शिमला। 2014 में 32 किसानों की ओर से आत्महत्या कर देने के बावजूद प्रदेश के आईएएस अफसरों व मंत्रियों की रूह बेशक न कांपी हो लेकिन अपना कारोबार चलाने के लिए ही सही, नाबार्ड ने अवारा,जंगली जानवरो व वानरों के कहर से खेती बचाने के लिए सोलर फेंसिंग लगाने एक समाधान सुझाया है। ये समाधान नाबार्ड ने 2016 में सरकार के सुपुर्द किया है।सरकार की ओर से नजरअंदाज कर दिए जाने की वजह से मुल्क में हर साल हजारों किसान मौत की मुंह में समा रहे है। जिसकी वजह खेती का सूखे, बाढ़ व जंगली जानवरों की ओर से बर्बाद होना है।
सोलर फेंसिंग से जंगली जानवर व वानर किसानों के खेतों में घुसकर खेती को नष्ट नहीं कर सकेंगे। अगर वो खेतों में घुसने की कोशिश करेंगे तो करंट का झटका खाकर धड़ाम से दूर जा गिरेंगे पर उनकी जान नहीं जाएंगी।
नौणी विवि सोलन में ये प्रयोग कामयाब रहा है। हालांकि 52 हजार प्रति व्यक्ति आय वाले प्रदेश के किसानों के लिए ये समाधान महंगा है लेकिन सरकारी खजाने से सालाना लाखों रुपए गटकने वाले आईएएस अफसरों जिनका काम ही इनोवेटिव समाधान सुझाना है,उनकी मंशा व प्राथमिकताओं पर नाबार्ड का ये कदम उनको कटघरे में ला खड़ा करता है। प्रदेश के सरकारी खजाने से वेतन ,भतों व बाकी सुविधाओं के रूप में मोटी रकम उड़ा ले जाने वाले अखिल भारतीय सेवा के अफसरों, मंत्रियों,विधायकों के कारनामें जनता के हित में कितने है ये स्मार्ट सिटी मामले में हाईकोर्ट की ओर से की गई टिप्पणियां और एक साल में 32 किसानों की मौतें साबित करने के लिए काफी है।
नाबार्ड के अपने आंकड़ों के मुताबिक प्रदेश में बंदरों समेत जंगली जानवर 1.50 हैक्टेयर जमीन पर 229 करोड़ रुपयों की फसलें बर्बाद कर देते है। बेबस किसानों ने ऐसे में खेती करना छोड़ दिया है। अन्य क्षेत्रों में रोजगार है नहीं है ऐसे में 2014 में ही 32 किसान आत्मघात पर उतर आए। (आत्म हत्याओं का ये आंकड़ा नेशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरो का है) लेकिन सरकार ने इस आंकड़े पर कभी जुबान नहीं खोली और विपक्ष भी खामोश है।
नाबार्ड ने बीते दिनों हुई अपनी सालाना बैठक में सोलर फेंसिंग पर एक थीम पेपर जारी किया व आईपीएच मंत्री विद्या स्टोक्स ,अतिरिक्त मुख्य सचिव नरेंद्र चौहान व पीसी धीमान व स्पेशल सेक्रेटरी फाइनांस अक्षय सूद की मौजूदगी में इस प्रोजेक्ट की रूपरेखा रखी। अक्षय सूद ने इस मौके पर बागवानी विभाग व कृषि विभाग के अफसरों से इस मसले पर सुझाव मांगे ता पहला सुझाव यही आया कि ये महंगा है। अब देखना ये है कि सरकार में तैनात अफसर इस प्रोजेक्ट पर काम करते है या अड़ंगा डालते है।वैसे भी खेती ब्यूरोक्रेसी की प्राथमिकताओं में सबसे नीचले पायदान पर है।
जो समाधान ब्यूरोक्रेसी व विशेषज्ञों की ओर से आना चाहिए था वो बैंक की ओर से आया है। बैंक अपना कर्ज का कारोबार बढ़ाना चाहता है लेकिन कृषि क्षेत्र क्या बाकी क्षेत्रों में कर्ज लेने की दर बढ़ नहीं रह है। विशेषज्ञ व बैंकर्स बेशक कई दलीलें देते रहे लेकिन असल वजह किसानों की नियमित आय का न बढ़ना है। किसान लगातार बर्बाद हो रहे है और यही वजह है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की दिवास्वप्न दिखने वाली ड्रीम जनधन योजना के 40 प्रतिशत खातों में एक भी पैसा जमा नहीं है। बाकी के खातों मं जो पैसा है भी वो नगण्य ही है ।
प्रदेश में शिक्षा के लिए कर्ज देने के रखे टारगेट में भी विफलता मिली है। शिक्षा के लिए कर्ज लेने भी लोग नहीं आ रहे है। बाकी वजहों के अलावा किसानों की आय न होना एक बड़ी वजह है प्रदेश की कुल आबादी की 62 से 68 प्रतिशत आबादी किसानों की है।जिनमें से 88 प्रतिशत किसान लघु व सीमांत किसान है,जिनके के पास छोटी-छोटी जोतें है और सिंचाई का जरिया नहीं है। (प्रदेश में 22 प्रतिशत खेती योग्य जमीन की ही सिंचाई हो सकती है ।आजादी के साठ साल बाद भी इस सारी जमीन को सिंचाई के दायरे में नहीं ला पाए है।)ऐसे में सवाल है कि ये किसान जाए तो जाए कहां। वो जो खेती करते भी है वहां पर बंदरों व जंगली जानवरों ने तबाही मचा दी है।सूखा पड़ जाए तो किसानों को होने वाले नुकसान को कोई नहीं पूछता
ब्यूरोक्रेसी व मंत्रियों की फौज कारपोरेट घरानों के दरबारों में घूम रही है। बडे सेमीनारों आयोजित करने को सरकार की उपलब्धि करार दे रहे है व किसानों की आत्महत्याओं की जानकारी गायब करने में जुटे है।
ऐसे में किसानों व बागवानों के लिए नाबार्ड का सोलर फेंसिंग पर तैयार ये थीम पेपर कितना कारगर होगा ये सरकार पर निर्भर करता है।
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