शिमला।पूर्व आईपीएस अफसर एएन शर्मा मामले में पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल की ओर से दिए खुद को पाक साफ बताने को लेकर दिए रिप्रेजेंटेंशन पर बड़ा कांड करते हुए राज्यपाल कल्याण सिंह ने इस मामले में अभियोजन मंजूरी की फाइल जयपुर मंगाई है।इस मामले में प्रदेश की वीरभद्र सिंह सरकार ने बीते शुक्रवार को अदालत भी चालान पेश कर दिया है। बताते है कि इस मामले में कल्याण सिंह कोई बड़ा कांड कर वीरभद्र सिंह सरकार को फिर मजा चख्ााने जा रहे है। ये पहली बार है कि किसी राज्यपाल ने अदालत में पहुंच चुके मामले की अभियोजन मंजूरी की फाइल को वापस मंगाया हो।
सूत्रों के मुताबिक 13 मार्च को जिस दिन धूमल ने ये रिप्रेजेटेशन कल्याण सिंह को थमाया उसी दिन कल्याण सिंह ने चीफ सेक्रेटरी को फरमान जारी कर दिया कि वो इस फाइल को तुरंत राजभवन पहुंचाए।चीफ सेक्रेटरी ने सचिव जीएडी मोहन चौहान को फाइल पुट अप कराने के आदेश दिए। मोहन चौहान ने दूसरेदिन शाम को फाइल मित्रा के पास पहुंच दी।वहां से जब फाइल सीएम केपास पहुंची तो वो हैरान रह गए। कानूनविदों से सलाह ली गई और फाइल वहीं रुक गई। चूंकि वीरभद्र सिंह बेटी की शादी थी तो फाइल लटकाने का बहाना मिल गया। इस बीच राज्यपाल ने चालान पेश होने के बाद फिर पी मित्रा को फरमान निकाला कि फाइल तुरंत भेजे। तब कहीं जाकर फाइल वीरवार को राजभवन पहुंची।उधर जब इस फाइल व धूमल केरिप्रेजेंटेशन का पता शिमला के एक भाजपा नेता को चलातो उसने टिप्पणी की अरे ,उन्हें तो इस बावत कुछपता ही नहीं । वो भी हैरान रह गए कि धूमल क्या कररहे है।ये नेता एक अरसे से धूमल के करीबियों में गिने जाते रहे हैंा
गौरतलब हो कि 13 मार्च को धूमल व पार्टीअध्यक्ष सतपाल सती की कमान में भाजपा मुख्यालय पर 29 जनवरी को हुए खूनीकांड की जांच कराने को कल्याण सिंह को ज्ञापन दिया था। उसी दिन धूमल ने व्यक्तिगत तौर पर राज्यपाल को एक तीन पन्नों का रिप्रेजेंटेशन दिया। जिसमें उन्होंने कहा कि वीरभद्र सिंह सरकार ने पूर्व आईपीएस अफसर ए एन शर्मा की दोबारा नौकरी बहाली पर उन्हें गलत मुलजिम बनाया है।उनका इस मामले से कोई लेना देना नहीं है।जो कार्यवाही भी हुई वह अधिकारियों ने जो उन्हें फाइल भेजी उसके मुताबिक हुई। इसलिए उनके खिलाफ जो मामला चलाया जा रहा है उसकी समीक्षा की जाए।
।धूमल सरकार ने पूर्व आईपीएस शर्माको 2008 में दोबारा नौकरी पर बहाल कर दिया था।शर्मा ने तब भाजपाके टिकट पर चुनाव लड़ने की मंशा से अपने पद से इस्तीफा दे दियाथा। वो कायदे से एक महीने की अवधि में अपना इस्तीफा वापस ले सकते थे। लेकिन 2007 में जिस दिन ये एक महीना पूरा हुआ उस दिन सरकार केपास इस्तीफा वापस लेने का कोई दस्तावेज सचिवालय के रिकार्ड में नहीं था।जिस पर तत्कालीन सरकार ने उनका इस्तीफा मंजूर कर दिया।इसके सात दिन बाद भाजपा के टिकटों का एलान हुआ और ए एन शर्मा कहीं कोई नाम नहीं था।शर्मा ने अपने इस्तीफे को मंजूर किए जाने को इस दलील पर चुनौती दी कि उन्होंने तो एक महीना पूरे होने के दिन ही इस्तीफा वापस लेने की चिटठी सरकार को लिख दी थी। इस पर कैट ने सरकार की ओर सेउनके इस्तीफा मंजूर किए जाने के फॅैसले को स्टे दे दिया। इस बीच प्रदेश में धूमल सरकार सतासीन हो गई और शर्मा ने सरकार को एक रिप्रेजेंटशन देकर खुद की बहाली का आग्रह किया।जिसपर धूमल ने एग्जामिन लिख कर फाइल अफसरोंको सरका दी।इस तरह शर्मा की बहाली हो गई।इस मामले की 2012 में वीरभद्र सिंह के सतासीन होने पर शिकायत हुई और एसपी सोलन रमेश छाजटा को जांच का जिम्मा सौंपा गया। छाजटा ने इस मामले में धूमल,तत्कालीन चीफ सेक्रेटरी रवि ढींगरा,तत्कालीन गृह सचिव पीसी कपूर व ए एनशर्मा को मुलजिम बना दिया ।
अफसरों ने इस मामले में अभियोजन मंजूरी के लिए फाइल तत्कालीन राज्यपाल उर्मिल सिंह को भेज दी। राज्यपाल उर्मिल सिंह ने इस साल की20जनवरी को फाइल भेजने वाले अफसरों के खिलाफ मेजर पेनाल्टी के आदेश देकर फाइल वापस वीरभद्र सिंह सरकार को भेज दी।साथ ही सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का हवाला देकर अपने आदेश में लिख दिया दिया कि इस तरह के मामले में राज्यपाल से अभियोजन मंजूरी लेने की कोई जरूरत नहीं है।उनके पास फाइल भेजना मिसकंडक्ट है।
इसके बाद20जनवरी से लेकर 12मार्च तक वीरभद्र सिंह के अफसरों ने इस मामले में अदालत में चालान पेश नहीं किया। जबकि कायदे से ये जनवरी महीने में ही अदालत में पेश हो जाना चाहिए था। जब धूमल ने इस मामले में राज्यपाल को रिप्रेजेेंटेशन देने की मुहिम चलाकर इसकी समीक्षा करने का दांव चला तो अफसरों ने 12 मार्च को अदालत में चालान पेश कर दिया।
(2)