शिमला। मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के खिलाफ दिल्ली में सीबीआई की ओर से आय से अधिक संपति के मामले में दर्ज प्रारंभिक जांच के बाद वीरभद्र के पक्ष में मुख्यमंत्री पद के तीन दावेदारों विदया स्टोक्स, कौल सिंह और जीएस बाली समेत पूरी केबिनेट खुलकर सामने आ गई हैं वहीं भाजपा की ओर से धूमल खुद तो बिलकुल चुपचाप हो गए है लेकिन उनके खेमे से पूर्व मंत्रियों गुलाब सिंह ठाकुर,रविंद्र सिंह रवि,राजीव बिंदल,नरेंद्र बरागटा और प्रवीण शर्मा ही वीरभद्र सिंह से इस्तीफा मांग पाए है। भाजपा के इस समय 27 विधायक है। गुलाब सिंह ठाकुर और रविंद्र सिंह रवि धूमल के रिश्तेदारों में से है। राजीव बिंदल के खिलाफ वीरभद्र सिंह सरकार ने सोलन की अदालत में भर्ती मामला चला रखा है। प्रवीण शर्मा का भाई एचपीसीए केस में नामजद है। नरेंद्र बरागटा धूमल के करीबियों में गिने जाते है।
लेकिन बड़ा सवाल ये है कि जिस तरह वीरभद्र सिंह ने पूरी केबिनेट अपने पक्ष में उतार दी है बिलकुल उसी तरह धूमल पूरी भाजपा या कम से कम सभी विधायकोे को वीरभद्र सिंह के खिलाफ नहीं उतार पा रहे है। भाजपा में महेंद्र सिंह ठाकुर,जयराम ठाकुर आदि बड़े नाम है। इसके अलावा मोदी सरकार में मंत्री जे पी नडडा और पूर्व मंत्री शांता कुमार भी अभी तक खामोश है। शांता कुमार और नडडा की वीरभद्र सिंह से पुरानी यारी है। इनमें से किसी ने भी अभी तक वीरभद्र सिंह से इस्तीफा नहीं मांगा है। साफ है भााजपा बंट गई है। भाजपा अध्यक्ष सतपाल सती ने हालांकि बीते रोज ही वीरभद्र सिंह से इस्तीफा मांग दिया था। इस तरह अब खेल दिलचस्प हो गया है और प्रधानमंत्री मोदी और वित मंत्री अरुण जेटली सवालों में भी है और उनपर सबकी निगाह भी लगी है कि वो क्या करते है।
वीरभद्र केपक्ष में केबिनेट मंत्रियों जिनमें सिंचाई एवं जन स्वास्थ्य मंत्री विद्या स्टोक्स, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री कौल सिंह ठाकुर, खाद्य नागरिक आपूर्ति एवं उपभोकता मामले मंत्री जी.एस. बाली, बहुउद्देशीय परियोजनाएं एवं ऊर्जा मंत्री सुजान सिंह पठानिया, वन मंत्री ठाकुर सिंह भरमौरी, उद्योग मंत्री मुकेश अग्निहोत्री, शहरी विकास मंत्री सुधीर शर्मा, आबकारी एवं कराधान मंत्री प्रकाश चैधरी, सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्री डाॅ. (कर्नल) धनीराम शांडिल व पंचायती राज एवं ग्रामीण विकास मंत्री अनिल शर्मा द्वाभी शामिल है ने एकस्वर में कहा है कि भाजपा की केन्द्र सरकार अपने राजनीतिक विरोधियों को उत्पीडि़त करने के लिए जांच एजेंसियों पर दबाव बनाकर इनका दुरुपयोग कर रही हैै और मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह व उनके परिवार के सदस्यों के विरूद्ध सी.बी.आई. द्वारा कथित आय से अधिक सम्पत्ति मामले में दर्ज प्रारंभिक जांच का मामला इस बात का स्पष्ट उदाहरण है कि वे अपने राजनीतिक विरोधियों को परेशान करने के लिए किस हद तक जा सकते हैं।
