शिमला। सिंचाई एवं जनस्वास्थ्य और बागवानी मंत्री महेन्द्र सिंह ठाकुर ने प्रदेश के लिए 1134 करोड़ रुपए की महत्वाकांक्षी बागवानी परियोजना के लिए तैनात लेकर न्यूजीलैण्ड व नीदरलैण्ड की परामर्शी एजेंसी को आगाह किया है कि यदि वह अपेक्षित परिणाम लाने में असमर्थ रहती है, तो इसके अनुबंध पर पुन: विचार किया जाएगा। उन्होंने कहा कि परिणाम जमीन पर दिखने चाहिए और परियोजना की पाई-पाई किसानों व बागवानों पर खर्च की जानी चाहिए, इसमें किसी प्रकार की अनियमितता को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। महेंद्र सिंह ठाकुर आज 1134 करोड़ रुपए की महत्वाकांक्षी बागवानी परियोजना की समीक्षा बैठक कर रहे थे। जिसमें परामर्शी एजेंसी के कर्ताधर्ता भी मौजूद थे।
उन्होंने कहा कि परामर्शी एजेन्सी के अधिकारी भी फील्ड में जाएं और बागवानों को आवश्यक प्रशिक्षण व परामर्श प्रदान करें। उन्होंने इस संबंध में रिपोर्ट 10 दिनों के भीतर सौंपने के निर्देश दिए।
समीक्षा बैठक में उन्होंने कहा कि ा प्रदेश की नर्सरियों में 2023 तक 52 लाख सेब के रूट स्टॉक तैयार किया जाएगा।
बागवानी मंत्री ने चिंता जाहिर की कि विदेशों से बड़े पैमाने पर रूट स्टॉक मंगवाए गए, जिनमें से लगभग 50 प्रतिशत पहुंचते ही सूख गए। उन्होंने कहा कि प्रदेश की भौगोलिक स्थितियां व जलवायु उन देशों से भिन्न हैं, जहां से इस प्रकार के रूट स्टॉेक मंगवाए जाते रहे हैं। उन्होंने इस बात पर बल दिया कि प्रदेश की नर्सरियों में यहां की जलवायु के अनुकूल रूट स्टॉक तैयार करने की बेहतर संभावना मौजूद है और विभागीय अधिकारियों को इसके लिए लक्ष्य निर्धारित कर आने वाले समय में शत-प्रतिशत पौध यहीं पर तैयार करने के लिए अभी से प्रयास करने होंगे। हालांकि, 2023 तक 13 लाख रूट स्टॉक मौजूदा अधोसंरचना के अनुरूप तैयार होंगे, लेकिन एक सुनियोजित ढंग से ढांचागत सुविधाओं को मजबूत कर इसे लगभग चार गुणा तक बढ़ाने की क्षमता है। उन्होंने कहा कि रूट स्टॉक के आयात को धीरे-धीरे कम करके राज्य की नर्सरियों की निर्भरता को बढ़ाएंगे।
उन्होंने परामर्शी एजेन्सी से राज्य के 7000 से 9000 फुट या इससे अधिक ऊचांई वाले क्षेत्रों में सेब की पैदावार के लिए रूट स्टॉक की किस्मों का पता लगाने के लिए कहा। उन्होंने पौधों के वितरण से पूर्व राज्य के विभिन्न भागों में क्लस्टरों का उपयुक्त चयन करने के निर्देश दिए। उन्होंने कहा कि सिंचाई की व्यवस्था मुख्य घटक है, और क्लस्टर ऐसे चुने जाएं जहां पानी उपलब्ध हों, अथवा सिंचाई की योजना निमार्णाधीन हो।
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