शिमला। 2009 में टांडा मेडिकल कालेज में रैगिंग की वजह से अमन काचरू नामक छात्र की मौत होने के बाद बेशक उनके पिता ने सुप्रीम कोर्ट तक जंग लड़ी हो लेकिन शिक्षण संस्थानों में रैगिंग का खौफ तारी हैं। सुप्रीम कोर्ट के तमाम दिशा निर्देशों के बावजूद हिमाचल प्रदेश में नामी शिक्षण संस्थान आइआइटी मंडी में रैगिंग हो गई। रैगिंग में एक दो नहीं 72 छात्र शामिल बताए गए हैं।
रैंगिग की घटना के बाद आइआइटी मंडी प्रशासन ने इन 72 छात्रों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्यवाही कर दी है व इसके तहत जुर्माने के तौर पर 15 हजार रुपए और 20 घंटे की सामुदायिक सेवाएं ,20 हजार रुपए और 40 घंटे की सामुदायिक सेवा, 25 हजार रुपए और 60 घंटेकी सामुदायिक सेवाएं करने का दंड दिया हैं । इसके अलावा 10 छात्रों का दिसंबर 2023 तक शैक्षणिक और छात्रावास से निलंबित कर दिया हैं।
आइआइटी मंडी की ओर से कहा गया है कि हाल ही में संस्थान में रैगिंग की एक घटना सामने आई जिसमें पता चला कि बीटेक के कुछ छात्र फ्रेशर्स के साथ रैगिंग की घटना में शामिल थे।
आइआइटी मंडी ने दावा किया कि वह एक मजबूत रैगिंग विरोधी नीति का पालन करता है और इसके तहत इस घटना की जांच कर रहीसमिति ने तुरंत संबंधित अधिकारियों को अवगत कराया।
आइआइटी मंडी यह सुनिश्चित करने के लिए प्रतिबद्ध है कि परिसर में सभी छात्र सुरक्षित महसूस करें और उन्हें किसी भी प्रकार के उत्पीड़न का सामना न करना पड़े। संस्थान छात्रों को ऐसी घटनाओं की तुरंत रिपोर्ट करने के लिए प्रोत्साहितकरता है ताकि सुधारात्मक कार्रवाई सुनिश्चित की जा सके और परिसर में ऐसी घटनाओं को रोका जा सके।
आइआइटी मंडी की ओर से बेशक कार्यवाही कर दी गई है लेकिन बड़ा सवाल यह खड़ा हो गया है कि आखिर यह हो कैसे गया और छात्रों के लिए दी गई सजा क्या इस तरह की हरकतें रोकने के लिए क्या काफी हैं। दाखिला लेने से पहले ही सभी छात्रों और अभिभावाकों को पता होता है कि अगर कोई रैगिंग में शामिल हुआ तो कार्यवाही होगी। बावजूद इसके ऐसा हुआ। ऐसे में रैगिंग में शामिल छात्रों के खिलाफ जुर्माना और सामुदायिक सेवा की सजा देना हास्यस्पद हैं।आखिर समाज को ऐसे छात्र चाहिए ही क्यों जो अपने से कनिष्ठ छात्रों को सताते हो ।
जब 2009 में टांडा मेडिकल कालेज में अपने माता -पिता के इकलौते सहारा अमन काचरू की रैगिंग की वजह से मौत हो गई थी तब से लेकर अब तक कई शिक्षण संस्थानों में रैगिंग की अंदरखाते में जानकारियां बाहर आती ही रहती हैं। लेकिन छात्रों के भविष्य की आड़ लेकर इन घटनाओं को नजरअंदाज कर दिया जाता हैं। कायदे से इन छात्रों को संस्थान से निष्कासित कर देना चाहिए और कहीं और जगह दाखिला तक नहीं मिलना चाहिए। ताकि रैगिंग जैसी हरकतों से हमेशा के लिए निपटा जा सके।
उधर आइआइटी मंडी की ओर से मीडिया को यह सलाह देना के छात्रों की गोपनीयता को ध्यान में रखते हुए मीडिया से आग्रह है कि इस घटना पर रिपोर्टिंग करते समय डिस्क्रेशन बनाए रखें।
आइआइटी प्रशासन मंडी की नाक के नीचे रैगिंग हो गई और वह सुप्रीम कोर्ट के दिशा निर्देशों को लागू करने में नाकाम रहा हैं। बेहतर होता प्रशासन समय रहते चौंकन्ना रहता। बस गनीमत है कि यहां पर अमन काचरू जैसा कोई वाक्या नहीं घटा।
यह भी बेहद खेदजनक है कि रैगिंग का यह मामला दोबारा से हिमाचल में सामने आ गया हैं। आइआइटी मंडी को साफ छोड़ देना भी सही नहीं हैं। जिम्मेदारी को किसी पर आनी ही चाहिए।
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