शिमला। पंथाघाटी स्थित एपीजी यूनिवर्सिटी की पैमाइश को लेकर राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की ओर से गठित की गई कमेटी से यूनिवर्सिटी सवालों के घेरे में आ गई। यूनिवर्सिटी और बोर्ड के बीच यूनिवर्सिटी कितने एरिया में बनी है इसे लेकर विवाद खड़ा हो गया है। बोर्ड का कहना है कि ये 20 हजार वर्गमीटर से ज्यादा एरिया में बनी है तो यूनिवर्सिटी इसे इससे कम बता रही है। यहां यूनिवर्सिटी बन कर खड़ी भी हो गई है और लेकिन प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड इस प्राइवेट यूनिवर्सिटी को इंवायरनमेंट इंपेक्ट असेसमेंट कराने के लिए नोटिस पर नोटिस भेज रहा है।मजे की बात ये है कि बोर्ड के सचिव चीफ सेक्रेटरी खुद है और मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के का बोर्ड कमाउ पुत है।
बोर्ड ने ये सिलसिला 2011 से चलाया हुआ है । लेकिन मजे की बात है बोर्ड ने यूनिवर्सिटी प्रबंधन के खिलाफ न तो कोई एफआईआर दर्ज की है और न ही कोई जुर्माना किया है और न ही काम रोका। यूनिवर्सिटी के साथ- साथ बोर्ड के अधिकारियों की सारी कार्रवाइयां सवालों में आ गई है।
अगर यूनिवर्सिटी का दावा सही है तो बोर्ड को नोटिस भेजने की क्या जरूरत पड़ी।साथ ही 2011 से लेकर अब तक कार्रवाई क्यों नहीं हुई। दूसरे अगर यूनिवर्सिटी 20 हजार वर्ग मीटर से ज्यादा एरिया पर बनी है तो वो एरिया कम क्यों बता रही है।
यूनिवर्सिटी के काम के दौरान मलबे की डंपिंग वैज्ञानिक तरीके से हुई है या नहीं । सेप्टिक टैंक पूरी क्षमता का है या नहीं । इन सब मसलों पर प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड ने दर्जनों तस्वीरें लेकर एक रिपोर्ट बोर्ड के कार्यालय में जमा करा रखी है। सब कुछ बोर्ड की जानकारी में है। लेकिन कार्रवाई के नाम पर केवल नोटिस भेजे गए है।
इस रिपोर्ट में
प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड के मेंबर सेक्रेटरी की ओर से 14 फरवरी 2013 को एपीजी यूनिवर्सिटी को एक लीगल नोटिस भेजा गया था। दो पन्ने के इस नोटिस में मेंबर सेक्रेटरी ने लिखा कि यूनिवर्सिटी प्रबंधन ने इंवायरमेंट क्लीयरेंस और बोर्ड से जरूरी मंजूरी के बिना ही निर्माण कार्य शुरू कर दिया है। यूनिवर्सिटी का कुल बिल्ट अप एरिया 35487.32 वर्ग मीटर है जो 20 हजार वर्ग मीटर से ज्यादा है। इसलिए
कानूनन इंवायरनमेंट इंपेक्ट असेसमेंट कराई जानी चाहिए थी। इसी पत्र में मेंबर सेक्रेटरी ने लिखा है कि बोर्ड ने 28 फरवरी 2011,28 मार्च,30 अप्रैल,27 जुलाई,29 दिसबंर,26 मई 2012,30 नवंबर 2012 को बोर्ड की ओर से काम रोकने के नोटिस भेजे गए।बावजूद इसके न तो अवैध काम रोका गया और न ही बोर्ड के निर्देशों का पालन किया गया । बोर्ड ने इस नोटिस में भी कहा है कि कानूनों का उल्लंघन सही पाए जाने पर सात साल की सजा और जुर्माना हो सकता है।ये नोटिस एपीजी गोयल चेरिटेबल ट्रस्ट के वाइस प्रेसिडेंट कर्नल पंकज गोयल,एपीजी यूनिवर्सिटी शिमला के चेयरमैन प्रमोद गोयल रजिस्ट्रार राजन सहगल के नाम से भेजे गए है।
