शिमला। अपने खास आईपीएस अफसर एएन शर्मा को इस्तीफे के बाद दोबारा नौकरी देने के मामले में पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार की याचिका पर प्रदेश हाईकोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रखा लिया है। पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल ने इस मामले में नीचली अदालत की ओर से संज्ञान लेने के आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती दी थी।इस दिलचस्प मामले में मोदी सरकार की ओर से नियुक्त राज्यपाल कल्याण सिंह और यूपीए सरकार की ओर से नियुक्त राज्यपाल उर्मिल सिंह के अलग अलग आदेशों को आधार बनाकर धूमल ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी।
आज मामले की सुनवाई करते हुए जस्टिस राजीव शर्मा ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है।
वीरभद्र सिंह सरकार ने एक शिकायत पर इस मामले में पूर्व आईपीएस अफसर एएनशर्मा,पूर्व गृह सचिव पीसी कपूर,पूर्व मुख्य सचिव रवि ढींगरा के अलावा धूमल के खिलाफ मामले दर्ज कर स्पेशल जज वन की अदालत में चालान पेश किया था।इस मामले की छानबीन वीरभद्र सिंह के खास पुलिस अफसर रमेश छाजटा ने की थी।
छाजटा ने छानबीन कर मामले को आगे की कार्यवाही के लिए विजीलेंस मुख्यालय को भेज दिया था। कई दिनों तक ये मामला यही लटका रहा।इसके बाद ये सचिवालय के बाबूओं के पाले में गया। कई दिन यहां घूमने के बाद ये मामला तत्कालीन राज्यपाल उर्मिल सिंह के पास अभियोजन की मंजूरी के लिए पहुंचा तो वो आग बबूला हो उठी।उन्होंने फाइल पर लिखा कि जब सुप्रीम कोर्ट ने साफ कर दिया है कि इस तरह के मामलों में राज्यपाल से अभियोजन की मंजूरी लेने की जरूरत ही नहीं हें ,उस तरह के मामलों को सरकार के अफसर उनके पास क्यों भेज रही है। उन्होंने इस मामले को उनके पास भेजनेभूमिका निभाने वाले सारे अफसरों के खिलाफ कार्रवाई करने का फरमान भी फाइल में जड़ दिया।फाइल वापस आने पर विजीलेंस के खाकी वाले बाबूओं, सचिवालय के बाबूओं और सीएम कार्यालय में हड़कंप मच गया।
मुख्यमंत्री ने मीडिया में कहा कि ये सब तत्कालीन राज्यपाल उर्मिल सिंह के प्रधान सविच संजय गुप्ता ने किया है।इस बीच ये केस सचिवालय मे ही पड़ा रहा। चालान पेश नहीं किया गया। इस बीच उर्मिल सिंह का कार्याकाल समाप्त हो गया और मोदी सरकार की सलाह पर राष्ट्रपति प्रणव मुर्ख्जी ने राजस्थान के राज्यपाल कल्याण सिंह को प्रदेश के राज्यपाल का अतिरिक्त कार्यभार सौंप दिया। कई दिन ऐसा ही चलता रहा और विजीलेंस ने चलान पेश नहीं किया। चूंकि इस मामले में धूमल को भी आरोपी बनाया गया था तो भाजपा का एक प्रतिनिधिमंडल कल्याण से मिला। इस बीच धूमल ने ज्ञापन कल्याण सिंह को दिया व कहा कि उनके खिलाफ मामले में राज्यपाल उर्मिल सिंह ने अभियोजन की मंजूरी की जरूरत न होने का आदेश दे रखा है। विजीलेंस उनके खिलाफ चालान पेश करने वाली है।उन्होंने दखल का आग्रह किया।इस ज्ञापन में धूमल ने सिर्फ अपने आरोपी होने का ही जिक्र किया। मामले में बाकी आरोपियों ए एनशर्मा,रवि ढींगरा व पी सीकपूर का कहीं कोई जिक्र नहीं था। ये दिलचस्प था।
राज्यपाल ने वीरभद सरकार से पूरी फाइल वापस मांगी ।जब तक राज्यपाल की चिटठी सचिवालय के बाबूओं के हाथों डील होती तब तब विजीलेंस ने अचानक तेजी दिखाते हुए शिमला के स्पेशल जज वन की अदालत में चालान पेश कर दिया। सरकार ने इसके बाद फाइल राज्यपाल को भेज दी व ये जानकारी भी दी कि चालान पेश कर दिया है।
राज्यपाल कल्याण सिंह ने इस फाइल में लिखा कि इस मामले में राज्यपाल से अभियोजन की मंजूरी लेने की जरूरत थी और धूमल को इस मामले में आरोपी नहीं बनाया जा सकता और फाइल वापस सरकार को भेज दी।
चूंकि चालान पहले ही पेश हो चुका था तो ट्रायल कोर्ट ने मामले में संज्ञान लिया और धूमल समेत सभी आरोपियों को सम्मन भेज दिए। इस पर धूमल ने हाईकोर्ट में चुनौती दे दी कि विजीलेंस ने चालान में कल्याण सिंह के आर्डर को रिकार्ड में नहीं लाया गया है। हाईकोर्ट ने सरकार से जवाब मांगा।आज सुनवाई पूरी हुई तो फैसला सुरक्षित हो गया है।
एएन शर्मा को दोबारा नौकरी देने का मामला ये है-: 2012 के आखिर में विधान सभा चुनावों में भाजपासे टिकट लेने की मंशा से एएनशर्मा ने आईपीएस की नौकरी से इस्तीफा दे दिया था। लेकिन उन्हें टिकट नहीं मिला तो इस्तीफा देने के एक महीना बाद वीरभद्र सरकार ने नियमों का हवाला देते हुए उनका इस्तीफा मंजूर कर लिया।इस बीच एएन शर्मा ने सरकार से कहा था कि उन्होंने इस्तीफा वापस लेने के लिए एक महीना पूराहोने से पहले ही चिटठी लिख दी थी। वो कैट में चले गए। कैट से उन्हें स्टे मिल गया। इसके बाद हुए चुनाव में प्रदेश में धूमल सरकार बन गई और उन्हें दोबारा नौकरी पर बहाल कर दिया गया।
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