सुक्खू सरकार के सामने इतनी बड़ी रकम जमा कराने की बड़ी चुनौती
हाईकोर्ट के न्यायाधीश न्यायामूर्ति राकेश कैंथला के अगस्त महीने के आदेश
सुप्रीम कोर्ट रिटायर जस्टिस दीपक गुप्ता और जस्टिस कुरियन जोजेफ के आर्बिट्रेशन अवार्ड पर ये रकम जमा कराने के बाद स्टे
धूमल ,वीरभद्र ,जयराम सरकार के बाद अब सुक्खू सरकारकी कारगुजारी पर निगाहें
शिमला। प्रदेश की कांग्रेस की सुखविंदर सिंह सरकार की बदहाल माली हालत के बीच प्रदेश हाईकोर्ट ने चंबा में चांजू बिजली परियोजना और किन्नौर में यंगथंग बिजली परियोजना के ठेके लेने वाली कंपनियों के मुआवजे और अप फ्रंट मनी के ब्याज समेत डेढ अरब रुपए से ज्यादा अदालत में जमा कराने के आदेश देकर मुश्किल में डाल दिया हैं। याद रहे प्रदेश सरकार पर पहले ही 75 हजार करोड़ रुपए से ज्यादा का कर्ज है।
हाईकोर्ट के जस्टिस राकेश कैंथला ने अपने 19 अगस्त के आदेश में आठ सप्ताह के भीतर जस्टिस दीपक गुप्ता और जस्टिस कुरियन जोजेफ की ओर से 30 मार्च 2023 और 23 जनवरी 2023 को अलग –अलग आर्बिट्रेशन याचिकाओं पर सुनाए अवार्ड को लागू करवाने की दिशा में यह आदेश सुनाए हैं। आदेश में साफ लिखा गया है कि पूरी रकम जमा कराए जाने के बाद इन अवार्ड आदेशों पर ये अदालत स्टे का हुक्म देती हैं।
बहरहाल, सरकार को ये रकम आठ सप्ताह में जमा कराने के आदेश दिए गए हैं। अब निगाहें सुक्खू सरकार पर है कि वह इस रकम को कहां से जमा कराती हैं।
अभी 18 सितंबर को अदाणी पावर को अपफ्रंट मनी के 280 करोड़ रुपए लौटाने के प्रदेश हाईकोर्ट के एकल जज जस्टिस संदीप शर्मा के फैसले पर हाईकोर्ट की जस्टिस विवेक ठाकुर और जस्टिस विपिन चंदर नेगी की अदालत में सुनवाई करनी हैं। अगर इस मामले में भी इसी तरह का आदेश आता है तो इस अकेले मामले में सरकार को ब्याज समेत साढ़े तीन अरब से चार अरब रुपए के करीब की रकम अदालत में जमा करानी पड़ सकती हैं। जबकि सरकार का खजाना पहले से ही खाली है और प्राकृतिक आपदा ने अलग से कहर ढा रखा हैं।
याद रहे जून 2006 में गैमन पावर कंपनी ने तत्कालीन वीरभद्र सिंह सरकार से किन्नौर में 261 मेगावाट यंगथंग खाब बिजली प्रोजेक्ट के लिए बोली दस्तावेज जारी करने का आग्रह किया था। यह प्रक्रिश शुरू हुई और इसके बाद एक अगसत 2008 को धूमल सरकार में गैमन कंपनी ने अप फ्रंट मनी के 52 करोड़ 85 लाख 25 हजार रुपए सरकार के खाते में जमा करा दिए। गैमन कंपनी ने इस प्रोजेक्ट का निर्माण करने के लिए मैसर्स यंगथंग पावर वैंचर्स लिमिटेड गठित की। 16 फरवरी 2009 को ही धूमल सरकार में प्री इम्प्लीमेंटेशन एग्रीमेंट भी हो गया।
