शिमला। मणिपुर में सेना को विश्ोषाधिकार अधिकारों वाले सशस्त्र बल विशेषाधिकार कानून को हटाए जाने की मांग को लेकर भूख हड़ताल पर बैठी मानवाधिकार कार्यकर्ता इरोम शर्मिला को मणिपुर की एक अदालत ने तुरंत न्यायिक हिरासत से रिहा करने का आदेश दिया है।
इस कानून को हटाने की मांग को लेकर इरोम चानु शर्मिला पिछले 14 सालों से भूख हड़ताल पर है और 13 सालों से एक अस्पताल में न्यायिक हिरासत में है।उनकी रिहाई को लेकर के एच मणि और वाई देवदता ने याचिका दायर की थी।इरोम पर आत्महत्या की कोशिश की मंशा करने का आरोप था।सेशन जज गुनेश्वर ने याचिका की सुनवाई करते हुए कहा कि इरोम पर आत्महत्या की कोशिश की मंशा का आरोप साबित नहीं होता।मणिपुर में सशस्त्र बल विशेषाधिकार कानून के तहत सेना पर स्थानीय युवकों की हत्या करने और महिलाओं की आबरू से खेलने के आरोप लगते रहेहै। मणिपुरी महिलाओं ने इस कानून के विरोध में सेना के कार्यालय के बाहर नग्न हो कर प्रदर्शन भी किया था।
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक इरोम ने रिहाई के आदेश के बावजूद अपना अनशन जारी रखने का एलान किया है।भूख हड़ताल पर बैठी इरोम शर्मिला को सरकार ने जबरन फीड किया था।तबसे लेकर वो अस्पताल में न्यायकि हिरासत में है।मंगलवार को याचिका पर सुनवाई करते हुए अदालत ने कहा कि सरकार इरोम चानु के स्वास्थ्य को लेकर कोई भी फैसला कर सकती है।
लोकसभा चुनाव में नहीं देने दिया था वोट
हाल ही में हुए लोकसभा चुनावों में 14 साल तक मानवाधिकारोंकी लड़ाई लड़ने वाली इरोम शर्मिला को वोट देने की इजाजत नहीं दी गई थी वह वोट नहीं डज्ञल पाई थी।
मोदी को चिटठी में माना था हिंसात्मक नेता
केंद्र सरकार के सशस्त्र बल विशेषाधिकार कानून के खिलाफ जंग लड़ने वाली यह महिला सामाजिक कार्यकर्ता देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को हिंसात्मक नेता मानती है।मई में मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद इरोम ने उन्हें लिखी में चिटठी में कहा था कि अब से से पांच साल पहले तक वो मोदी को हिंसात्मक नेता मानती थी।उन्होंने मोदी को सम्राट अशोक की याद दिलाते हुए कहा था कि वो इस कानून को हटा दे ओर अहिंसा के मार्ग पर चल कर राज करे।इ स चिटठी में इरोम ने मोदी से शांति की उम्मीद रखी थी।
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