शिमला/।भाजयुमो के राष्ट्रीय अध्यक्ष और हमीरपुर से भाजपा सांसद अनुराग ठाकुर की एचपीसीए के नाम से धर्मशाला में निर्मित क्रिकेट स्टेडियम और होटल पेवेलियन समेत एचपीसीए को प्रदेश में दी गई विलेज कॉमन लैंड को वापस लेने का इंतजाम हो गया है।
जमीन वापस लेने के अलावा एचपीसीए के सर्वेसेवा अनुराग ठाकुर,धूमल सरकार में प्रधान सचिव रेवन्यू रहे दीपक सानन,वीरभद्र सिंह के निजी प्रधान सचिव वीसी फारखा,तत्कालीन डीसी कांगड़ा आर एस गुप्ता पर भी गाज गिरती नजर आ रही है।
अगर वीरभद्र सिंह सरकार इस मामले में कुछ नहीं करती है तो खुद वीरभद्र सिंह उनके चीफ सेक्रेटरी एस राय व बाकी तमाम संबंधित लाडले अफसरों का कानूनी तौर पर बचना मुश्किल है।
उधर, इस मामले की कानूनी पेचिदगियों की गंभीरता को देखते हुए तमाम दबावों के बावजूद प्रदेश के लॉ विभाग के अफसरों ने अपनी जान बचाते हुए धर्मशाला में एचपीसीए को दी जमीन को वापस लेने की राय सरकार को दे दी है। सरकार ने लॉ विभाग से इस मामले में राय मांगी थी। इस राय के आ जाने के बाद सरकार के विभिन्न अफसरों को कार्रवाई के निर्देश किए जाने थे लेकिन सीएम ऑफिस से जुड़े सूत्रों के मुताबिक कार्रवाई के निर्देश वाली फाइल सीएम वीरभद्र सिंह के टेबल से उठ गई है। मामला बेहद दिलचस्प बना हुआ है। इस फाइल में सुप्रीम कोर्ट की जजमेंट का हवाला दिया गया है और सुप्रीम कोर्ट के क्ंटेंप्ट से बचने के लिए क्या किया जा सकता है इसका फार्मूला सुझाया गया है।
मामले में ये सब गंभीरता प्रदेश सरकार व उसके अफसरों की कारगुजारियों का नतीजा कतई नहीं है।बल्कि ये गंभीरता सुप्रीम कोर्ट की विलेज कॉमन लैंड के संदर्भ में दी गई जजमेंट की रोशनाई से पैदा हुई है।
मामले की संगीनता अब इसलिए और बढ गई है कि इस मामले में सत्ता में आने के बाद वीरभद्र सिंह सरकार ने तत्कालीन प्रधान सचिव रेवन्यू दीपक सानन और तत्कालीन डीसी कांगड़ा आर एस गुप्ता को चार्जशीट किया था। इन दोनों ही अफसरों ने सरकार को भेजे जवाब में ये स्वीकार कर लिया है कि उन्होंने जो भी कुछ किया है वो करने के लिए वो अधिकृत थे।
सरकार के पास अब इन अफसरों के खिलाफ कार्रवाई करने के अलावा कोई और विकल्प नहीं बचा है। कार्रवाई न होने की स्थिति में सरकार के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट के आदेशों की अवहेलना करने पर कंटेंप्ट करने की पूरी तैयारी हो चुकी है। चूंकि ये सारा मामला सीएम वीरभद्र सिंह और चीफ सेक्रेटरी एस राय के नोटिस में है। कंटेंप्ट से वो कैसे बचेंगे ये उन्हें ही तय करना है। मामला पहले ही धर्मशाला की अदालत में है। न्यायिक अधिकारी ने इस मामने में 156/3की अर्जी में 202 के तहत कुछ कार्यवाही भी शुरू की है। अदालत को इस मामले में कई कुछ तय करना है।
सुप्रीम कोर्ट ने जो जजमेंट विलेज कॉमन लैंड को लेकर दी है उसे उसी समय सारे प्रदेशों के मुख्य सचिवों को भेज दिया था व अनुपालना रिपोर्ट भी मांगी थी। ऐसे में चीफ सेक्रेटरी एस राय के पास तो ज्यादा विकल्प है ही नहीं।सुप्रीम कोर्ट के आदेशों को तो न सीएम बदल सकते है और न हीं उनकी कैबिनेट।
सुप्रीम कोर्ट की ओर से विलेज कॉमन लैंड को लेकर दी गई महत्वपूर्ण जजमेंट का आप्रेटिव पार्ट ये है-:
The letter dated 26.9.2007 Government of Punjab permitting regularization of possession of these unauthorized occupants is not valid. We are of the opinion that such letters are wholly illegal and without jurisdiction. In our opinion such illegalities cannot be regularized. We cannot allow the common interest of the villagers to suffer merely because the unauthorized has subsisted for many years. 15. In many states Government orders have been issued by the State Government permitting allotment of Gram Sabha land to private persons and commercial enterprises on payment of some money. In our opinion all such Government orders are illegal, and should be ignored. 