शिमला। जिला सोलन के एक सरकारी स्कूल में 2016 में आठवीं कक्षा की नाबालिग बच्ची से गंदा काम करने वाले टीचर की सजा को प्रदेश हाईकोर्ट ने बहाल रखा हैं। इस टीचर को निचली अदालत ने 2020 में पोक्सो अधिनियम व भारतीय दंड संहिता की विभिन्न धाराओं के तहत दस साल की बामशक्त जेल की सजा सुनाई थी।
इस टीचर ने निचली अदालत के फैसले के खिलाफ प्रदेश हाईकोर्ट में चुनौती दी थी। जस्टिस विवेक ठाकुर और जस्टिस राकेश कैंथला की खंडपीठ ने टीचर की अपील को दरकिनार करते हुए सोलन फास्ट ट्रैक कोर्ट के फैसले को बहाल रखा हैं।
कल्गी नंद देल्टा बनाम प्रदेश सरकार मामले में जस्टिस ठाकुर व जस्टिस कैंथला की खंडपीठ ने अपने फैसले में साफ किया है कि टीचर का कर्तव्य बच्चों का सुरक्षा देना है । वो उनकी असहायता का फायदा नहीं उठा सकता।
याद रहे जिला सोलन के सरकारी स्कूल में यह वाक्या हुआ था व पुलिस ने भारतीय दंड संहिता की धारा 354ए,506 और पोक्सो अधिनियम की विभिन्न धाराओं के तहत मामला दर्ज किया था।
उस समय एसपी सोलन अंजूम आरा व प्रदेश महिला आयोग की तत्कालीन अध्यक्षा जेनब चंदेल भी मौके पर आई थी व स्कूल में रजिस्टर में बनाए गई तस्वीरों को देखकर दंग रह गई थी। ये तस्वीरें अंग्रेजी की डिग्रियां समझाने के लिए बनाई गई थी। यानी बिग ..बिगर बिगेस्ट आदी को समझाने के लिए बनाई गई थी।जांच के दौरान ये इन तस्वीरों पर पैंसिल फेर दी गई पाई थी। ये तस्वीरें इस टीचर की गले फांस बन गई।
आखिर में पुलिस ने जांच की और फास्ट ट्रैक कोर्ट सोलन में मुकदमा चला। फास्ट ट्रैक कोर्ट ने पुलिस जांच व गवाहों को बयानों के आधार पर इस टीचर को दस साल की सजा सुना दी व जुर्माना भी लगाया।
टीचर की ओर से खंडपीठ के समक्ष दलीलें दी गई कि उसके मोबाइल में कोई अश्लील वोडियों नहीं मिला। खंडपीठ ने कहा कि इससे कोई फर्क नहीं पड़ता । इंटरनेंट के जरिए लाइव भी तो देखा जा सकता हैं।
इसके अलावा ये भी दलील दी गई कि छठीं कक्षा की गवाही को सही नहीं माना जा सकता। जिसने कहा था कि उसने स्कूल के दूसरे बच्चों से सुना था कि पीडि़ता बच्ची के साथ टीचर ने गलत काम किया हैं । खंडपीठ ने इन तमाम दलीलों को दरकिनार कर कर दिया।इस बच्ची के साथ गलत काम करते हुए एक बच्चे ने देख लिया था। इसके बाद ये मामला सामने आया था। पीडि़त बच्ची बेहद डरी हुई थी व किसी से पहले कुछ भी नहीं बता रही थी। जिस दिन इस टीचर ने ये काम किया उस दिन दूसरे टीचर स्कूल में नहीं थे। हालांकि इस टीचर ने दलील दी कि स्कूल में लंच में बच्चे खेल के मैदान में खेलते रहते है व स्टाफरूम सभी अध्यापकों से भरा रहता हैं। ऐसे में वो ऐसा काम कर ही नहीं सकता। लेकिन अदालत में साबित हो गया कि उस दिन स्कूल में अन्य टीचर नहीं था।
इस टीचर ने ये भी दलील दी कि पीडि़ता का पिता जो मिस्त्री है उसने स्कूल में डंगा लगाने का काम मांगा था व उसके इंकार करने पर वह दुश्मनी निकालने पर आ गया। अदालत ने अपने फैसले में कहा कि इस बावत कोई भी सबूत पेश नहीं किया गया और सजा बहाल रखी।
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