शिमला।‘‘आजाद भारत में स्वास्थ्य क्षेत्र में सरकारी खर्च के इतिहास का आकलन करने पर पता चलता है कि हमारे देश की सरकारों ने औसतन 1 फीसदी से ज्यादा खर्च नही किया जिसकी बदौलत आज समाज के एक बड़े हिस्से की पहूंच स्वास्थ्य सुविधाओं से बाहर हो गई हैं’’, यह बात जन स्वास्थ्य अभियान के राष्ट्रीय संयोजक अमित सेन गुप्ता ने शिमला में कही। जन स्वास्थ्य अभियान, हिमाचल इकाई की दक्षिण जोन की इस बैठक स्वास्थ्य क्षेत्र में कार्यरत 10 संस्थाओं के 25 प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया।
सेन ने कहा कि भारत दवाओं के उत्पादन में तीसरा सबसे बड़ा देश होने के बावजूद भी 70 प्रतिशत लोगों को जरूरत की दवायें नही मिलती हैं। नतीजतन प्रत्येक वर्ष 7 करोड़ से अधिक लोग स्वास्थ्य सेवाओं पर खर्च करने के कारण गरीबी रेखा से नीचे चले जाते हैं क्योंकि स्वास्थ्य खर्च का 70 से 80 प्रतिशत हिस्सा लोगों को अपनी जेब से खर्च करना पड़ता है। देश की स्वास्थ्य व्यवस्था पर सवाल उठाते हुए डाॅ. सेन ने कहा कि स्वास्थ्य लोगों का बुनियादी अधिकार है तथा इसको सुनिश्चित करना सरकार की जिम्मेदारी है। इंसान का 90 फीसदी स्वस्थ रहना अन्य कारकों पर निर्भर करता है जिसमें पोषण व्यवस्था, पानी, रोजगार, स्वच्छ वातावरण आदि की अहम भूमिका है।
उन्होंने कहा कि 2016 में मानवाधिकार आयोग देश भर में स्वास्थ्य के क्षेत्र में हनन के मामलों की क्षेत्रीय जन सुनवाईयां आयोजित कर रहा है। उत्तरी भारत के राज्यों की जन सुनवायी 24-25 मार्च 2016 को चण्डीगढ़ में होगी जिसमें हिमाचल प्रदेश से भी स्वास्थ्य सेवाओं के हनन के मामले पेश किए जाएंगे।
बैठक में यह भी स्पष्ट किया गया कि जन सुनवाई का यह काम किसी व्यक्ति विशेष के खिलाफ नहीं है बल्कि इन मामलों के ज़रिए व्यवस्था की खामियों को उजागर करना है। उन्होंने कहा कि कभी-कभी हमारा गुस्सा सबसे निचले स्तर के कार्यकर्ता पर फूटता है जो पहले ही कमज़ोर हैं और जिन्हेें बिना वेतन के स्वयंसेवी रूप में या कम वेतन पर काम करने के लिए कहा जाता है जबकि हमारा आक्रोश उस व्यवस्था के खिलाफ होना चाहिए जिसकी वजह से स्वास्थ्य अधिकारों की अनदेखी हो रही है।
जन स्वास्थ्य अभियान के उत्तरी क्षेत्र के संयोजक सतनाम सिंह ने कहा कि स्वास्थ्य क्षेत्र में चल रही कई योजनाओं में व्यापक भ्रष्टाचार चल रहा है जिनमें निजी कम्पनियों खूब पैसा बना रही हैं। उन्होंने कहा कि ऐसे भी मामले सामने आए हैं जहां योजना के लाभार्थी महिलाओं के जरूरी न भी होने से आॅप्रेशन करके उनकी बच्चेदानियां निकाली जा रही हैं ताकि स्वास्थ्य बीमा के तहत मिलने वाले पैसे को हासिल किया जा सके। ऐसे मामलों में निजी क्लीनिकों का हाथ है और इसकी शिकार महिलाएं गरीब और दलित परिवारों से सम्बंध रखती हैं।
हिमाचल प्रदेश के जन स्वास्थ्य अभियान के राज्य संयोजक सत्यवान पुण्डीर ने प्रदेश की स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति का करते हुए कहा कि देश में हि0प्र0 को अग्रणीराज्य की श्रेणी में गिना जाता है परन्तु दूर दराज के क्षेत्रों में दर्जनों स्वास्थ्य उपकेन्द्र आज भी खाली पड़े हैं तथा स्वास्थ्य सेवाओं का बड़े पैमाने पर निजीकरण किया जा रहा है। पुण्डीर ने कहा कि प्रदेश में इस जन स्वास्थ्य अभियान के साथ प्रदेश की लगभग 26 संस्थाएं तथा विशेषज्ञों का समूह जुड़ चुका है जो जन स्वास्थ्य को मजबूत करने की वकालत के साथ-साथ स्वास्थ्य हनन की घटनाओं को भी उजागर करने का कार्य करेंगी। बैठक में प्रतिभागियों ने स्वास्थ्य क्षेत्र में सुधार के लिए महत्वपूर्ण सुझाव दिये।
बैठक में वर्किंग ग्रुप की सदस्या सुमित्रा चन्देल, सीमा चौहान, ओपी भूरेटा, विशेषज्ञ समूह से भूपेन्द्र गुप्ता, उमेश भारती समेत डाॅ. कुलदीप सिंह तवंर, आर. एल. चैहान, सुरेश पुण्डीर, गोविन्द चतरांटा, डाॅ अश्वनी, प्रदीप ठाकुर, डी.सी. रावत, वरुण मिन्हास, देवकी शर्मा, हरिचंद, दीपक सूद, जयशिव ठाकुर, चमन ठाकुर आदि उपस्थित रहे। इस बैठक में 10 संस्थाएं शामिल हुईं जिसमें हिमाचल ज्ञान विज्ञान समिति, हि0प्र0 मेडिकल रिप्रेजेंटेटिव एसोसिएशन, हिमाचल हैल्थ फोरम, राज्य संसाधन केन्द्र, बेटी बचाओ अभियान, दलित शोषण मुक्ति सभा, प्रदेश स्कूल प्रवक्ता संघ, हिमाचल विज्ञान मंच, एस,एफ.आई, हिमाचल किसान सभा ।
(1)