शिमला।निष्ठाओं व नैतिकता के पैमानों को सर्वोपरि रखने वाले मीडिया जगत के लिए धर्मशाला से बेहद अपमानजनक और निराशा भरी खबर आ रही है। प्रदेश विजीलेंस ने धर्मशाला में कार्यरत दो पत्रकारों को रिश्वत और उगाही के इल्जामों में गिरफतार किया हैं। हिमाचल में ऐसा कम ही होता हैं।
विजीलेंस ने खबर आज तक चैनल के पत्रकार मृत्युजंय और अजब-गजब न्यूज चैनल के पत्रकार राकेश भारदवाज को पच्चीस-पच्चीस हजार की नगदी व पच्चीस–पच्चीस हजार रुपए के चेक के साथ गिरफतार किया हैं। इन दोनों को स्कूल से रंगे हाथ पकड़ा गया है।
इन दोनों पत्रकारों के खिलाफ धर्मशाला विजीलेंस ने भारतीय दंड संहिता की धारा 308(2) और धारा 3(5) के तहत मामला दर्ज किया हैं।
विजीलेंस मुख्यालय में विभाग के प्रवक्ता अमित कुमार के हवाले से जारी प्रेस विज्ञप्ति पर भरोसा करे तो इन दोनों ने एक निजी स्कूल के चैयरमैन को धमकी दी कि वह उसके स्कूल को लेकर को भ्रामक और झूठी खबर चला देंगे व चैयरमैन से 50-50 हजार रुपए की मांग कर डाली।स्कूल के चैयरमैन ने इस बावत विजीलेंस धर्मशाला से शिकायत कर दी।
विजीलेंस ने शिकायत में बताए गए इल्जामों का सत्यापन करने के बाद मामला दर्ज किया और दोनों को स्कूल में दबोच लिया व उनसे उगाही की रकम भी बरामद कर ली हैं।
हिमाचल के मीडिया जगत के लिए ये खबर बेहद अपमान जनक हैं। ये दीगर है कि सरकारें पत्रकारों के पीछे पड़ी रहती हैं लेकिन इस मामले में देखा जाना है कि ये मामला उगाही का ही है या पत्रकारों को सरकार ने लक्ष्य कर ठिकाने लगाने का काम किया हैं।
यहां ये गौर है पिछले एक डेढ दशक में पत्रकारों और नेताओं के गठजोड़ ने देश में बहुत कुछ किया है और हिमाचल से भी कम आहटें नहीं आती थी। इस गठजोड़ की वजह से ही देश भर में कुछ मीडिया संस्थानों ने कई पत्रकारों को बुलंदी पर पहुंचा दिया। इसकी एवज में इन संस्थानों के लिए बिजनेस का जरिया ये लोग बन गए और खबर ने बाजार की इस दुनिया में दम तोड़ दिया।
आहिस्ता-आहिस्ता नेताओं व पत्रकारों के गठजोड़ ने पत्रकारिता को कारोबार का जरिया बना दिया। इस सबकी आंच हिमाचल में संभवत: बहुत पहले पहुंच गई होंगी लेकिन विजीलेंस ने जो उजागर किया है वह बेहद निराशाजनक है।अगर ये झूठा मामला है तो कांग्रेस सरकार के लिए ये डूब मरने के बात हैं। हालांकि नए कानून भारतीय न्याय संहिता में इस तरह के तमाम पुलिस कार्यवाहियों की वीडियोग्राफी करने का प्रावधान हैं। विजीलेंस ने निश्चित तौर पर ऐसा कुछ किया ही होगा।
नेताओं व पत्रकारों के गठजोड़ की पड़ताल भी अब लाजिमी होती जा रही हैं । अगर ये गठजोड़ ताकतवर होता गया तो असहाय लोगों की आवाज को कोई बुलंद करने वाला ही नहीं बचेगा। जो बचेगा उसे सरकारें गोदी मीडिया के सहारे हाशिए पर धकेल देंगी। पिछले डेढ दशक में इस तरह के रुझान देखने को मिल भी रहे हैं। अब संपादक नामक संस्था पर गंभीर बहस की जरूरत हैं।
(76)