शिमला। देश की छह में से तीन फारेसिंक प्रयोगशालाओं में 12 हजार सैंपल डीएनए विश्लेमषण के लिए लंबित पड़े हैं। इन तीन ही प्रयोगशालाओं में डीएनए टेस्ट2 की सुविधा हैं। देश 70 साल भी अपराधों पर पकड़ मजबूत करने की इस वैज्ञानिक तकनीक को मजबूत नहीं कर पा रहा हैं। नतीजन अपराधी बैखौफ होकर समाज में घूम रहे हैं।दिल्लीन फारेसिंक प्रयोगशाला के पूर्व वरिष्ठष वैज्ञानिक व डीएनए यूज एंड रेगुलेशन एक्ट को ड्राफट करने में भूमिका निभाने वाले वी के कश्यप ने कहा कि डीएनए विश्लेषण की रिपोर्ट के आधार पर दोषी को जल्दी सजा मिल जाती हैं जबकि अगर किसी निर्दोष को पकड़ा गया हो तो उसे छोड़ दिया जाता हैं।
लेकिन भारत में दस हजार के करीब ही सालाना डीएनए विश्लेषण होते है जबकि देश में सालाना चार लाख के करीब यौन हमलों व दुष्कर्म के मामले होते हैं। इसके अलवावा बच्चों व महिलाओं के गुम होने के मामले अलग से हैं। उन्होंने कहा कि दुष्कर्म के मामलों में सजा की दर 25 फीसद तक ही हैं। बाकी अपराधी सबूतों के अभाव में छूट जाते हैं। उन्होंने कहा कि देश में विभिन्न मामलों में सालाना कम से कम तीन लाख के करीब डीएनए विश्लेषण तो होने ही चाहिए। यौन हमलों, जघन्य अपराधों के अलावा डकैती के मामलों में डीएनए विश्लेषण जरूरी हैं। इसे अलावा डाटा बेस भी होना चाहिए।
देश में इस वैज्ञानिक तकनीक की खौफनाक तस्वीिर पेश करते हुए कश्यप ने कहा कि देश की छह प्रयोगशालाओं में से तीन इमें ही डीएनए विश्लेषण हो पाते हैं जबकि राज्यों में 31 जगहों पर फारेसिंक प्रयोगशालाएं हैं इनमें से 16 में ही डीएनए विश्लेषण हो पाता हैं। इन तीन राष्ट्रीय प्रयोगशालाओं में यौन हमलों व रेप मामलों के 12 हजार डीएनए नमूनों का विश्लेषण करना लंबित हैं। ऐसे में देश में डीएनए विश्लेषण की क्षमता बढ़ाना बेहद लाजिमी हैं।
यही नहीं अगर क्राइम सीन से सैंपल उठा भी लिए तो यह नििश्चरत नहीं हैं कि ये सैंपल सही तरीके से उठाए ही गए हैं।अगर सही तरीके से उठा भी लिए गए हैं तो यह भरोसा नहीं हैं कि इन्हेंह सही तरीके से संरिक्षत कर लिया गया हैं। क्राइम सीन पर सही तरीके से संरिक्षत कर भी लिया तो यह पता नहीं हैं कि अस्पदतालों में इन्हेंर सही तरीके से रखा गया है या नहीं । गलत या लापरवाही से या मिलीभगत के बाद जानबूझ कर सैंपल खराब करने देने की किसी को कोई सजा नहीं हैं।
दिलचस्प यह है कि डीएनए यूज एंड रेगुलेशन के लिए एक्ट बनाने की मुहिम पिछले 15 सालों से ज्यादा अवधि से चल रही हैं। लेकिन यह मुहिम सिरे नहीं चढ़ पा रही हैं। संसद के अगले सत्र में यह बिल संसद में आने की संभावना हैं।
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