प्रोजेक्ट के आवंटन के बाद कंपनी ने मैसर्स हाइड्रो तस्मानिया कंस्लटिंग इंडिया प्राइवेट लिमिटेड को साइट की प्रारंभिक जांच पड़ताल करने के लिए नियुक्त किया व जांच में पता चला कि लियो गांव के नजदीक रीवर बैड की सतह से जहां पर 2751 मीटर की ऊंचाई पर डायवर्जन बांध बनना था उससे पूरा लियो गांव डूब क्षेत्र में जाना था। इस ऊंचाई को बदलने के लिए कंपनी ने 2009 में ही सरकार को चिटठी लिख दी। 2009 की इस चिटठी के बाद 4 अगस्त 2011 को दो साल बाद धूमल सरकार ने जवाब दिया और बांध की ऊंचाई फुल रिजर्वायर स्तर पर 2763 मीटर और टेल वाटर स्तर पर 2538 मीटर कर दी।
लेकिन पर्यावरण कारणों से स्थानीय लोग इस परियोजना को लगाने का विरोध करते रहे। जून 2014 में वीरभद्र सिंह सरकार जब सता में थी तो कंपनी ने इस आवंटन को खारिज करने का आग्रह किया और अपफ्रंट मनी की रकम लौटाने का आग्रह किया। दिलचस्प यह है कि कंपनी ने तत्कालीन सरकार से 127 करोड़ 94 लाख रुपए लौटाने का आग्रह किया था। लेकिन वीरभद्र सिंह सरकार ने इस प्रोजेक्ट के निमार्ण के लिए समयावधि में छूट दे दी । हालांकि सरकार ने दलील दी थी प्रोजेक्ट के निर्माण में कंपनी खुद जिम्मेदार हैं।
लेकिन जस्टिस दीपक गुप्ता ने अपने 23 जनवरी 2023 के अवार्ड में कहा है कि चूंकि कंपनी ने प्री इंप्लीमेंटेशन एग्रीमेंट के पैमानों का का कही उल्लंघन नहीं किया है ऐसे में अप फ्रंट मनी की रकम को जब्त नहीं किया जा सकता। इसके अलावा तत्कालीन सरकार बांध की ऊंचाई के मामले में दो साल तक फाइल पर बैठी रही हैं। ऐसे में देरी के लिए कंपनी को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता।
जस्टिस दीपक गुप्ता के मुताबिक सरकार को कोई नुकसान भी नहीं हुआ है और सरकार को 60 करोड। 35 लाख 25 हजार रुपए अप फ्रंट मनी और बाकी खर्च के कंपनी को अदा करने का अवार्ड सुना दिया। इसके अलावा सितंबर 2014 से दस फीसद ब्याज अदा करने के आदेश भी दिए।
यह दीगर है कि जस्टिस गुप्ता का यह आकलन सही नहीं माना जा सकता कि प्रोजेक्ट न लगने से प्रदेश की आय का रास्ता बंद हुआ। जिस रोजगार और आय के नाम पर प्रदेश में प्रोजेक्ट लगे थे , वह विफल हो गए। इसकी भरपाई किससे की जानी है। नुकसान तो प्रदेश की 75 लाख जनता का हुआ ही है। ऐसा नहीं है कि कंपनी का पता न हो कि यह प्रोजेक्ट लग सकता है या नहीं । आवंटन के बाद प्रोजेक्ट को पूरा करने की जिम्मेदारी कंपनी की हैं। कानूनी दांव पेंच व मिलीभगत की गुजाइशें तो कम ही रहती हैं।
चांजू परियोजना
दूसरा प्रोजेक्ट चंबा के तीसा के चांजू बिजली परियोजना -1 का है ।इस प्रोजेक्ट का किस्सा भी दिलचस्प् हैं। 19 दिसंबर 2007 को प्रदेश में विधानसभा चुनाव के लिए वोटिंग हुई थी व वोटिंग के एक दिन बाद 20 दिसंबर 2007 को प्रधान सचिव बिजली और मैसर्स इंडो आर्य सेंट्रल ट्रांसपोर्ट लिमिटेड के बीच 25 मेगावाट के इस प्रोजेक्ट को लेकर एमओयू हुआ था।यह अपने आप में आश्चर्यजनक हैं। जब प्रदेश में चुनाव संहिता लगी थी तब यह एमओ यू हुआ था। मतगणना 28 दिसंबर को हुई थी व दो दिन बाद धूमल प्रदेश के मुख्यमंत्री बने थे। 2008 में धूमल सरकार को डीपीआर सौंपी गई। जून 2009 में इंप्लीमेंटेंशन एग्रीमेंट हुआ और प्रोजेक्ट की क्षमता 25 से बढ़ाकर 36 मेगावाट कर दी गई।
