शिमला। नाबार्ड ने इस वितीय साल यानी 2025-26 में हिमाचल में 42 हजार 244 करोड़ रुपए का कर्ज बांटने का टारगेट रखा है।नाबार्ड के मुख्य महाप्रबंधक विवेक पठानिया ने वीरवार को राजधानी में राज्य फोक्स पेपर के विमोचन के मौके पर कहा कि इस बार का टारगेट पिछले वित साल से 22.48 फीसद ज्यादा है।
पठानिया के मुताबिक खेती व इससे जुड़ी गतिविधियों को बढ़ावा देने के लिए जिसके तहत कृषि ढांचा खड़ा करना भी शामिल है को 16हजार 825 करोड़ रुपए का कर्ज बांटने का टारगेट रखा गया है।जबकि छोटे व लघु उदयोगों जिनमें बुनकर व स्वयं सहायता समूह भी शामिल है को 21 हजार 516 करोड़ रुपयों का कर्ज बांटने का टारगेट रखा गया है।आवास निर्माण के लिए 1684 करोड़ और शिक्षा के क्षेत्र में 421 करोड़ रुपए का कर्ज देने का टारगेट रखा है।
इस मौके पर एक पहलु पर चिंता जताई गई कि प्रदेश में बैंकों का इतना बड़ा जाल बिछे होने के बावजूद लोगों की ओर बैंकों के बाहर से भी कर्ज लिए गए । जिससे ये ये छज्ञेटे –बड़ें उदयमी सरकार व बैंकों की ओर से दी जाने वाली रियायतों से वंचित रह गए है।
स्टेट फोकस पेपर में किसान क्रेडिट कार्ड के उपयोग न होने पर चिंता जताई गई।इसमें 39 फीसद का गिरावट दर्ज की गई है।
फोकस पेपर का विमोचन करने के बाद मुख्यसचिव प्रबोध सक्सेना ने कहा कि प्रदेश का जितना सालाना बजट है उससे थोडा कम नाबार्ड का साल का कर्ज बांटने का टारगेट है। उनहोंने कहा कि अगर विकास करना होगा तो प्रदेश को ग्रोथ इंजन खड़े करने होंगे। जैसे पंजाब व हरियाणा में उदयोगिक क्षेत्र वहां के ग्रोथ इंजन है। सरकारों की वितीय हालात तो सभी प्रदेशों की एक जैसी है लेकिन कई राज्यों ने अपने ग्रोथ इंजन खड़े कर लिए है।
सेक्सेना ने कहा कि नाबार्ड को निजी क्षेत्र को औ कई गुना ज्यादा कर्ज देना चाहिए।उन्होंने इस बावत औदयोगिक देशों का हवाला भी दिया।
उन्होंने पहाड़ी राज्यों में हिमाचल की तुलना बाकी पहाड़ी राज्यों से करते हुए कहा कि हिमाचल में जितना हम ऊपर चोटियों की ओर बढ़ते है वहां पर समृद्धि उतनी ज्यादा है। जबकि बाकी पहाड़ों राज्यों के पहाड़ खाली हो गए है। हमारे पास सेब व उसकी आमदनी है।
उन्होंने कहा कि 2030 तक देश का 50 फीसद शहरीकरण हो जाएगा ऐसे में नाबार्ड को अब ग्रामीण क्षेत्र के अलावा शहरी क्षेत्रों पर भी फोक्स करना होगा।
उन्होंने कुटीर व लघु उदयोगों को बढ़ावा देने पर भी बल दिया व कहा कि इस बार दिलली हाट में हिमाचवल के घी, शहद और साबून की भारी मांग रही। इस दिशा में गुणवता को बरकरार रखने की बड़ी चुनौती है।
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