उन्होंने कहा कि भाजपा नेता राज्य में चुनी गई गैर भाजपा सरकारों को अस्थिर करने के प्रयासों में लगे हैं और वीरभद्र सिंह के विरूद्ध दर्ज प्रारंभिक जांच का मामला उनकी छवि को धूमिल करने और हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस सरकार को अस्थिर करने की चाल है।मंत्रियों ने कहा कि भाजपा नेतृत्व वाली केन्द्र सरकार जानबूझ कर राजनीतिक प्रतिशोध की भावना से वीरभद्र सिंह को निशाना बना रही है। यह सब कुछ पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल के इशारे पर किया जा रहा है, जो स्वयं कई मामलों में फंसे हैं तथा राजनीतिक हिसाब बराबर करने की जुगत में हैं। उन्होंने कहा कि भाजपा, करोड़ों रुपये के घोटाले और मनी लाॅंडरिंग मामलों में फंसे पूर्व आई.पी.एल. आयुक्त ललित मोदी के मामले में वरिष्ठ केन्द्रीय मंत्री और राजस्थान की मुख्यमंत्री की संलिप्तता के चलते बुरी तरह घिरी हुई है। उन्होंने कहा कि भाजपा के पास अपने नेताओं की कारगुजारियों का कोई जवाब नहीं है तथा भाजपा लोगों और मीडिया का ध्यान बांटने के लिए इस तरह का प्रयास कर रही है।
मंत्रियों ने कहा है कि वीरभद्र सिंह पर लगाए गए ये कतिथ आरोप नए नहीं हैं। उन्होंने कहा कि भाजपा ने इसी तरह के आरोप 2012 विधानसभा चुनावों के दौरान लगाए थे और सिंह की छवि धूमिल करने के लिए उनके विरूद्ध एक व्यापक अभियान चलाया था।
उन्होंने कहा कि इन सभी आरोपों कि या पहले जांच की जा चुकी है या किसी स्तर पर न्यायालय के समक्ष लम्बित हैं। सी.बी.आई. एक विस्तृत जांच के पश्चात पहले ही बन्द लिफाफे में दिल्ली उच्च न्यायालय में अपनी जांच रिपोर्ट सौंप चुकी है। यह हैरानी की बात है कि माननीय उच्च न्यायालय के समक्ष लम्बित मामले में निर्णय का इंतजार करने के बजाए सी.बी.आई. ने मुख्यमंत्री के विरूद्ध प्रारंभिक जांच का मामला दर्ज किया है। सी.बी.आई. की अति जल्दबाजी से षडयंत्र की बू आ रही है और यह स्पष्ट दर्शाता है कि जांच एजेंसी राजनीतिक दबाव में काम कर रही है।मंत्रियों ने कहा कि उनका वीरभद्र सिंह के नेतृत्व पर पूरा भरोसा है और वे मजबूती से उनके साथ खड़े हैं।
यहां यह गौरतलब है कि इन मंत्रियों में से परिवहन मंत्री जीएस बाली वीरभद्र सिंह के खिलाफ कई बार विद्रोह कर चुके है।जबकि विदया स्टोक्स व कौल सिंह खुद मुख्यमंत्री बनने के लिए कई जुगतें भिड़ा चुके है। लेकिन कामयाब नहीं हुए है। ये सारे आज वीरभद्र सिंह के साथ खड़े हो गए है।ये दिलचस्प है।ये मंत्री इससे पहले भी जब दिल्ली हाईकोर्ट में मामले की सुनवाई चल रही थी और ये कहा जा रहा था कि इस मामले में कभी एफआईआर दर्ज हो सकती है,तब भी उनके साथ एकजुट हो गए थे।कांग्रेस आलकमान वीरभद्र सिंह को सीएम के पद से हटा नहीं पाया था। केबिनेट ने इस बार भी एकजुटता दिखाकर उनकी कुर्सी पर मंडरा रहे खतरे को हलका सा कम करने की कोशिश की है।अब सब कुछ इस पर निर्भर है कि सीबीआई क्या करती है। मजे की बात ये है कि वीरभद्र सिंह के प्रधानमंत्री मोदी के साथ दोस्ताना रिश्ते है और जेटली के साथ कोई सीधी दुश्मनी नहीं है। सीबीआई पर प्रधानमंत्री की हूकुमत चलती है,बेशक सीवीसी जेटली की सिफारिश पर नियुक्त हुए है।अब सबकी निगाह इस पर है कि वीरभद्र सिंह को लेकर मोदी खुद क्या स्टैंड लेते है। सूत्र बताते है कि मोदी के मंत्री जेपी नडडा अंदरखाते नहीं चाहते कि वीरभद्र सिंह के खिलाफ कुछ हो और धूमल व उनके बेटों को प्रदेश के राजनीतिक कैनवास पर विचरने का खुला अवसर मिले।यही स्थिति शांताकुमार की भी है।
