शिमला। बाबा विश्वनाथ की नगरी बनारस की विजयलक्ष्मी दीपक मेर की कलाकृतियां बनारस के रामपुरा मोहल्ले से लेकर आस्ट्रेलिया तक पहुंच बना चुकी है। बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से 1985 में फाइन आर्टस में स्नातक की पढ़ाई कर विजयलक्ष्मी ने कभी फिर पीछे मुड़ कर नहीं देखा।
गेयटी थियेटर में विजयलक्ष्मी दीपक मेर की कलाकृतियों की प्रदर्शनी में 22 कलाकृतियां दर्शकों को लुभा रही हैं। रोटरिंग पेन से की गई महीन कारीगरी यानी ड्राइंग बेहतर बनी है। यहां पर इन कलाकृतियों में उनकी मेहनत सब कुछ बयां कर रही हैं। कला का ये अलग अंदाज़ राजधानी शिमला में लगने वाली प्रदर्शनियों में कम ही देखा गया हैं। उनकी इन कलाकृतियों में महिलाओं की सुंदर केश सज्जा निखरी है पहनावे का अलग अंदाज़ भी उभरा हैं। विजयलक्ष्मी कहती भी है कि ये बेहद महीन काम है और इसमें समय भी ज्यादा लगता हैं।
रोटरिंग पेन ही नहीं उनकी ऐक्रेलिक रंगों से बनी कलाकृतियां भी बेहद लुभावनी हैं।
1985 में बनारस हिंदू विवि से फाइन आर्टस में स्नातक करने के बाद बनारस के रामपुरा मोहल्ले की विजयलक्ष्मी का दीपक मेर से विवाह हो गया। दीपक मेर भी रंगों से रचनाएं रचने में माहिर थे।
दोनों ने कूची और रंगों से अपनी कलाकृतियों को रंगों से सजाने का काम मुबंई में शुरू किया और जगह-जगह कला दीर्घाओं में अपने कलाकृतियों की नुमाया किया।
दिल्ली की मशहूर बीकानेर हाउस आर्ट गैजरी और मुबंई की जहांगीर आर्ट गैलरी की ओर से दिल्ली की कला-दीर्घाओं में विजयलक्ष्मी की सामूहिक प्रदर्शनियों में सजी कलाकृतियों में उनकी कला का हुनर कला प्रेमी देख चुके हैं। मशहूर जहांगीर कला दीर्घा की ओर से दिल्ली में अब उनकी एकल प्रदर्शनी लगने वाली हैं। वह कहती भी है कि जहांगीर कला दीर्घा में किसी भी कलाकार की कलाकृतियों की प्रदर्शनी लगना छोटी बात नहीं हैं।
करीब 40 सालों से कूची और रंगों से कैनवास पर संवाद करती विजयलक्ष्मी की गेयटी थियेटर में सजी गणपति,लक्ष्मी और घोड़ों की कलाकृतियां आकर्षक बन पड़ी हैं। समाधिस्थ बुद्ध की तैलीय रंगों से उनके हाथों से कैनवास पर उतरी कलाकृति अच्छी बन पड़ी हैं। जबकि ऐक्रेलिक रंगों से घोड़ों और गणपति की बनावट उनके कूची पर नियंत्रण और सधे स्ट्रोक्स की छाप अनायास ही छोड़ देते हैं। इसी तरह रानी झांसी की कृति भी लुभावनी बनी हैं।
विजयलक्ष्मी कहती है कि पेटिंग्स बनाना उन्होंने एक तरह से अपनी मां शारदा वर्मा से ही सीखा। ये काम बचपन में ही शुरू हो गया था। चूंकि स्कूल से जब ड्रांइग का काम मिलता था तो उनकी मां ही स्कूल का होमवर्क कराने में उनकी मदद करती थी। पेंटिंग्स के प्रति उनका रूझान वहीं से आगे बढ़ा। जब वो सेंट्रल हिंदू गर्ल्स स्कूल बनारस की छात्रा थी तो एक कला मुकाबले में उन्हें अवार्ड मिला। ये उनके लिए प्रेरणा बना।
इसके अलावा 2019 में भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय से उन्हें दो साल की सीनियर फेलोशिप मिली। वो इसे अब तक का सबसे बड़ा अवार्ड मानती हैं। वह कहती है ये फेलोशिप दो साल की थी व उन्होंने अपनी कलाकृतियों में धातू और जूट के इस्तेमाल को जगह दी। ये अलग तरह का प्रयोग था। संभवत: आने वाले कलाकार इस तरह के प्रयोग करे।
वो कहती है कि उनकी अब तक सबसे महंगी कलाकृतियां चार लाख की बिकी थी जिन्हें खरीदने वाला आस्टेलिया से था। तैल रंगों में इंडिया और बनारस के थीम पर बनी इन तीन कलाकृतियों को चार लाख में खरीदा गया था। इस तरह बनारस के रामपुर मोहल्ले से उभरी एक कलाकार की कृतियां ऑस्ट्रलिया तक भी पहुंच गई।
वो कहती है कि जब वो बनारस हिंदू विवि से फाइन आर्ट में स्नातक की पढ़ाई कर रही थी तो उनकी पहली पेंटिंग्स तीस रुपए में बिकी थी। ये मां लक्ष्मी की तैल रंगों से बनी कृति थी। कला से ये तीस रुपए उनकी पहली कमाई थी। तभी से उन्हें लगा कि कला के सहारे भी वो अपनी दुनिया चला सकती हैं और तभी से वो कला के सहारे अपनी जिंदगी को आगे बढ़ाए हुए हैं। वो देश भर की कला दीर्घाओं में अब तक सैंकड़ों प्रदर्शनियों में अपनी कलाकृतियों से कला प्रेमयिों को लुभा चुकी हैं।
विजयलक्ष्मी की कलाकृतियों के साथ ही इस प्रदर्शनी में सोलन के होनहार व युवा चित्रकार बलदेव पंवर की बेमिसाल कृतियां भी सजी हैं। ये प्रदर्शनी 21 अप्रैल तक ही कला प्रेमियों के लिए हैं।
बलदेव पंवर की कलाकृतियों पर रपट अलग से ।
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