22. Before parting with this case we give directions to all the State Governments in the country that they should prepare schemes for eviction of illegal/unauthorized occupants of Gram Sabha/Gram Panchayat/Poramboke/Shamlat land and these must be restored to the Gram Sabha/Gram Panchayat for the common use of villagers of the village. For this purpose the Chief Secretaries of all State Governments/Union Territories in India are directed to do the needful, taking the help of other senior officers of the Governments. The said scheme should provide for the speedy eviction of such illegal occupant, after giving him a show cause notice and a brief hearing. Long duration of such illegal occupation or huge expenditure in making constructions thereon or political connections must not be treated as a justification for condoning this illegal act or for regularizing the illegal possession. Regularization should only be permitted in exceptional cases e.g. where lease has been granted under some Government notification to landless labourers or members of Scheduled Castes/Scheduled Tribes, or where there is already a school, dispensary or other public utility on the land. 23. Let a copy of this order be sent to all Chief Secretaries of all States and Union Territories in India who will ensure strict and prompt compliance of this order and submit compliance reports to this Court from time to time. 24. Although we have dismissed this appeal, it shall be listed before this Court from time to time (on dates fixed by us), so that we can monitor implementation of our directions herein. List again before us on 3.5.2011 on which date all Chief Secretaries in India will submit their reports.
इस जजमेंट की रोशनाई में वीरभद्र सिंह सरकार व उनके लाडले प्रशासनिक,पुलिस व दूसरे अफसरों के पास सुप्रीम कोर्ट की जजमेंट की अनुपालना के अलावा कोई रास्ता नहीं बचा है। अनुराग ठाकुर खुद सांसद है।उनके पिता प्रेम कुमार धूमल विधानसभा में विपक्ष के नेता है वो हिमाचल के दो बार सीएम रह चुके है। संसद सदस्य भी रह चुके है। उन्हीं की सीएमशिप के समय क्रिकेट को लेकर कई खेल हुए है। पर सुप्रीम कोर्ट की जजमेंट में साफ लिखा है कि Long duration of such illegal occupation or huge expenditure in making constructions thereon or political connections must not be treated as a justification for condoning this illegal act or for regularizing the illegal possession.
विलेज कामन लैण्ड के बारे में सर्वोच्च न्यायालय का 28 जनवरी 2011 का ये फैसला सामनें है। जगपाल सिंह व अन्य बनाम स्टेट आफॅ पंजाब अन्य के मामले में न्यामूर्ति मारकण्डेय काटजु और न्यायमूर्ति ज्ञान सुधा मिश्रा की पीठ ने विलेज कामन लैण्ड को किसी भी तरह की लीज पर देने पर पूर्ण प्रतिबन्ध् लगा दिया है। ऐसी जमीन पर गांव के लिये स्कूल या अस्पताल आदि का तो निमार्ण किया जा सकता है। या अनुसूचित जाति के किसी भूमिहीन को तो विशेष परिस्थितियों में इसमें से ज़मीन दी जा सकती है लेकिन और किसी उद्देश्य के लिये नही।
सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट कहा है कि अदालत के इस फैसले से पहले यदि किसी भी राज्य सरकार ने किसी भी कानून/नियम/आदेश के तहत ऐसा कुछ किया है तो वह सब गैर कानूनी है और उसे वापिस लेने की प्रक्रिया तुरन्त शुरू की जाये। सर्वोच्च न्यायालय ने इस फैसले की प्रतियां सभी राज्य सरकारों को भेजी हैं और राज्यों के मुख्य सचिवों को इसके तहत तुरन्त कारवाई करने और की गयी कारवाई की रिपोर्ट सर्वोच्च न्यायालय में समय पर रखने के निर्देश दिये हैं। फैसले के निर्देश इस प्रकार हैं- सर्वोच्च न्यायालय के फैसले की अनुपालना सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी पूरे तन्त्र पर आ जाती है।
28 जनवरी 2011 को आये इस फैसले पर हिमाचल सरकार ने अभी तक कोई प्रभावी कारवाई अमल में नही लायी है। बल्कि इस फैसले के बाद लीज नियम बदलने और एच पी सी ए को वाणिज्यिक उपयोग की अनुमति देने से सर्वोच्च न्यायालय के फैसले की एक तरह से अवमानना ही की है।
सेक्स, ड्रग्स व सटटेबाजी का पर्याय बन चुके क्रिकेट खेल को प्रदेश में बढ़ावा देने के लिए पूर्व की धूमल सरकार ने मोदी मार्का प्रोपेगेंडा का पूरा सहारा लेते हुए खेल स्टेडियम व होटलों का निर्माण कराया था। लेकिन इसके लिए जो जमीन ली गई वो विलेज कॉमन लैंड का हिस्सा थी।
हिमाचल प्रदेश क्रिकेट संघ को धर्मशाला में दी गयी 43 बीघे जमीन विलेज कॉमन येरेवन्यू के दस्तावेजों से साबित हो गया है।धर्मशाला में क्रिकेट संघ को जमीन प्रदेश के युवा सेवाएं और खेल विभाग की सिफारिश और उसके माध्यम से दी गयी है। जब ये जमीन एचपीसीए को दी गई थी उस समय खेल विभाग के प्रधान सचिव मौजूदा समय में वीरभद्र सिंह के निजी प्रधान सचिव वीसी फारखा थे।
एच पी सी ए ने इस जमीन के लिये खेल विभाग को आवेदन किया था। खेल विभाग की सिफारिश पर राजस्व विभाग से होकर केबिनेट के पास यह मामला गया। केबिनेट ने 24-10-2009 को अपनी बैठक में इसे स्वीकृत प्रदान की और उसके बाद जिला प्रशासन ने इसकी लीज एच पी सी ए के साथ साइन की। दिसम्बर 2011 में क्रिकेट संघ ने इसके वाणिज्यिक उपयोग की अनुमति के लिये आवेदन किया और मार्च 2012 में यह आवेदन स्वीकार कर लिया गया। लेकिन इस बार अधिकारियों ने मामले को केबिनेट के सामने नही रखा। इसके लिये राजस्व विभाग ने यह तर्क लिया है कि 2011 में लीज नियम बदल दिये गये थे और बदले नियमों के तहत प्रधन सचिव को ही यह फैसला लेने का हक हासिल था। लेकिन यहां पर यह स्मरणीय है कि लीज नियम भी केबिनेट के फैसले के बिना ही प्रधान सचिव के स्तर पर ही बदल दिये गये थे। जबकि बदले गये नियमों में तो लीज फीस 18प्रतिशत से घटाकर 3प्रतिशत की दी गयी थी। इस फैसले का तो सीधा प्रभाव सरकारी खजाने पर पड़ा है व सैंकड़ों करोड़ का नुकसान सरकार को हुआ है। वीरभद्र सरकार ने आते ही इस फैसले को बदल भी दिया है।
क्रिकेट संघ का पंजीकरण सहकारिता अधिनियम और कंपनी अधिनियमदोनो में एक साथ और एक ही पते पर रहा है। दोनो के संचालक भी एक ही रहे हैं। संघ के कंपनी में विलय के बाद संघ के नाम पर ही वाणिज्यिक उपयोग की अनुमति मांगी गई। भू अधिनियम की धरा 118 के तहत वांछित अनुमति न तो संघ और नही कंपनी के पास है। ये दस्तावेजों में दर्ज हैं।
एच पी सी ए में हुई ऐसी सारी धांधलियोंको लेकर 2012 को धर्मशाला के एक जितेन्द्र कुमार ने वाकायदा विजिलेंस को एक शिकायत सौंपी थी जिस पर कोई कारवाई नही हुई। अब कांगड़ा के एक वकील विनय शर्मा ने भी विजिलेंस को शिकायत सौंपी। विजिलेंस ने इस शिकायत को भी नजर अन्दाज कर दिया। विनय शर्मा ने विशेष जज र्ध्मशाला की अदालत में 156/3सी आर पी सी के तहत मामला दायर कर दिया। इसमें प्रेम कुमार धूमल, ठाकुर गुलाब सिंह, अनुराग ठाकुर, दीपक सानन, आर.एस गुप्ता को सीधे नाम से और मुख्य मंत्री वीरभद्र सिंह के प्रधान सचिव वीसी फारखाको बाइ नेम पार्टी बनाया गया क्योंकि फारखा के पास उस समय भी व आज भी युवा सेवाएं और खेल विभाग की जिम्मेदारी है। लेकिन विशेष जज ने इस मामले में 156/3की बजाय 202 सी आर पी सी के तहत जांच के आदेश देते हुए 28 अक्तूबर को जांच रिपोर्ट तलब की है।
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