शिमला। “जो पढ़ कर नहीं पढ़ाता वह अध्यापक उस पुराने जंग लगे चाकू की तरह है, जो काटता तो नहीं है पर खरोंच जरूर मारता है!” ये वाक्य है जगदीश बाली द्वारा लिखित ‘द स्पार्क इज विद इन यू‘ पुस्तक का जो हाल ही में अन्तर्राष्ट्रीय प्रकाशक आथर्सप्रेस नई दिल्ली से प्रकाशित हुई है। पुस्तक आजकल सोशल मीडिया पर आज कल चर्चा में है।
भले ही आज की सरकारी शिक्षा व शिक्षक दोनों कटघरे में खड़े हैं, परंतु वहीं ऐसे शिक्षक भी हैं जो अपने अध्यापन, लेखन व प्रखर व्यक्तित्व से न केवल छात्रों के लिए प्रेरणा स्रोत हैं बल्कि अध्यापक समुदाय व शिक्षा जगत के लिए एक आशा की किरण है। राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक पाठशाला कुमारसेन में कार्यरत जगदीश बाली अंग्रेज़ी के प्रवक्ता है।
‘द सपार्क इज विदइन यू‘ पुस्तक को पढ़्ने के बाद पाठक प्रभावित हुए बिना नहीं रह सक्ता । 190 पृष्ठों वाली इस पुस्तक में 38 अध्याय हैं। व्यक्ति के विकास के विभिन्न आयामों को दिशा देने का प्रयास करती यह पुस्तक अंग्रेज़ी भाषा में लिखी गयी है, पुस्तक की भाषा शैली ऐसी है कि पाठकों को बोझिल नहीं होने देती । लेखक ने जिस तरह से अपने अनुभवों, लघु कहानियों, संदर्भों व हिंदी व संस्कृत के उद्धरणों का समायोजन किया है, वह पुस्तक को रोचक बनाते हैं और पाठक को बांधे रखते हैं।
पुस्तक के चौथे अध्याय में बाली बताते है कि माता-पिता अपने बच्चे के व्यक्तित्व को बना व निखार सकते हैं। वे कहते हैं, “माता-पिता की ज़िम्मेदारी किसी पार्क में सैर करने जैसी आसान नहीं बल्कि , किसी अंडे पर चलने जैसी मुश्किल है।”इसी तरह बच्चों के व्यक्तित्व विकास में अध्यापक के योगदान पर पांचवे अध्याय मे बाली कहते है, “एक अच्छा अध्यापक सीख कर पढाता है और पढ़ा कर सीखता है।”
पुस्तक के अन्य अध्याय भी मानव व्यक्तित्व के कई पह्लुओं को छूते हुए, एक उच्च व खुशहाल जीवन यापन के लिए स्टीक उदाहरण प्रस्तुत करते हैं। अध्याय 8 में लेखक कहता है, “डर के साये में जीने वले व्यक्ति को हर रस्सी भयंकर मांबा लगती है और हर एक बिल्ली शेर दिखती है।” इसी तरह अध्याय 38 में लेखक भाग्यवादियों पर कटाक्ष करते हुए कहते हैं, “भाग्यवादी लोग सोचते हैं कि ख़ुदा ने उनके नाम भाग्य की कोई चिट्ठी लिख रखी है, जो वो कभी उन्हें डाक द्वारा भेजेगा!” पुस्तक इस तरह के दिलचस्प वाक्यों से सराबोर है।
1971 में शिमला ज़िले के एक छोटे से गांव आहर में जन्में बाल्री ने गांव के एक सरकारी हिंदी माध्यम के स्कूल से शिक्षा प्राप्त की। इसके बावज़ूद वे अंग्रेज़ी अखबार इंडियन एक्सप्रेस में उपसंपादक भी रहे। 15 वर्ष से अंग्रेज़ी अध्यापन का कार्य कर रहे बाली जी भाषा के प्रयोग, कम्युनिकेशन व पर्सनलटी डेवेल्पमेंट जैसे विषयों पर वे अध्यापक प्रशिक्षण कार्यक्रमों में बतौर रिसोर्स पर्सन भी प्रदेश का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं।
उन्होंने बताया, “मैं पुस्तक लिखने का श्रेय अपने परिवार, गुरुओं व छात्रों को देता हूं।” उन्होंने कहा कि अभी ‘द स्पार्क इज विदइन यू‘ authorspressbooks.com से प्राप्त की जा सकती है और जल्दी ही शिमला के पुस्तक विक्रेताओं के पास उपलब्ध होगी । उन्होंने ये भी कहा कि उनकी अगली पुस्तक भी जल्द ही पूर्ण होगी।
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