर दर्ज न की जाए। सुप्रीम कोर्ट से ये मामला 2016 में तब बाहर निकला जब अंबाणी इंफ्रास्ट्रक्चर ने अपनी याचिका वापस ले ली। इससे पहले अगस्त -सितंबर 2015 में तत्कालीन वीरभद्र सिंह सरकार ने इस छह हजार करोड़ की परियोजना को 2007 की दरों पर अंबाणी को आवंटित कर दिया था।
इसके बाद विजीलेंस ने फिर से सरकार को चिटिठयां लिखनी शुरू कर दी कि उसे ब्रेकल के खिलाफ नियमित एफआइआर दर्जकरने की इजाजत दे दी जाए।लेकिन 2016से लेकर 2018 तक ये मामलों बाबूओं के चक्रव्यूह में फंसा रहा व जयराम सरकार में 2018 के आखिर में ब्रेकल के खिलाफ नियमित एफआइआर दर्ज की गई।
जानकारी के मुताबिक इस जांच को सिरे चढ़ाने के लिए इन दिनों प्रदेश काडर के भारत सरकार में सचिव के पद पर रहे एक सेवानिवृत आइएएस अधिकारी भी अपनी भूमिका निभा रहे है। लेकिन जयराम सरकार की विजीलेंस अभी तक ये पता नहीं लगा पाई है कि ब्रेकल ने आज तक दुनिया के किस हिस्से में कितने यूनिट बिजली पैदा की है और ब्रेकल को किसने खड़ा किया था।
2009 में प्रदेश हाईकोर्ट ने अंबाणी इंफ्रास्ट्रक्चर की याचिका पर इस आवंटन को रदद कर दिया था। इसके बाद अंबाणी व ब्रेकल दोनों सुप्रीम कोर्ट चले गए थे। इस बीच अदाणी पावर ने भी सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल की थी जिसे बाद में उसने वापस ले लिया।उसके बाद ब्रेकल ने भी अपनी याचिका वापस ले ली।
जब पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह पर सीबीआइ शिकंजा कसा हुआ था उस समय वीरभद्र सिंह सरकार ने इस परियोजना को अंबाणी इंफ्रासट्रक्चर को आवंटित कर दिया था। इस बीच वीरभद्रसिंह के आवास हालीलाज पर सीबीआई छापेमारी हो गई ।2016-17 में अंबाणी ने इस परियोजना को लेने से इंकार कर दिया। लेकिन 2019 में अदाणी ने अपनी अपफ्रंट मनी की रकम वापस लेने के लिए याचिका दाखिल कर रखी है।
इस मामले में भी जयराम सरकार में गलफत हो चुकी है। हाईकोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति सूर्यकांत की खंडपीठ के सामने जब सुनवाई के लिए ये मामला आया तो उन्होंने आदेश दिया कि महाधिवक्ता ने आग्रह किया है कि इस मामले को सरकार मंत्रिमंडल में ले जाना चाहती है। इस आग्रह पर अदालत आदेश देती है कि इस मामले को मंत्रिमंडल में ले जाया जाए।ये आदेश सामने आने के बाद तत्कालीन प्रधान सचिव बिजली प्रबोध सक्सेना ने मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर को ये फाइल भेजी जिसमें लिखा कि महाधिवक्ता को उनहोंने इस मामले को मंत्रिमंडल में ले जाने के बारे में कोई हिदायत नहीं दी थी।अगर उन्होंने ऐसा कुछ आदेश दिया है तो वह इसके आगे क्या करना है ये बताएं। जब ये फाइल उनके पास गई थी तो तत्कालीन बिजली मंत्री अनिल शर्मा इस्तीफा दे चुके थे व बिजली महकमा जयराम के पास आ गया था। इस फाइल पर मुख्यमंत्री ने कुछ भी नहीं लिखा व मंत्रिमंडल में अपफ्रंट मनी के मामले पर विचार कर इस रकम को लौटाने से इंकार कर दिया। फाइल बिना टिप्पणी के सक्सेना के पास आ गई थी। रकम न देने का फैसला वीरभद्र सरकार ऐसा पहले ही कर चुकी थी। यह दीगर है कि वीरभद्र सरकार पहले ये इस रकम को लौटाने का फैसला कर चुकी थी इस बावत अदाणी पावर को चिटठी भी लिख चुकी थी। लेकिन 2017के विधानसभा चुनावों को लेकर जब आचार संहिता लग गई थी तो वीरभद्र सरकार ने इस फैसले को वापस ले लिया था।
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