धूमल के करीबी 5 भाजपा नेताओं ने मांगा वीरभद्र सिंह इस्तीफा
मुख्ख्मत्री वीरभद्र सिंह व उनके परिवार के भ्रष्टाचार के मामले में सीबीआई द्वारा प्राथमिक जांच शुरू करने पर पूर्व मंत्रियों गुलाब सिंह ठाकुर, रविन्द्र सिंह रवि, राजीव बिन्दल, नरेन्द्र बरागटा व प्रवीण शर्मा ने अपने संयुक्त बयान में कहा है कि इस सारे खुलासे के बाद अब वीरभद्र सिंह को मुख्यमंत्री पद पर बने रहने का कोई अधिकार नहीं रह गया है। नैतिकता के आधार पर तत्काल उन्हें अपने पद से त्यागपत्र दे देना चाहिए। निष्पक्ष जांच के लिए जरूरी है कि वह अपने पद का दुरूपयोग न करें और यह तभी संभव है जब वह अपने पद स्वयं हट जाऐंगे। जांच के लिए पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल को जिम्मेदार ठहराने के लिए भाजपा नेताओं ने कड़ा संज्ञान लेते हुए कहा कि मुख्यमंत्री अपने द्वारा फैलाए गए कीचड़ में दूसरों को न लपेटे तो बेहतर होगा, क्योंकि दूसरों पर झूठे दोषारोपण से उनके अपने स्वयं के पाप कर्म खत्म नहीं होंगे। धूमल ने उन्हें नहीं कहा था कि वह अपने काले धन को छुपाने के लिए झूठे हथकंडे अपनायें और न ही धूमल ने उन्हें सलाह दी थी कि वह सेब के बगीचों से 5 से 10 लाख की औसत आय को करोड़ों रूपयों में बताएं। आज जब इस मामले का खुलासा होने पर कानून के शिकंजे में बूरी तरह से जकड़े जा चुके हैं तो जनता का ध्यान बंटाने के लिए दूसरों पर झूठे आरोप तो लगा लें पर जनता इस बात से भलीभांति अवगत है कि सीबीआई नेता प्रतिपक्ष के अधीन नहीं है। हां, प्रदेश विजीलैंस जरूर वीरभद्र सिंह के अधीन है जिसका दुरूपयोग वह पिछले अढाई वर्षों से अपने राजनैतिक विरोधियों को प्रताडि़त करने के लिए कर रहे हैं। आज प्रदेश में ऐसे नेतृत्व के अधीन शासन चल रहा है जो आकंठ भ्रष्टाचार में डूबा हुआ है और कंाग्रेस पार्टी इस भ्रष्टाचार के प्रति आंखे मूंद कर बैठी हुई है। मुख्यमंत्री के चहेतों और राजनैतिक लाभ प्राप्त व्यक्तियों को मुख्यमंत्री का बचाव करना समझ आता मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह द्वारा अपने खिलाफ सीबीआई जांच के पूर्व मंत्रियों ने कहा कि देवभूमि के लिए यह शर्मनाक है है परन्तु दुर्भाग्यपूर्ण है कि कुछ सक्षम, निष्ठावान व ईमानदार कांग्रेसी नेता भी एक भ्रष्टाचारी नेतृत्व के अधीन घुटने टेकने के लिए मजबूर हैं। उनकी यह मजबूरी समझ से परे है।
कांग्रेस पार्टी को चाहिए कि वह प्रदेश में भ्रष्टाचार के प्रति जीरो टाॅलरेंस दिखाते हुए वीरभद्र सिंह को अपने पद से हटने के लिए मजबूर करें। संवैधानिक पद पर आसीन है और उन्हें कानून की अच्छी समझ भीहै। इस स्थिति में उनके खिलाफ जांच चल रही है तो दोषारोपण की राजनीति के बजाए कानून का सम्मान करते हुए इस जांच का सामना चाहिए, क्योंकि पूर्व में वे स्वयं राजनैतिक विरोधियों को भी यही सलाह देते रहे हैं।
उधर,आम आदमी पार्टी ने भी वीरभद्रसिंह से सीबीआई कां के बाद उनसे इस्तीफे की मांग की है। पार्टी के प्रवक्ता सुभाष चंद और निपुन राठौर का कहना है कि वीरभद्र सिंह को सीएम की कुर्सी पर बने रहने का कोई नैतिक अधिकार नहीं है।
उधर,वीरभद्र सिंह सीबीआई कांड हो जाने के बाद भी लाहुल स्पिीति दौरे से वापस नहीं आए है। वो शनिवार को वापस आएंगे।
(0)