शिमला। करीब महीने भर के अपने सताकाल में जयराम ठाकुर सरकार ने पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल और उनके लाडलों को हाशिए पर धकेलने का काम कर दिया हैं। ये दीगर हैं कि उनके करीबियों को कुछ ओहदें जरूर दिए हैं। जयराम ठाकुर सरकार के साथ मोदी सरकार में मंत्री जगत प्रकाश नडडा महत्वपूर्ण होते जा रहे हैं। पहले ये महत्व धूमल पुत्र व भाजपा सांसद अनुराग ठाकुर के पैरों लोटता था। लेकिन अब फिजां बदल चुकी हैं।
प्रेम कुमार धूमल का कहीं नामो निशान नहीं हैं। पिता व पुत्र हमीरपुर में सांसदी की सीट बचाने की रणनीति पर चल रहे हैं। 2019 में लाकसभा के चुनाव हैं व भाजपा सांसद अनुराग ठाकुर के सामने पहले अपना टिकट बचाने व उसके बाद जीतने की चुनौती हैं। खतरा कांग्रेस से कम भाजपा के भीतरी तत्वों से ज्यादा हैं। जो खेल कभी धूमल व उनका खेमा खेलता रहता था,वही खेल अब धूमल व उनके पुत्रों के साथ खेला जाने लगा हैं।
बीते रोज चंबा में एसपाइरेशनल जिला प्रोजेक्ट की बैठक में धूमल खेमे से कोई नहीं था। न अनुराग ठाकुर थे और कोई और नेता था। मंडी से भाजपा सांसद रामस्वरूप शर्मा जो जयराम ठाकुर के साथ साए की तरह चले हुए हैं, वह जरूर थे। शांताकुमार भी थे। शांता धूमल विरोधियों के गुरू हैं। यह अलग मसला है कि चंबा हमीरपुर नहीं कांगड़ा संसदीय हलके का हिस्सा हैं। ऐसे में धूमल व उनके करीबियों का कोई वास्ता न रखा गया हो।
नई संवरी आरएसएस धूमल व उनके खेमे के नेताओं को जयराम ठाकुर के नजदीक नहीं रखने देना चाह रही हैं। उसे डर है कहीं सरकार पर धूमल अपनी छाया न डाल दें। जयराम ठाकुर सरकार अभी तक भ्रष्टाचार से लेकर गवर्नेंस तक में कोई बड़ा संदेश नहीं दे पाई हैं। हनीमून मोड पर चली हुई हैं। अभी तक के बड़े फैसले बाबा रामदेव समेत दूसरे कारोबारियों के हितों के लिए ही लिए गए हैं। नियुक्तियों को लेकर भी यही संदेश जा रहा हैं कि जिस तरह वीरभद्र सिंह अपने लाडले लाडलियों को नियुक्तियां देते थे और बाकियों को दूर फेंक देते थे ,जयराम ठाकुर सरकार भी वैसा कुछ ही कर रही हैं।
नेता प्रतिपक्ष मुकेश अग्निहोत्री तो हमले पर आ भी गए हैं कि सरकार को आरएसएस रिमोट से चला रही हैं। संभवत: उनके समेत कांग्रेस को डर है कि कहीं जांच का चाबुक चला तो उन्हें मुश्किल होगी। लेकिन जयराम ठाकुर सरकार ने अभी तक भ्रष्टाचार के मसले पर कदम भी आगे नहीं बढ़ाया। कोटी रेंज में चार सौ के करीब काटे पेड़ों के मामले में एक सप्ताह के बाद गिरफतारी की गई। ये सरकार के कमजोर हौसलों को दर्शाती हैं। जबकि कानून साफ है कि इतने पेड़ों के कटने पर पहले गिरफतारी व बरामदगी हैं। बाकी सब कुछ बाद में होना हैं।
इसी तरह भाजपा की ओर से दी गई चार्जशीट में भी कुछ नहीं हुआ हैं। अब ये सब आंखों में धूल झोंकने जैसा लग रही हैं। चार्जशीट में मंत्री अनिल शर्मा का भी नाम हैं। क्या होगा साफ नहीं हैं।
विजीलेंस के एडीजीपी को बदलने में ही लंबा समय लग गया। जबकि ये काम सता में आने के दूसरे या तीसरे दिन हो जाना चाहिए। एडिशनल एडवोकेट जनरलों की नियुक्तियां अभी तक नहीं हुई हैं। बाकी विभागों के वकील भी पुराने ही चल रहे ंहैं। ये नौकरशाही में भी जुगाड़ु अफसर महत्वपूर्ण ओहदों पर बैठ गए हैं।
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