शिमला। केंद्र व प्रदेश सरकार ने 2009 से 2014 तक केवल पांच सालों में प्रदेश में बसे औदयोगिक घरानों को करों में रियायतों व सब्सिडी के 35 606 हजार रुपया बांट दिया। बावजूद इसके 2009 से 2014 तक रोजगार बढा नहीं बल्कि घटा। ये खुलासा प्रदेश के प्रधान अकाउंटेट जनरल राम मोहन जौहरी ने राजधानी में आयोजित संवाददाता सम्मेलन में किया। इसमें से प्रदेश सरकार का197 करोड़ है।
इस तरह इन कारपोरेट घरानों को बांटीगई ये खैरात प्रदेश पर 33844 हजार करोड़ के कर्जे से कहीं ज्यादा है।अगर ये रियायतें व सब्सिडी नहीं दी जाती तो ये सारा पैसा सरकरके खजाने में जाता और प्रदेश कर्ज मुक्त हो जाता।लेकिन अमीरों को खैरातों के ये धंधा बंद होने का नाम नहीं ले रहा है। भाजपा व कांग्रेस जैसे कारपारेट घरानों के वफादार राजनीतिक दल आज भी इनकी पैरवी करने से बाज नहीं आ रहे है।प्रदेश के ये दोनों दल आज भी केंद्र से इंडस्ट्रियल पैकेज मांग रहे है। ये पैकेज ये किसके लिए मांग रहे है येकैग की रिपोर्ट में पांच साल में बांटी ये खैरातें खुद बयां कर रही है।
ये आंकड़ा 2009 के बाद का है । ये खैरात कितने बड़े व कितने लघु कारपोरेट घरानों के खजाने में गई इसका ब्योरा एजी को नहीं मिला है। कुल मिलाकर कर रियायतों और सब्सिडी का लाभ केवल कारपोरट घरानों को ही मिला बाकी प्रदेश में न तो सकल घरेलू उत्पाद में योगदान बढ़ा और न ही रोजगार सृजित हुए। कैग की रिपोर्ट के हवाले से जोहरी ने कहा कि 2009 से 2014 तक पांच सालों में रोजगाार सृजन में बेहताशा कमी आई।औदयोगिक इकाइयों से2009-10 में13704 रोजगार सृजित हुए जो 2013-14 तक घटकर 6014 रह गए। जबकि इंडस्ट्रियल पैकेज का मूल उददेश्य ही रोजगार सृजन था।यही नहीं ये रियायतें और सब्सिडी सकल घरेलूउत्पाद बढ़ोतरी कराने में कामयाब नहीं रही।2008-09 में 41,483करोड़ का कुल सकल घरेलू उत्पाद जिसमें औदयोगिक इकाइयों का योगदान5705 करोड़ का था। 2013-14 में सकल घरेलू उत्पाद 82585 करोड़ हो गया जबकि घटती दर से औदयोगिक इकाइयों का योगदान 12976 हजार करोड़ ही रहा।
जोहरी ने भी माना कि रियायतों और सब्सिडी के अनुरूप उत्पादन व औदयोगिक वृद्धि नहीं हुई।जोहरी ने कहा कि प्रदेश कर्ज के जाल में फंसने जा रहा है अगर समय रहते नहीं सुधरे तो स्िथति खराब हो सकती है।यहां तक तो जो हुआ सो हुआ। उदयोग विभाग के पास ये आंकड़ा ही नहीं है कि इंडस्ट्रियल पैकेज के मूल उददेश्य रोजगार सृजन की स्थिति क्या है ।अफसरों ने कैग को बताया ही नहीं कि इन उदयोगों में 70 से 75 प्रतिशत हिमाचलियों को रोजगार दिया भी या नहीं।उदयोग विभाग ने ये जिम्मेदारी श्रम विभाग पर डाल दी।
उदयोग विभाग के अलावा नगर निगम की कार्यशैली का आडिट भी किया और पाया कि निगम की स्थिति इतनी खराब है कि निगम को जितना पानी मिलता है उसमें से 45 प्रतिशत की बिलिंग ही नहीं हो पाती।निगमक्षेत्र में रहने वाली आबादी को कायदे से 135 लीटर पानी प्रतिदिन मिलना चाहिए लेकिन कुल 110 लीटर पानी ही मिल रहा है। अगर टूरिस्टों को मिलनेवाले पानी को जोड़ दिया जाए तो ये यहां की आबादी को मिलने वाला पानी और भी कम हो जाता है।
है।यही नहीं कायदे से निगम को 24 घंटे पानी की आपूर्ति की जानी चाहिए लेकिन हालात ये है कि एक घंटे 20 मिनट तक ही पानी की आपूर्ति की जा रही है।सफाई का भी यही हाल है।निगम ने 171 स्थान डंपर रखने के लिए चिन्हित किए है,इसमें से 82 का इस्तेमाल ही नहीं हो रहा था।
आर्थिक संकट से जूझ रहे प्रदेश में करों से धन एकत्रित करने में दिखाए जाने वाले कारनामों का का खुलासा भी आडिट रिपोर्ट में हुआ है। जोहरी ने कहा कि 2013-14 में बिक्री कर,वैट,एक्साइज डयूटी,मोटर वाहन,माल व यात्री कर,वन प्राप्तियां व खान व भूगर्भ विज्ञान की 185 इकाइयों के दस्तावेजों की नमूना जांच की गई। जिसमें 754 मामलों में 212करोड़ 21 लाख के नुकसान का पता चला। अप्रैल2008 से 2013 तक बिक्री कर और वैट का बकाया जो 113 करोड़ 29 लाख था वो 235 करोड़33 लाख हो गया।व्यापारियों से 130 करोड़ 85 लाख की बकाया राशि वसूली नहीं जा सकी।
सम्मेलन में जोहरी के अलावा अकाउंटेंट जनरल सुशील कुमार,डिप्टी अकाउंटेट जनरल एके जख्मी और अमित कुमार ने भी शिरक्त की।
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