शिमला । हिमाचल शिक्षा विभाग में सहायक निदेशक अजय शर्मा ने दावा किया है कि न्यूटन की गति का दूसरा नियम न्यूटन ने नहीं दिया था। देश भर के छात्रों के लिए पाठय पुस्तकों में ये गलत पढ़ाया जा रहा है।
इससे पहले अजय शर्मा आर्किमीडिज के सिंदद्याधत को को भी चुनौती दे चुके है। उन्होंने इस सिदांत को संशोधित किया है। उन्होंने कहा कि न्यूटन की गति का दूसरा नियम दुनिया को स्वीटजरलेंड के गणितज्ञ ल्योनहार्ड यूल्लर ने न्यूटन की मौत के 50 साल बाद दिया था। उन्होंने कहा कि न्यूटन ने अपने दूसरे नियम को मौटे तौर पर बिना गणितीय समीकरण ही दिया था। बाद में यूल्लर ने इसे गणितीय समीकरण के साथ दुनिया को दिया। उन्होंने कहा कि अंग्रेजों ने इसे न्यूटन के नाम से दुनिया भर में प्रचारित कर दिया।
उनकी हाल ही में केंब्रिज से प्रकाशित ‘बियोडं न्यूटन एवं आार्किमीडिज’ नामक पुस्तक में ये खुलासा किया है। उन्होंने कहा कि विज्ञान के पुराने नियमों में नई खोजों के आध्एार पर संशोधन होना लाजिमी है।
उन्होंने कहा कि भौतिक विज्ञान की गंगोत्री कहे जाने वाली पुस्तक ‘द प्रिसीपिया’ न्यूटन ने 1687 में लेटिन भाषा में लिखी थी। इसका अनुवाद ‘एड्रयू मौट’ ने अंग्रेजी में 1727 में किया। अंग्रेजी हकूमत दुनियाभर में थी तब न्यूटन के नियम हर जगह पढ़ाये जाने लगे। कमोवेश यह ऐसी अवधारणा थी कि सर्यू पृथ्वी के चारोंओर घूमता है, यह बाइबल में लिखा है। पहले न्यूटन की पुस्तक ‘द प्रिसीपिया’ कुछ ही वैज्ञानिकों तक सीमित थी।
अजय शर्मा ने न्यूटन की पुस्तक के अध्ययन से पाया कि न्यूटन का दूसरा नियम जो हम स्कूलों में पढ़ाते हैं वह न्यूटन की पुस्तक में नहीं दिया है। स्टैनफोर्ड इनसाइक्लोपीडिया आफ फिलासफी में भी स्पष्ट लिखा है कि ‘द प्रिसीपिया’ के किसी भी संस्करण में न्यूटन की गति का दूसरा नियम नहीं दिया है। इस बात की चर्चा भी ब्रूस पोरसिऊ ने अमेरिकन जरनल आफ फिजिक्स में की है पर वैज्ञानिक इस मुद्दे पर चुप बैठे हैं कि न्यूटन महानतम वैज्ञानिक हैं।
अजय शर्मा ने अपनी पुस्तक ‘बियोंड न्यूटनएवं आर्किमिडीज में न्यूटन के दूसरे नियम की खामियां भी दर्शायी है। अजय शर्मा की पुस्तक अमेजन डाट काम के माध्यम से पूरी दुनिया में आन लाइन उपलब्ध है।
भौतिकी के प्राध्यापक रहे अजय शर्मा पिछले 31 वर्षों से आइस्टीन, न्यूटन और आर्किमिडीज सिदद्याधतों पर रिसर्च कर रहे हैं। अजय शर्मा ने आर्किमिडीज के सिद्धांत और न्यूटन के E+mc2 का भी संशोधन किया है। उनके शोध-पत्र अंतर्राष्ट्रीय मान्यता प्राप्त शोध-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुके हैं। उनको विश्वभर में 80 से अधिक
अंतर्राष्ट्रीय कांफ्रेसों से निमंत्रण मिल चुके हैं व अमेरिका और इंग्लैंड की कांफ्रैसों में वैज्ञानिकों के सामने अपने शोध-पत्र पेश कर चुके है।
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