शिमला। दो हजार मीटर से ऊपर की ऊंचाई में पैदा होने वाले कड़ु या कुटकी और 14 सौ मीटर की ऊंचाई से ऊपर पर उगाए जाने वाला चिरायता आयुर्वेद में लिवर टॉनिक के रूप में इस्तेमाल होता हैं। अब इन दोनों की खेती कोटखाई के जाशला गांव में शुरू की जाने वाली हैं।
जाशला गांव के लोगों के सहयोग से वन विभाग की जमीन पर कड़ु के पौधे लगाएं जाएंगे व उससे होने वाली आय का 25 फीसद भाग वन विभाग को जाएगा और बाकी की आय खेती करने वालों के हिस्से में आएंगी।
जाशला गांव में ये प्रोजेक्ट जाइका के तहत शुरू किया जा रहा हैं।
जाइका वानिकी परियोजना के मैनेजर मार्केटिंग जड़ी बूटी प्रकोष्ठ डा. राजेश चौहान ने reporterseye.com से बातचीत में कहा कि कड़ु की पैदावर के लिए नेचुरल जोन 2700 मीटर से ऊपर का है लेकिन ये अब 2000 मीटर पर भी उग रहा हैं।
कड़ु यानी कुटकी की पैदावार तीन साल में होनी शुरू हो जाती हैं। इसका तना बिकता है। ये छायादार इलाके में उगता है और जमीन नमी वाली होनी चाहिए। बस पानी एकत्रित नहीं होना चाहिए।
उन्होंने कहा कि ये बुखार के लिए भी इस्तेमाल होता है। एंडी डायबिटिज है और आयुर्वेद दवाओं में इस्तेमाल होता हैं।
उन्होंने कहा कि इसी तरह चिरायता भी 12 से 14 सौ मीटर की ऊंचाई पर उगना शुरू हो जाता हैं।
इसकें बीज को वर्मी कंपोस्ट में मिलाकर बोया जाता है और इसकी पैदावार 18 महीनों में आ जाती हैं। जबकि कुटकी की बीजाइ अगस्त महीने में करते हैं।उन्होंने कहा कि चिरायता को तो पूरा पौधा ही बिक जाता हैं।
जाशला गांव इन दोनेां की खेती के लिए अनुकूल पाए गए हैं।कुटकी के लिए जंगली सुअर आफत का काम करते है जबकि चिरायता में कई बार शुरू में बीमारी जग जाती है तो उसे ऊपर से काटना पड़ता हैं। बाकी जंगली जानवर भी इसे ज्यादा नुकसान नहीं पहुंचाते।
इस बावत 5 अप्रैल को जाशला में गांव वालों के साथएक महत्वपूर्ण बैठ की गई व
इस खेती के लिए जाइका वानिकी परियोजना ग्रामीणों को निशुल्क पौधे उपलब्ध करवाने के साथ-साथ सभी तकनीकी प्रशिक्षण भी देगी।
बैठक में वन मंडल ठियोग के विषय वस्तु विशेषज्ञ डा. अभय महाजन और क्षेत्रीय तकनीकी इकाई समन्वयक लोकेंद्र झांगटा भी उपस्थित रहे।
ग्राम वन विकास समिति जाशला के प्रधान प्रदीप लेटका, जयदेवी नंदन स्वयं सहायता समूह की प्रधान प्रेम लता और जय मां चालकाली स्वयं सहायता समूह की प्रधान उषा ने जाइका वानिकी परियोजना की इस महत्वपूर्ण पहल में शामिल होने की हामी भरी हैं।
चौहान ने कहा कि परियोजना ने बीते वर्ष किन्नौर, आनी और कुल्लू में भी कड़ु के पांच लाख पौधे जन सहभागिता के माध्यम से रोपे। मौजूदा समय में कडु़ को स्थानीय बाजार में दो से पांच हजार रूपये प्रति किलोग्राम के हिसाब से कीमत मिल रही है। जबकि चिरायता तीन से पांच सौ रूपये प्रति किलोग्राम के हिसाब से बिक रहा है।
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