शिमला।प्रदेश सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा है कि 960 मेगावाट की थोपन पवारी जंगी हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट में नीदरलेंड की कंपनी ब्रेकल कारपोरेशन एनवी की वजह से अब तक 9 सौ करोड़ रुपए से ज्यादा का नुकसान हो चुका है। इसलिए अब सरकार ज्यादा नुकसान नहीं झेल सकती। इस प्रोजेक्ट के लिए दोबारा निविदाएं मंगाना चाहती है।सरकार की ओर से सुप्रीम कोर्ट में इस बाबत दिए हलफनामें पर आज सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस टी एस ठाकुर व जस्टिस विक्रमजीत सेन की खंडपीठ ने ब्रेकल और रिलायंस इंफ्रास्ट्रक्चर को चार सप्ताह में जवाब देने के आदेश दिए है।
उधर,केबिनेट की ओर से ब्रेकल कंपनी के खिलाफ प्रदेश सरकार को हुए नुकसान व जुर्माना करने को लेकर लिए फैसले पर आगामी कार्यवाही के लिए निदेशालय ऊर्जा ने मामला राज्य इंफ्रास्ट्रकचर बोर्ड को भेज दिया है। बोर्ड सरकार को हुए और नुकसान का आकलन करेगा।
किन्नौर जिला में लगने वाले इस प्रोजेक्ट को हासिल करने के लिए 2008 में ब्रेकल व रिलायंस इंफ्रास्ट्रक्चर के बीच चली जंग के कारण ये परियोजना विवादास्पद हो गई थी। धूमल सरकार ने इस परियोजना को ब्रेकल को आवंटित कर दिया था। लेकिन ब्रेकल की ओर से निविदाओं में दी गई बहुत सारी जानकारियों गलत पाई गई थी ।इसका खुलासा महालेखाकार की टीम ने किया था।
रिलायंस इंफ्रासट्रक्चर ने इस आवंटन को हाईकोर्ट में चुनौती दे दी ।जिस पर 2009 में हाईकोर्ट ने इस आवंटन को रदद कर दिया था व सरकार को विकल्प दिया कि या तो इस प्रोजेक्ट को रिलायंस इंफ्रास्ट्रक्चर को आवंटित कर दे या फिर दोबारा निबवदाएं मंगावाएं।सरकार ने दोबारा निविदांए मंगाने का फैसला लिया था। इसके खिलाफ रिलायंस व ब्रेकल दोनों ही सुप्रीम कोर्ट में चले गए थे।
सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले पर स्टे नहीं दिया है। सुप्रीम कोर्ट में मामले की पैरवी कर रहे वरिष्ठ वकील जे एस अत्री ने कहा कि सरकार की ओर से दायर हलफनामे पर ब्रेकल और रिलायंस इंफ्रास्ट्रकचर से चार सप्ताह के भीतर जवाब तलब किया है।हलफनामे में अदालत को बता दिया है कि सरकार ने दोबरा निविदाएं मंगाने की प्रक्रिया शुरू कर दी है व केबिनेट ने निविदांए मंगाने के लिए हरी झंडी दे दी है।
गौरतलब हो कि ब्रेकल की ओर से दी गई गलत जानकारी की वजह से हाईकोर्ट ने ये इस प्रोजेक्ट का आवंटन 2009 में रदद कर दिया था। आवंटन के बाद ब्रेकल को इस महत्वाकांक्षाी प्रोजेक्ट को दो साल में पूरा करना था। लेकिन ये प्रोजेक्ट शुरू ही नहीं हुआ। जिसकी वजह से सरकार को करोड़ों रुपए का नुकसान उठाना पड़ा है। सरकार ने अभी तक नौ सौ करोड़ से ज्यादा का नुकसान आंका है। बाकी का स्टेट इंफ्रास्ट्रक्चर बोर्ड को आकलन करना है।
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