इससे पहले बोर्ड के इंवायरनमेंट इंजीनियर ने 28 फरवरी 2011 को एक शो कॉज नोटिस भी भेजा है। जिसमें कहा गया है कि 23 फरवरी2011 को की गई इंस्पेक्शन में पाया गया कि यूनिवर्सिटी खड़ी करने के लिए अधिग्रहित की गई 226 बीघा जमीन पर इंवायरनमेंट अनफ्रेंडली तरीके से काम किया जा रहा है। संभावना है कि निर्माण से निकलने वाला मलवा समीप के नालों में जाएगा ये प्रदूषण के लिए खतरा है।इस नोटिस में भी यूनिवर्सिटी को आगाह किया गया है कि इस तरह के प्रोजेक्ट शुरू करने से पहले केंद्रीय पर्यावरण व वन मंत्रालय से इंवायरंमेंट क्लीयरेंस की जरूरत होती है। इसके अलावा प्रोजेक्ट इस्टेब्लिश करने से पहले बोर्ड की कंसेंट भी चाहिए। फरवरीमेंभेजे गए इस नोटिस में यूनिवर्सिटी को चेतावनी भी दी गई है कि अगर नोटिस की नाफरमानी हुई तो कार्रवाई शुरू कर दी जाएगी।मजे की बात है कि 2011 से लेकर अब बोर्ड के इन नोटिसों के बीच यूनिवर्सिटी खड़ी भी हो गई और बोर्ड की ओर से कोई कार्रवाई नहीं हुई है।
यूनिवर्सिटी ने 11 सितंबर को बोर्ड की ओर से भेजे लीगल नोटिस का जवाब भेजा है।डायरेक्टर पर्यावरण के नाम से भेजे इस जवाब यूनिवर्सिटी ने है कि बोर्ड यूनिवर्सिटी को इंवायरंमेंट इंपेक्ट असेस्मेंट कराने के लिए खामख्वाह नोटिस पर नोटिस भेज रहा है। यूनिवर्सिटी का बिल्ट अप एरिया।20 हजारवर्ग मीटर से कम है। इसलिए उन्हें इंवायरंमेंट इंपेक्ट असेस्मेंट कराने की जरूरत नहीं है।सवाल खड़ा हो गया है कि अगर यूनिवर्सिटी 20 हजार वर्गमीटर से कम एरिया पर बन गई है तो ट्रस्ट ने भू राजस्व अधिनियम की धारा 118 के तहत 226 बीघा जमीन क्यों खरीदी है।इस मसले पर डिप्टी सेक्रेटरी रेवन्यू मलूक सिंह ने कहा कि अगर यूनिवर्सिटी कम एरिया पर बन रही है तो बाकी बची जमीन को जिला उपायुक्त वापस लेने की कार्यवाही चला सकते है। अगर ऐसा है तो ये धारा 118 का उल्लंघन है।
बोर्ड के मेंबर सेक्रेटरी ने अब 17 सितंबर को बोर्ड के तीन अधिकारियों की एक समिति गठित की है।जिसमें इंवायरंमेंट इंजीनियर,एसडीओ और इंवायरंनमेंट प्लानर शामिल है। इसे समिति को इस यूनिवर्सिटी को इंस्पेक्ट करने और इसे नापने के आदेश दे रखे है।
उधर,बोर्ड के सीनियर इंवायरनमेंट इंजीनियर डी के शर्मा ने कहा कि सरकार से इस तरह के आदेश आए है। जल्द ही टीम पैमाइश करने जाएगी।वो खुद मानते है कि इंवायरंमेंट इपेक्ट असेस्मेंट प्रोजेक्ट शुरू करने से पहले करायी जानी चाहिए। साथ में वो ये भी जोड़ते है कि अगर पर्यावरण नियमों का उल्लंघन नहीं है तो इंवायरंमेंट इंपेक्ट असेस्मेंट बाद में करायी जा सकती है।वो इन दिनों मेंबर सेक्रेटरी का प्रभार भी देख रहे है। लेकिन कागजातों में ऐसा प्रावधान नहीं है।
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