शिमला।हिमाचल प्रदेश के किन्नौर व लाहुल स्पिति में चीन की सीमा से लगने वाले करीब तीन सौ किमी तक के सारे रोड़ तबाह हो चुके है। 2013 में आई बाढ़ से जो तबाही मची थी उससे उतराखंड तो करीब- करीब निपट चुका है लेकिन किन्नौर की हालत ये है कि वहां पर हिंदुस्तान तिब्बत रोड के अलावा कई लिंक रोड़ बंद पड़े है। एनएच-22 के भी हालत अच्छे नहीं है। ये सारा खुलासा सोशल वेलफेयर काउंसिल ऑफ इंडिया ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भेजे ज्ञापन में किया है।
काउंसिल के अध्यक्ष राजेश्वर नेगी ने कहा कि चीन के साथ लगते इन सारी सड़कों के लिए डिफेंस व गृह विभाग से धनराशि मांगी जानी चाहिए। केंद्र ने चीन से लगते लद्दाख और अरुणांचल को 13 हजार करोड़ रुपए का प्रोजेक्ट दिया है।लेकिन हिमाचल को कुछ भी नहीं मिला है। नेगी ने कहा कि प्रदेश सरकार की ओर से डिफेंस और गृह मंत्रालय से ये मसला कभी उठाया ही नहीं गया है। मुख्यमंत्री ने भूतल परिवहन मंत्री नितिन गडकरी से इन सड़कों के लिए पैसा मांगा है। लेकिन मिला कुछ नहीं है।
नेगी ने प्रधानमंत्री मंत्री व गृह मंत्री से मांग की है कि किन्नौर और लाहुल स्पिति का बहुत सा एरिया चीन से लगता है इसलिए इन रणनीतिक क्षेत्रों को ऐसे ही न छोड़ा जाए। आज स्थिति ये हो गई है कि किन्नौर व लाहुल स्पिति का संपर्क दुनिया से टूटने वाला हे। सड़कें चलने के काबिल नहीं बची है। किन्नौर को जोड़ने वाली टापरी उरनी सड़क भी तबाही होने के कगार पर है।
नेगी ने कहा कि यहां सतलुज नदी पर 50 बिजली प्रोजेक्ट चल रहे है,नौ पाइपलाइन में है।इन परियोजनाओं के प्रबंधकों ने सारे संसाधन लूट लिए है व इन जिलों की आबादी आज संकट में है।
नेगी ने प्रधानमंत्री से जिला किन्नौर से तिब्बत के लिए जाने वाले पांच भ्माबा-पिन धनकड़ रोड़, लिप्पा-असरंग-स्पिति रोड़,कानम-संगम-स्पिति रोड,ठंगी–चारंग और चितकुल-डोमडी रोड को दोबारा बहाल करने की मांग की है।उन्होंने कहा कि इन्हें प्राथिमिकता के आधार पर बनाया जाए। ये रोड़ चीन से होने वाले किसी भी तरह के संघर्ष करते हुए काम आएगा।
उन्होंने कहा कि किन्नौर के लोगों के लिए लगातार हैलीकॉप्टर सेवा मुहैया कराई जाए। आपदा प्रबंधन की एक फोर्स को सभी उपकरणों के साथ किन्नौर में स्थाई तौर पर तैनात किया ।उनहोंने किन्नौर में दुनिया का मशहूर सेब पैदा होता है। लेकिन लोगों को सेब व बाकी उत्पाद बाजार में पहुंचाने आसान तो दूर मुश्किल हो गए है।
नेगी ने कहा कि राजनीतिक इच्छा नहीं है। सरकार का आलम ये है कि बिजली विभाग का प्रधान सचिव और ट्राइबल महकमे का प्रधान सचिव एक ही अफसर है। ऐसे में वो किन्नौर के पर्यावरण के साथ किस तरह का न्याय कर पाएगा।
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