शिमला।रोहड़ू में नशा तस्करों, वन भूमि पर अवैध कब्जों व वन काटुओं के खिलाफ वन मैन आर्मी की तरह मुहिम छेड़ने वाले Whistleblower सुरेंद्र कुमार पापटा ने प्रदेश में वन भूमि पर अवैध कब्जों के मुकदमों का निपटान फास्ट ट्रैक अदालतों के जरिए करने की मांग की हैं।
यहां जारी प्रेस विज्ञपित में पापटा ने दावा किया कि कई इलाकों में अवैध कबजों से बेदखली के बाद अतिक्रमणकारी दोबारा कब्जा कर रहे हैं और वहां पर खेती और बागवानी फिर से शुरू हो गई है। यही नहीं कई मामलों में बिजली-पानी के कनेक्शन भी बहाल हो गए हैं, जो कोर्ट के आदेशों का खुला उल्लंघन है।
प्रभावशाली अतिक्रमणकारी धनबल का उपयोग कर और कुशल वकीलों के जरिए मामलों को अदालतों में मामलों को लंबा खींच रहे हैं।
उन्होंने कहा कि प्रदेश हाई ने 31 मार्च 2025 तक सभी अतिक्रमण हटाने के स्पष्ट आदेश दिए थे लेकिन जमीनी स्तर पर अवैध कब्जों के खिलाफ मुहिम थम सी गई हैं। वन विभाग और पुलिस प्रशासन के बीच समन्वय की कमी, संसाधनों का अभाव, और अतिक्रमणकारियों द्वारा कानूनी खामियों का दुरुपयोग इस देरी के प्रमुख कारण हैं।
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हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के बार-बार निर्देशों के बावजूद अवैध कब्जों को हटाने की प्रक्रिया धीमी है। वन विभाग ने कई क्षेत्रों में डिमार्केशन (निशानदेही) शुरू की है, लेकिन नियमित निगरानी और सख्ती के अभाव में दोबारा अवैध कब्जे की घटनाएँ बढ़ रही हैं। यह स्थिति न केवल कानूनी व्यवस्था पर सवाल उठाती है, बल्कि हिमाचल जैसे पर्यावरणीय रूप से संवेदनशील राज्य के लिए दीर्घकालिक खतरा भी पैदा कर रही है।
उधर वन विभाग ने पुलिस पर बेदखली के दौरान सुरक्षा प्रदान न करने का आरोप लगाया है, जबकि पुलिस स्टाफ की कमी और अन्य बहानों का हवाला दे रही है। वन विभाग में भी कर्मचारियों और संसाधनों की कमी कार्रवाई में बाधा बन रही है।
उन्होंने कहा कि अतिक्रमणकारियों और वन अधिकारियों के बीच झड़पें और हाथापाई की घटनाएँ बढ़ रही हैं। रैलियों और शक्ति प्रदर्शन के जरिए कुछ प्रभावशाली लोग प्रशासन पर दबाव बना रहे हैं।
उन्होंने कुछ सुझाव देते हुए कहा कि वन भूमि पर अतिक्रमण मामलों के लिए फास्ट-ट्रैक कोर्ट की स्थापना की जाए,वन अधिकार अधिनियम (2006) के तहत दावों का त्वरित सत्यापन किया जाए।ड्रोन और सैटेलाइट इमेजरी के जरिए नियमित निगरानी की जाए। इसके अलावा वन विभाग और पुलिस के बीच बेहतर समन्वय के लिए स्पष्ट दिशा-निर्देश दिए जाने चाहिए और स्थानीय समुदायों को वन संरक्षण के लिए जागरूक किया जाना चाहिए।
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