शिमला।पूर्व आईपीएस एएन शर्मा को दोबारा नौकरी पर बहाल करने के मामले में वीरभद्र के अपने महकमे के अफसरों की ओर से पूर्व गर्वनर उर्मिल सिंह से तथ्य व मामले से संबधित विविरण को जानबूझ कर छिपाने पर अब इन अफसरों पर गाज गिरने का खतरा मंडरा गया है। इस मामले में सरकार के तीन टॉप अफसर चीफ सेक्रेटरी पी मित्रा,मुख्यमंत्री के प्रधान निजी सचिव वी सी फारका और एडीजीपी विजीलेंस पृथ्वीराज के अलावा कार्मिक,अभियोजन व जीएडी के अफसर सवालों के घेरे में आ गए है। इन अफसरों का खेल भांप कर तत्कालीन गवर्नर उर्मिल सिंह ने एएन शर्मा मामले में अभियोजन मंजूरी की फाइल सरकार को वापस भेज कर उन्हें गुमराह करने व तथ्य छिपाने को लेकर सरकार से इन अफसरों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्यवाही कर मेजर पैनाल्टी लगाने के निर्देश दिए है। गवर्नर की ओर से 20 जनवरी को मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह को भेजी इस चिटठी में उर्मिल सिंह ने लिखा है कि ये भयंकर मिसकंडक्ट है। सभी संबधित अफसरों के खिलाफ कार्यवाही शुरू की जाए और सरकार की ओर से लिए गए एक्शन से उन्हें अवगत कराया जाए।
गवर्नर ने ये आदेश 20 जनवरी को दे दिए और अभियोजन की मंजूरी की फाइल लौटा दी। लेकिन वीरभद्र सिंह सरकार के अफसरों ने अब तक एएन शर्मा मामले में धूमल, पूर्व मुख्य सचिव रवि ढींगरा,पूर्व अतिरिकत मुख्य सचिव पी सी कपूर और एएन शर्मा के खिलाफ चालान दायर नहीं किया है। जबकि गवर्नर ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले अपनी चिटठी में डिसकस कर दिए है।गवर्नर सरकार में सबसे टॉप पर का पद है।अफसरों के खिलाफ तो कार्रवाई वीरभद्र सिंह को ही करनी है। अब देखना है कि गाज किस पर गिरती है।फाइल तो विजीलेंस,पर्सनल,जीएडी,होम से होते हुए फारका के जरिए सीएम को गई है। सीएम से ये फाइल राज्यपाल को गई है। ऐसे में राज्यपाल को गुमराह करने व तथ्य छिपाने के दोषी तो ये सभी है ।लेकिन ये अफसर बैखौफ है और इस मामले मेंअभी तक भी चालान पेश नहीं किया है।
गवर्नर ने वीरभद्र सिंह के अफसरों के पूरे खेल का खुलासा इस चिटठी में किया है।उन्होंने कहा कि पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल की अभियोजन मंजूरी का मामला उनके सामने पेश किया गया।भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम के तहत अभियोजन की मंजूरी19(1)सी के तहत दी जाती है। सुप्रीम कोर्ट ने आर एस नायक बनाम एआर अंतुले,प्रकाश सिंह बादल बनाम पंजाब सरकार व अभय सिंह चौटाला बनाम सीबीआई में साफ कर दिया है कि जब किसी पब्लिक सर्वेंट ने जिस ऑफिस छोड़ दिया है तो इसे मामले में अभियोजन मंजूरी की जरूरत ही नहीं है। क्योंकि इस धारा के तहत काम करना डयूटी नहीं है।आईपीसी के तहत अपराधों को लेकर लगाई धाराओं जिनमें 420 व 120 बी के तहत किए गए कारनामें आफिशियल डयूटी के तहत नहीं आते।ऐसे में सुप्रीम कोर्ट के प्रकाश सिंह बादल बनाम पंजाब सरकार के मामले में आए फैसले की रोशनी में अभियोजन की मंजूरी की जरूरत नहीं है।
कानून की इस स्थापित स्थिति के आधार पर ही सरकार के अफसरों,स्टेट विजीलेंस ब्यूरो और अभियोजकों ने इसी तरह के वीरभद्र सिंह के सीडी केस में अभियोजन मंजूरी गवर्नर से नहीं ली थी।यही नहीं एचपीसीए को लेकर दर्ज एफआईआर 12/2013 में भी विजीलेंस ने गवर्नर से भ्रषटाचार निरोधक अधिनियम की धारा 19 के तहत अभियोजन की मंजूरी नहीं मांगी ।जबकि उसे इस अधिनियम के धारा 13 के तहत चार्जशीट किया गया है।उन्होंने इस बात पर हैरानी जताई है कि पहले के केसों में ये मंजरी नहीं मांगी गई।ऐसे में स्थापित कानूनों की स्थिति को उपरोक्त अफसरों ने जानबूझ कर उनसे छिपाया गया।जो भयंकर मिसकंडक्ट है।
उधर ,भाजपा की ओर से इस मसले पर बडी़ अजीब प्रतिक्रिया आई हैं। भाजपा प्रवक्ता गणेश दत ने राजधानी में आयोजित संवाददाता सम्मेलन में मांग कर डाली कि जिन अफसरों के खिलाफ गवर्नर ने टिप्णियां कर रखी है उनके खिलाफ तुरंत कार्रवाई की जाए।उन्होंने कहा कि वो सरकार से जानना चाहते है कि इन अफसरोंके खिलाफ क्या कार्रवाई की जाएगी।भाजपा ने इस मसले पर सभी विकल्प खुले रखे है। उन्होंने कहा कि अगर जरूरत पड़ी तो अदालत भी जाएगा। कई अफसर सरकार को खुश करने के लिए हर कुछ कर रहे है।
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