शिमला।प्रदेश के कानूनविदों ने राज्यपाल शिव प्रताप शुक्ल की ओर से आज डा. यशवंत सिंह परमार बागवानी व वानिकी विवि नौणी सोलन के मौजूदा कुलपति प्रोफेसर राजेश्वर सिंह चंदेल को अगले आदेशों तक कुलपति का कार्याभार संभालने को लेकर जारी आदेश कहीं प्रदेश हाईकोर्ट के एक मई 2025 के आदेशों की अवमानना तो नहीं है,इस बावत मंथन शुरू कर दिया हैं।
साथ ही समझा जा रहा है कि प्रोफेसर चंदेल की नियुक्ति को चुनौती देने वाली याचिका की 22 मई को होने वाली सुनवाई के दिन भी राज्यपाल के इस आदेश को हाईकोर्ट के सामने लाया जाएगा।
याद रहे राज्यपाल शिव प्रताप शुक्ल प्रदेश के सभी विश्वविद्यालयों के कुलाधिपति भी हैं।
राज्यपाल प्रदेश के राज्यपाल शिव प्रताप शुक्ल ने आज छह मई को आदेश जारी किए कि हिमाचल प्रदेश यूनिवर्सिटीज आफ एग्रीकल्चर, हार्टीकल्चर एंड फारेस्टरी एक्ट 1986 की धारा 24 की उपधारा या उपबंध 3 के तहत उन्हें मिली शक्तियों का प्रयोग कर वो नौणी विवि के कुलपति राजेश्वर चंदेल को 9 मई के बाद भी कुलपति का प्रभारी जारी रखने की इजाजत देते हैं।
इसी आदेश के बाद अकादमिक गलियारों के अलावा कानूनी विशेषज्ञों के बीच भी सवाल उठने शुरू हो गए हैं।
राज्यपाल हिमाचल प्रदेश के पहले नागरिक है और सबसे बड़ा संवैधानिक पद हैं। राज्यपाल जब पद की शपथ लेते है तो उनकी शपथ में कहा जाता है कि वो संविधान की रक्षा करेंगे। यानी संविधान और संविधान की मूल भावनाओं की रक्षा करना राज्यपाल का दायित्व संवैधानिक तौर पर बन जाता हैं। लेकिन उनके इस आदेश ने कई संवैधानिक और नैतिक सवाल खड़े कर दिए है। हालांकि तकनीकी तौर पर वो अपनी ओर से दलीलें पेश कर सकते हैं लेकिन राज्यपाल के स्तर पर तकनीकी तौर पर चीजें नहीं होनी चाहिए।
ये है मामला
प्रोफेसर राजेश्वर चंदेल का बतौर नौणी विवि कुलपति कार्याकाल आठ-नौ मई को समाप्त हो रहा हैं। लेकिन इस बीच उनकी नियुक्ति को प्रदेश हाईकोर्ट में चुनौती दी गई हैं।
इस बावत दायर याचिका में चौधर सरवण कुमारी कृषि विवि के कुलपति की नियुक्ति को लेकर राजभवन की ओर से शुरू की गई प्रक्रिया को गैरकानूनी करार देने वाली याचिका पर हाईकोर्ट के फैसले का हवाला दिया गया हैं।
इस याचिका में कहा गया हैं कि पालमपुर विवि के कुलपति के चयन के लिए जो समिति गठित की गई थी उसमें कुलाधिपति की ओर का एक नामित सदस्य, यूजीसी की ओर से नामित एक सदस्य और आइसीएआर के महानिदेशक की ओर से नामित एक सदस्य शामिल किया गया था ।
जबकि एक्ट में प्रावधान है कि इस समिति में भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान यानी आइसीएआर के महानिदेशक का शामिल होना चाहिए न कि उनका कोई नामित सदस्य।
पालमपुर विवि के कुलपति के चयन के लिए जो समिति बनी थी उसमें आइसीएआर के महानिदेशक सदस्य नहीं थे। प्रदेश हाईकोर्ट के जस्टिस न्यायमूर्ति तिरलोक सिंह चौहान और न्यायमूर्ति सुशील कुकरेजा ने इस समिति के गठन को 26 मार्च को रदद कर दिया था।
इस फैसले के बाद नौणी विवि के एक प्रोफेसर धर्म पाल शर्मा ने नौणी विवि के कुलपति राजेश्वर चंदेल की नियुक्ति को प्रदेश हाईकोर्ट में चुनौती दे दी ।इस याचिका में उन्होंने दलील दी है कि प्रोफेसर चंदेल की नियुक्ति जिस समिति ने की थी उसमें भी आइसीएआर के महानिदेशक शामिल नहीं थे।
