शिमला। नगर परिषद सोलन में 1999 में हुए भर्ती घोटाले में विधानसभा अध्यक्ष राजीव बिंदल व बाकी 24 आरोपियों के खिलाफ मामले वापस लेने की जयराम सरकार की अर्जी को सोलन की एक अदालत ने मंजूर कर लिया हैं। अब भर्ती घोटाले का यह मामला वापस हो गया हैं।
विशेष जज भूपेश शर्मा ने आज विजीलेंस विभाग की ओर से तत्कालीन जिला अभियोजक
सुनील वासुदेवा की ओर से मामलों को वापस लेने के लिए दायर अर्जी को मंजूर कर दिया।
यह राजीव बिंदल के लिए बहुत बड़ी राहत हैं। वासुदेवा अब सेवानिवृत हो चुके हैं।
विजीलेंस की ओर से वासुदेवा ने अपनी अर्जी में कहा था था कि जब ये भर्तियां की गई थी तब नगर परिषद सोलन में भर्ती नियम नहीं थे। इसके आलावा अधिकांश लोग पहले से परिषद में काम कर रहे थे। ऐसे में घोटाला करने जैसी कोई बात नहीं थी।
यह भर्ती घोटाला तब का है जब राजीव बिंदल सोलन नगर परिषद के अध्यक्ष हुआ करते थे।
यह भर्तियां 1999 में तब हुई जब राजीव बिंदल नगर परिषद के अध्यक्ष थे। इस मामले में तत्कालीन मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह की सरकार ने 2006 में बिंदल व बाकियों के खिलाफ
भरतीय दंड संहिता की धारा 420,468,471 और 120 बी के अलावा भ्रष्टाचार निरोधक
अधिनियम की धारा 13(2) के तहत मामला दर्ज कर किया था। लेकिन तब चालान पेश नहीं यिा जा सका था। इसे बाद दिसंबर 2007 में प्रदेश में सरकार बदल गई और प्रेम कुमार धूमल की कमान में भाजपा की सरकार बनी। पांच साल तक कुछ नहीं हुआ।
इसके बाद दिसंबर 2012 में प्रदेश में दोबारा वीरभद्र सिंह की सरकर बन गई और सरकार ने इस मामले की जांच कराई। मामले की जांच वीरभद्र सिंह के बेहद करीबी अधिकारी रमेश छाजटा ने की थी। दिसंबर 2017 तक इस मामले में अधिकांश गवाहों की गवाहियां हो चुकी थी। जांच अधिकारी छाजटा के गवाह तो जयराम सरकार के कार्याकाल में ही हुई व वकील भी वही तैनात रहा था जिसे वीरभद्र सिंह सरकार ने तैनात किया था। इस मामले में बिंदल व बाकी ओरापियों के 313 के बयान होने थे। बाद में जयराम सरकार ने वकील बदला व पहले बिंदल की ओर से मामले को वापस लेने की अर्जी दाखिल की गई। उसके बाद बाकी 24 आरोपियों के खिलाफ मामले वापस लेने की अर्जी दायर की गई। आज विशेष जज भूपेश शर्मा ने दोनों अर्जियों को मंजूर कर दिया।
बिंदल का मंत्री बनने का रास्ता साफ
अपने खिलाफ भ्रष्टाचार का मामला समापत होने के बाद अब राजीव बिंदल का जयराम
सरकार में मंत्री बनने का रास्ता साफ हो गया हैं। बिंदल विधानसभा अध्यक्ष नहीं बनना चाहते थे। चूंकि उनके खिलाफ यह मामला था ऐसे में उन्हें विधानसभा अध्यक्ष बना दिया गया । अगर वह दबाव बनाने में कामयाब रहे तो उन्हें आने वाले समय में मंत्री बनाया जा सकता हैं।
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