शिमला। जिसे बालपन से ही मां ने सौंदर्यबोध का रस पिला दिया हो उनकी कूची को छू कर तमाम रंग सौंदर्य की छटा को अनायास ही बिखेर दे रहे हैं।
गेयटी थियेटेर में छोटा शिमला में जन्मी गीताजंली ठाकुर की ‘कलर्स ऑफ करेज’ के नाम से चित्रकला प्रदर्शनी लगी है जिसमें सौंदर्य भर-भर कर फूट रहा हैं। साथ ही धर्म और अध्यात्म की छौंक भी झलक रही हैं। बौध धर्म और हिंदू धर्म में ‘मंडल’ का अपना महत्व हैं। खास कर बौद्ध धर्म के कर्मकांड में ‘मंडल’ का महत्वपूर्ण स्थान हैं।
उप पुलिस अधीक्षक मुख्यालय गीताजंली ठाकुर की कलम से उकेरे गए हर तरह के ‘मंडल’ लुभावने लग रहे हैं। वह कहती भी है कि जिंदगी में सब कुछ डॉट यानी बिंदु यानी शून्य से शुरू होता है और जीवन अलग –अलग पैटर्न में आगे बढ़ता हैं। ‘मंडल’ में ये ही उकेरा जाता है। बौद्ध धर्म में तो ये सब रेत पर बनाया जाता है जो बाद में नष्ट हो ता है। यानी जीवन नश्वर हैं।
गीताजंलि ठाकुर को सौंदर्यबोध अगर मां अंजू ठाकुर से विरासत में मिला है तो अध्यात्म की अलख बौद्ध गुरु दलाई लामा और डेसमंड टुटू की किताब ‘द बुक ऑफ ज्वॉय’ने जलाई। हिमाचल पुलिस सेवा की 2018 बैच की अधिकारी गीताजंली ठाकुर दर्शन की अध्येता हैं। इसके अलावा उन्हें रंगों से खेलना खूब भाता हैं। वह कहती भी है कि रंग जीवन में आनंद भर देते हैं।
गीताजंली का रंगों से खेलने का सफर बेहद छोटी उम्र में शुरू हो गया था। वह कहती है कि संभवत: ऑकलैंड स्कूल में तीसरी कक्षा की छात्रा थी जब राजधनी में डॉग शो लगा था। उसमें उन्होंने एक चित्र उकेर दिया जिसमें उन्होंने एक कुते के हाथों में किताब थमा दी थी। ये चित्र खूब सराहा गया और उन्हें ईनाम भी मिला ।उनका कूची और रंगों से तभी से वास्ता शुरू हो गया जो अब तक चल रहा हैं।
‘मंडल’ के अलावा उनकी ‘कलर्स ऑफ करेज’ प्रदर्शनी में लगी कलाकृतियों में बेहद खूबसूरत लैंडस्कैप की मौजूदगी भी हैं। खासकर चंद्र ताल और दूसरी ऊंची पर्वत चोटियों के बेहद मनोरम दृष्य उकेरे गए है।
उनकी कूची के स्ट्रोक इतने सधे हुए चले है कि पर्वत चोटियों पर सूरज की किरणें जिस तरह रंगों से उभरे है वो बेमिसाल हैं। राइजिंग सन के साथ पर्वत चोटियों की आभा देखते ही बनती हैं। उनके कलाकृतियों के दृष्य ‘फुल ऑफ लाइफ’ होते हैं जिनको रंगों से उकेरना उन्हें बेहद भाता हैं।
गीताजंली ठाकुर कहती भी है कि उन्हें पहाड़ व पानी बेहद पसंद हैं। पानी में दिखाता है जबकि पहाड़ धैर्य की मूरत होते हैं।
गीताजंली ठाकुर पहले बैंकर्स थी लेकिन पिता गोपाल ठाकुर का सपना था कि वो पुलिस अधिकारी बने तो उन्होंने मेहनत की और 2018 में हिमाचल पुलिस सेवा में जाने का पिता का सपना पूरा कर दिया।
कला, कोमल भावों को रंगों के जरिए कैनवास में उकेर देने का काम हैं। जबकि पुलिस का पेशा अपराधियों के बीच बीतता है जहां क्रुरता है,काइयांपन है,तमाम तरह के झंझावातों वाले कृत्य है।ऐसे में खाकी की पेशगत दुनिया के साथ-साथ गीताजंली ने कलम थाम रखी हैं।हालांकि उनकी कृतियों में मुगल कलम की तरह क्रुरता और हिंसा नहीं हैं लेकिन खाकी जीवन में जिए व देखे जाने वाले झंझावतों की झलक भी ज्यादा नहीं हैं।
वो कहती है कि उनके पेश में अगर धैर्य से किसी के दर्द को सुन भी लिया जाए तो आधा दर्द तो वहीं खत्म हो जाता हैं।वो क्रुरता की जगह कोमलता को अधिमान देती हैं।बहरहाल, ‘कलर्स ऑफ करेज’ की कृतियों में ये सब झलकता भी है।
उनकी कृतियों में फूलों की अठखेलियां भी खूब नजर आती हैं। वो कहती है कि उनकी कलम से जो फूलों को उकेरा गया है,वो उनकी मां की वजह से है। ‘मां को फूल बेहद पसंद हैं।‘ मां की पसंद उनकी कलम से कैनवास पर इसीलिए उतर पाई हैं।
गीताजंली ने चित्रकला किसी से नहीं सीखी। वो कहती है कि कभी यूटयूब से देख लेती हैं।
आज के दौर में जब हर कोई फेसबुक और इंस्टाग्राम के जाल से बाहर नहीं निककल पा रहे हैं गीताजंली कहती है कि वो न तो फेसबुक चलाती है और न ही इंस्टा पर सक्रिय है। टीवी पर भी वो केवल क्रिकेट देखती हैं।ये समय वो रंगों से खेलती हैं और उनके साथ उनका बेटा वियान ठाकुर भी इस खेल में शामिल हो जाता हैं। वो कहती है उनका बेटा मोबाइल पर बहुत कम रहता हैं। उसे भी रंगों से खेलना पसंद हैं। इसके अलावा वो गिटार की तारों को झंकृत करने में जुटा रहता हैं।कभी उन्होंने ने भी गिटार पर हाथ आजमाने की कोशिश की लेकिन वो चल नहीं पाया। उनकी कृतियों में अब्ट्रेक्टस भी शामिल हैं।
गीताजंली ठाकुर की इस एकल प्रदर्शनी ‘कलर्स ऑफ करेज’का आगाज आज पुलिस महानिदेशक अतुल वर्मा ने किया व तमाम पुलिस अधिकारी भी इस मौके पर मौजूद रहे हैं।गीताजंली कहती है कि कलर्स यानी कोमलता यानी कला और करेज यानी कॉप यानी खाकी ।‘कलर्स ऑफ करेज’ नाम इसीलिए दिया गया है।
इस प्रदर्शनी में उन्होंने ढाइ सौ से ज्यादा कलाकृतियों को सजाया हैं
छायाचित्र: मोहन वर्मा
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