इस समिति में हिमाचल विवि के प्रोफेसर सत प्रकाश बंसल कुलाधिपति के मनोनीत सदस्य थे जबकि यूजीसी के अध्यक्ष की ओर से प्रोफेसर संजीव जैन और आइसीएआर के महानिदेशक की ओर से डा. आर सी अग्रवाल को मनोनीति किया गया था। जबकि विवि एक्ट के मुताबिक समिति में आइसीएआर के महानिदेशक को शामिल होने का प्रावधान हैं। याचिका में चंदेल की नियुक्ति को भी गैरकानूनी ठहराने की मांग की गई हैं।
इस याचिका की सुनवाई करते हुए 1 मई को न्यायमूर्ति संदीप शर्मा ने सभी पक्षों को जवाब देने के लिए दो सप्ताह का समय दिया है और दो सप्ताह रिज्वाइंडर दायर करने के लिए दिए हैं। इस आदेश में साफ तौर पर कहा है :Needless to say, during pendency of petition,selection/appointment on regular or officiating basis, if any, to the post of Vice Chancellor, shall be made strictly in terms of the Act. List on 22.05.2025.
यानी कुलपति को officiating basis पर किसी को नियुक्त करना है तो भी विवि के एक्ट के मुताबिक ही नियुक्त किया जाना हैं। उधर,पालमपुर विवि के कुलपति की नियुक्ति की प्रक्रिया को लेकर दायर याचिका का फैसला राज्यपाल के नोटिस है। ऐसे में राज्यपाल के नोटिस में नौणी विवि के कुलपति यानी प्रोफेसर चंदेल की नियुक्ति के लिए गठित समिति का ब्योरा भी है। ऐसे में ये तो जाहिर ही है कि प्रोफेसर चंदेल की नियुक्ति पर भी गैरकानूनी होने की मोहर लग सकती हैं। जब अदालत की ओर से तलवार लटकी ही हुई है तो फिर ऐसे व्यक्ति को कुलपति के कार्यभार को जारी रखना प्रथम दृष्टया हाईकोर्ट के आदेशों की भी तोहीन ही मानी जाएगी।
राज्यपाल का पूरा सचिवालय होता है। जाहिर तौर पर इस मसले पर कानूनी जटिलताओं और संविधान की मर्यादाओं के अलावा नैतिक तकाज़ों को भी जेहन में रखा ही होगा।
राज्यपाल के स्तर पर तकनीकी तौर पर फैसले नहीं लिए जाने की संवैधानिक परंपराएं हैं । इस स्तर पर संविधान की मूल भावनाओं का सम्मान किया जाना अपेक्षित रहता हैं। खासकर हिमाचल में जहां पर अफलातूनी करतूतों को बुरा माना जाता हैं। लेकिन बावजूद इसके प्रोफेसर चंदेल को कुलपति के कामकाज को देखते रहने की इजाजत देने का आदेश निकालना राज्यपाल की छवि को अघात लगाने वाले ही कहा जाएगा ।
चुकि मामला हाईकोर्ट में है तो राज्यपाल को न्यायपालिका का सम्मान करते हुए किसी वरिष्ठ प्रोफेसर को कुलपति का प्रभार दे देना चाहिए था। कायदे से तो उन्हें पहले ही कुलपति की नियुक्ति को लेकर प्रक्रिया शुरू कर देनी चाहिए थी और एक्ट और 26 मार्च के प्रदेश हाईकोर्ट के फैसले की रोशनी में समिति गठित कर देनी चाहिए थे। लेकिन ये सब नहीं हुआ। जबकि कायदे को चंदेल से उसी दिन कार्यभार वापस ले लेना चाहिए था जिस दिन पालमपुर विवि के कुलपति की नियुक्ति प्रक्रिया को हाईकोर्ट ने अवैध ठहराया था।
उधर, मई के बाद प्रदेश के तीनों विवि अब बिना स्थाई कुलपति के रह जाएंगे।
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