शिमला। प्रदेश के बागवानों को सरकार की नाक के नीचे देश की नामी तेल कंपनियां बगैर लाइसेंस गैर कानूनी तरीके से सालाना करोड़ों रुपयों का स्प्रे आयल कीटनाशकों के नाम बेच कर अपना कारोबार चमका रही है। यही नहीं ये स्प्रे आयल सेंट्रल इंसेक्टिसाइड बोर्ड से भी रजिस्टर नहीं है। ऐसे में इस स्प्रे आयल में क्या-क्या मिला है और ये बागवानों के लिए लाभदायक है भी या नहीं इसकी आधिकारिक तौर पर किसी को जानकारी नहीं है। जिन यूनिवर्सिटीज के अधिकारियों की सिफारिशों पर ये स्प्रे आयल बेचा जा रहा है व इस तरह की सिफारिशें करने के लिए अधिकृत ही नहीं है।इन नामी कंपनियों के इन स्प्रे आयल को प्रदेश के लाखों बागवान इस्तेमाल कर रहे है।
मजे की बात है कि बागवानों के लिए ये स्प्रे आयल सरकारी निगम एचपीएमसी और हिमफैड के जरिए भी बेचा जा रहा है। ये सरकारी उपक्रम इस आयल को इंडियन आयल,हिंदोस्तान प्रेट्रोलियम जैसी नामी कंपनियों से खरीद कर आगे बेच रही है।इनके पास स्प्रे आयल को बेचने का लाइसेंस नहीं है। बागवानी विभाग के डिप्टी डायरेक्टर हेम राज शर्मा ने माना की विभाग ने किसी को इस स्प्रे आयल को बेचने का लाइसेंस नहीं दिया है।उन्होंने कहा कि वह पता लगाएंगे कि ये कहां –कहां बेचा जा रहा है व रेड भी डाली जाएगी।
उन्होंने कहा कि जो स्प्रेआयल सेब की खेती के लिए बागवानों को बेचा जा रहा है उसे सेब की फसल पर इस्तेमाल करने के लिए सीआईबी ने कोई इजाजत नहीं दी है।
ऐसे में ये बड़ा सवाल खड़ा हो गया है कि क्या प्रदेश के बागवानों के साथ सालों से फ्राड हो रहा है।सरकारी उपक्रम एचपीएम सी के डीजीएम मार्किटिंग सुरेंद्र चौहान ने कहा कि व साल में दो से तीन करोड़ रुपए का एचपी कंपनी स्प्रे आयल बागवानों को बेच रहे है।उन्होंने कहा कि उन्होंने कंपनी को लिखा है कि वो इसे रजिस्टर कराए।साफ है मामला सरकार के नोटिस में है।
उधर ,इंसेक्टिसाइड एक्ट 1968 के तहत सीआईबी में बगैर रजिस्टर किए इस तरह के स्प्रे आयल को न बेचा जा सकता है और न ही स्टोर किया जा सकता।
उधर, इस बावत केंद्रीय कृषि मंत्रालय के सचिव आशीष बहुगुणा ने 2 मई 2013 को प्रदेश के तत्कालीन मुख्य सचिव एस राय को चिटठी लिखकर कहा था कि उनके मंत्रालय के नोटिस में आया है कि कई राज्य ऐसे कीटनाशकों को प्रमोट कर रहे है जिन्हे रजिस्टर कमेटी ने रजिस्टर नहीं किया है। इसे कई यूनिवर्सिटीज एप्रुव कर रही है।इस चिटठी में उन्होंने लिखा है कि एक्ट का उल्ल्ंघन तो है ही साथ ही इंसानों,पशुओं व पर्यावरण के लिए भी खतरा है।
इस चिटठी में मुख्य सचिव से आग्रह किया है कि वह कृषि यूनिवर्सिटीज व कृषि विभाग को इस तरह की सिफारिशें जारी करने पर रोक लगाएं। उधर प्रदेश के कृषि विभाग ने इस गंभीर मसले पर अपना पल्ला झाड़ दिया है। विभाग के संयुक्त निदेशक पी एस परमार ने कहा कि इसे बागवान इस्तेमाल करते है व कृषक इस्तेमाल नहीं कर रहे है। उनके एरिया में ये इस्तेमाल नहीं हो रहा है।
इन स्प्रेआयल के इस्तेमाल पर जम्मू कश्मीर सरकार ने बैन लगा दिया है।
उधर इस मसले पर इंडियन आयल के डीएम के नागेंद्र सिंह ने कहा कि वह इस मामले में डील ही नहीं करते। इस मसले में डील कर रहे कंपनी के सीनियर मैनेजर मनोज के सिंह ने कहा कि इस मामले पर मुख्यालय ही कुछ बता सकता है। उन्हें लिखित में सवाल भेजे गए। लेकिन उनका जवाब नहीं आया।
एक मोटे अनुमान के मुताबिक प्रदेश के बागवानों को साल भर में देश की इंडियन आयल समेत बड़ी तेल कंपनिया करीब 60 से 80 करोड़ रुपए का कारोबार कर रही है ।लेकिन कानूनन ये कंपनियां इस स्प्रे आयल को बेच ही नहीं सकती।
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