अक्तूबर 2010 में इस प्रोजेक्ट को पूरा करने के लिए आइ ए हाइड्रो एनर्जी के साथ समझौता हुआ।
आइ ए हाइड्रो एनर्जी ने इस प्रोजेक्ट 26 जुलाई 2017 को इस प्रोजेक्ट को कमीशन कर दिया जो 957 दिनों की देरी से हुआ था। कंपनी ने देरी की वजह बताई की स्थानीय लोगों के विरोध की वजह से यह देरी हुई और उसे हुए नुकसान की भरपाई की जाए।स्थानीय लोगों ने यहां पर न्यूनतम मजदूरी और रोजगार के मसले पर हड़ताल कर दी थी। इस बावत 25 अगस्त 2016 को वीरभद्र सरकार में कंपनी ने डीसी चंबा के यहां मुआवजे का दावा कर दायर कर दिया।अगर लोगों के विरोध की वजह से प्रोजेक्ट में देरी होती है तो उसकी एवज में मुआवजे के प्रावधान के लिए 25 अक्तूबर 2011 को धूमल सरकार में कोई दिशा निर्देश आए थे। इसके तहत कोई क्लाज जोड़े गए थे।धूमल सरकार में ये क्लाज क्यों जोड़े गए थे यह धूमल व नौकरशाह ही बता सकते हैं।
दिसबंर 2017 में प्रदेश में भाजपा की जयराम सरकार सत्ता में आ गई और जयराम सरकार में 30 मई 2018 को डीसी चंबा ने पाया कि मुआवजे के लिए 184 दिनों की देरी जायज हैं। जयराम सरकार में 12 सितंबर 2018 को 34 करोड़ 48 लाख 77 हजार 288 रुपए का दावा जता दिया। 24 जनवरी 2019 को सरकार ने इस दावे को खारिज कर दिया व मामला आर्बिट्रेशन के पास चला गया।
जस्टिस कुरियन जोजेफ ने 30 मार्च को कंपनी के पक्ष में अवार्ड सुना दिया और कंपनी को जयराम सरकार में डीसी चंबा की ओर से 183 दिन की देरी को जायज ठहराने पर कंपनी को वितीय नुकसान के रूप में सरकार को 34 करोड़ 48 लाख 77 हजार रूपए अदा करने के निर्देश दिए। साथ में जुलाई 2020 से सात फीसद ब्याज अदा करने के निर्देश भी दिए।
यह दोनों मामले हाईकोर्ट पहुंचे और 19 अगस्त को जस्टिस राकेश कैंथला की एकल पीठ ने ब्याज समेत तमाम रकम जो आज 156 करोड़ के करीब बनती है को अददालत में जमा कराने के आदेश दे दिए और अवार्ड को स्टे कर दिया। अब सुक्खू सरकार को ये रकम आठ सप्ताह में जमा करानी होगी। इसके अलावा ऊहल, प्रोजेक्ट, डुग्गर प्रोजेक्ट समेत बाकी कई मामलों में ऐसे ही अआदेश अदालत से पारित हो चुके हैं।
बड़े सवाल
अब बड़े सवाल यह है कि इन मामलों को देखने वाले नौकरशाहों की भूमिका की जांच क्यों नहीं होनी चाहिए। नौकरशाह ही क्यों सता में रहे मंत्रियों व मुख्यमंत्रियों को क्यों छोड़ देना चाहिए। इसके अलावा क्या अदालतों में सरकार की ओर से अपना पक्ष सही तरीके से रखा भी जा रहा है या वहां कुछ खेल हो रहा हैं। सुक्खू सरकार को इस सब की जांच करानी चाहिए। अन्यथा मिलीभगत के चलते कानून के रास्ते कमाई के तौर तरीके निकाले जाते रहेंगे और जनता के खजाने में सेंध में लगाई जाती रहेंगी।
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