शिमला। आर्थिक कंगाली में फंसी प्रदेश सरकार को केंद्र सरकार ने बड़ा झटका दे दिया हैं। केंद्र सरकार की बिजली कंपनियों एनएचपीसी और एसजेवीएनएल ने प्रदेश में उन्हें जयराम सरकार में आवंटित की गई परियोजनाओं को प्रदेश सरकार को लौटाने की चिटठी लिख दी हैं। साथ ही कहा है कि इन परियोजनाओं पर अब तक 3397 करोड़ रुपए खर्च हो चुके हैं व इस रकम को लौटा दो और सरकार अपने प्रोजेक्ट वापस ले सकती हैं।
हालांकि इतनी बड़ी रकम खर्च हो चुकी है इसका आकलन करने के लिए इवैल्यूटर से इसका दोबारा मूल्यांकन कराया जा सकता हैं।लेकिन बावजूद इसके भी ये रकम कहां से दी जाएगी।
भारत सरकार के सचिव बिजली पंकज अग्रवाल ने मुख्य सचिव प्रबोध सक्सेना को इस बावत एक चिटठी लिखी हैं। सचिवालय से ये चिटठी हाथ लगी है।
भारत सरकार के बिजली सचिव पंकज अग्रवाल की इस चिठठी के आने बाद प्रदेश में सुक्खू की मंडली में हाहाकार मचा है क्योंकि सरकार के पास पैसे नहीं हैं और ऐसे में 34 सौ करोड़ रुपए की बड़ी रकम लौटाना आसान नहीं हैं। ये मामला मामला प्रदेश हाईकोर्ट में भी लंबित हैं और अगली तारीख अप्रैल महीने में लगी हैं।
ये है मामला
पूर्व की जयराम सरकार ने 210 मेगावाट के लुहरी चरण-1,66 मेगावाट के धौलासिद्ध,382 मेगावाट के सुन्नी डैम को सतलुज जल विद्युत निगम को बूम आधार पर आवंटित किए थे।(बूम यानी बिल्ड, ओन,ऑपरेट और मैंटैंन) इसके अलावा 500 मेगावाट का डुग्गर बिजली प्रोजक्ट को एनएचपीसी को बूट आधार पर 70 साल के लिए आंवटित किया था। (बूट यानी बिल्ड,ओन,ऑपरेट एंड ट्रांसफर) ।
जयराम सरकार ने इन परियोजनाओं को जब आवंटित किया था तो केंद्र में भी बीजेपी की ही सरकार थी यानी डब्बल इंजन की सरकार थी।
जयराम सरकार में लुहरी, धौलासिद्ध और डुग्गर परियोजना के आवंटन के लिए शर्तों में रियायतें दे दी। इन शर्तों के मुताबिक इन कंपनियों को प्रोजेक्ट चालू होने के बाद पहले के दस सालों में प्रदेश को महज चार फीसद रायल्टी देने हैं। यानी पैदा होने वाली बिजली से प्रदेश को केवल चार ही फीसद रायल्टी मिलेंगी व बाकी 96 फीसद लाभ कंपनियों का होगा। यानी प्रदेश को नुकसान और केंद्र को लाभ का सौदा था।
इसके बाद 11 से 25 साल तक 8 फीसद और 26 से 40 तक 12 फीसद और 40 साल के बाद 25 फीसद रायल्टी प्रदेश को देनी हैं। जयराम ने केंद्र में भी बीजेपी की सरकार होने के बावजूद भी ये सब क्यों किया इसके छिपे जवाब तो तलाशे ही जाने चाहिए व जब ये सब हुआ तब बिजली सचिव मौजूदा मुख्य सचिव प्रबोध सक्सेना हुआ करते थे।
लेकिन सुक्खू ने सत्ता में आने के बाद 30 सितंबर 2024 को अधिसूचना जारी कर दी व इन कंपनियों पर नई शर्त लगा दी व कहा कि नई शर्तों को माने अन्यथा सरकार इन प्रोजेक्टस को टेक ओवर कर लेगी।
सुक्खू सरकार ने लगाई ये शर्तें
सुक्खू ने जो नई शर्तें लगाई उनके मुताबिक पहले की तरह परियोजना चालू होने के पहले के 12 सालों तक इन कंपनियों को प्रदेश को 12 फीसद रायल्टी देने का प्रावधान कर दिया। इसके बाद 13 से 30 सालों तक 18 फीसद और 31 से 40 सालों तक 30 फीसद और 40 साल के बाद जब तक प्रोजेक्ट चलता है तब तक 40 फीसद रायल्टी प्रदेश को देने का प्रावधान कर दिया हैं। इन शर्तों के मुताबिक प्रदेश से बिजली परियोजनाओं से ज्यादा आय होती।
ये शर्तें जयराम सरकार की ओर से 2020 में मंजूर शर्तों से पहले भी लागू थी। सुन्नी डैम परियोजना में कोई रियायत नहीं थी।
लेकिन इन कंपनियों ने इन शर्तों को मानने से इंकार कर दिया । चूंकि आवंटन हो चुका है और 2020 को तय शर्तों के आधार हो चुका हैं।
पंकज अग्रवाल ने चिटठी में जो ब्योरा दिया है उसने सुक्खू सरकार को संकट में खड़ा कर दिया हैं।
अग्रवाल ने चिटठी में कहा है कि लुहरी स्टेज -1 में अब तक 1655 करोड़ रुपए खर्च हो चुके और 50 फीसद से ज्यादा खर्च हो चुका हैं जबकि धौलासिद्ध परियोजना में 768 करोड़ खर्च हो चुके है और 62 फीसद काम हो चुका हैं। सुन्नी डैम पर 867 करोड़ खर्च हो चुका है लेकिन काम 27 फीसद ही हुआ हैं।
उधर डुग्गर प्रोजेक्ट पर अभी 107 करोड़ रुपए ही खर्च हुए हैं। इसमें एफसी और इसी की मंजूरी प्रकिया में हैं।
अब बड़ा मसला यही है कि अगर सरकार इस परियोजनाओं को टेक ओवर करती है तो इतनी बड़ी रकम कहां से लाएंगी। इसके अलावा सरकार क्या इन परियोजनाओं को खुद चलाएंगी तो उसके पास इतना बुनियादी ढांचा कहां है। अगर आगे किसी को ठेके पर देती है तो वो क्यों नई शर्तों पर इन परियोजनाओं को लेंगी और केंद्र की मोदी सरकार का इसमें कदम-कदम पर अड़ंगा नहीं डालेंगी। ये अलग सवाल हैं।
अब सबकी निगाहें सुक्खू सरकार के सलाहकारों पर लगी है कि वो इस मसले से सुक्खू सरकार को कैसे बाहर निकालती है और अदालत में क्या रुख अपनाती हैं।
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