शिमला। किन्नौर में लगने वाले 960 मेगावाट के पावर प्रोजेक्ट को रिलायंस इंफ्रास्ट्रक्चर को देने व अदाणी को अप फ्रंट मनी के 280 करोड़ लौटाने के फैसले के बाद एक नया खुलासा सामने आया है। सचिवालय से भरोसेमेंद सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक वीरभद्र सिंह सरकार ने ब्रेकल कारपोरेशन एनवी को 2713 करोड़ रुपए के सरकार को हुए डैमेज – की भरपाई के नोटिस को भी ड्राप कर दिया है। ये चोंकाने वाला है व सरकार ने इसकी किसी को कानों कान भनक तक नहीं लगने दी है। सरकार ने यही पब्लिक किया कि 960 मेगावाट का ये प्रोजेक्ट रिलायंस को देने का फैसला किया है और अदाणी को 280 करोड़ रुपए वापस किए जा रहे हैं।
लेकिन सरकार ने 2713 करोड़ रुपए के नोटिस को ड्रॉप कर दिया है इससे सरकार सवालों के घेरे में आ गई है।वीरभद्र सिंह सरकार ने इस प्रोजेक्ट को 2006 में ब्रेकल को आवंटित किया था। लेकिन उसने सरकार के साथ फ्राड किया, ये 2009 में हाईकोर्ट के फैसला में स्प्ष्ट हो गया था। प्रदेश हाईकोर्ट ने इस आवंटन को रदद कर दिया था। इसके बाद सरकार ने ब्रेकल को प्रोजेक्ट देरी से लगने के कारण होने वाले नुकसान की भरपाई को पूरा करने के लिए 2713 करोड़ रुपए सरकार को अदा करने का नोटिस भेजा था। सरकार ने ये जवाब सुप्रीम कोर्ट में भी दे रखा है। अब सरकार ने इस नोटिस को भी ड्रॉप कर दिया है। सूत्रों के मुताबिक इसी फैसले के बाद रिलायंस को प्रोजेक्ट ऑफर किया गया । ऐसा इसलिए किया गया कि ये 2713 करोड़ का नुकसान कैसा हुआ, ये बताना मुश्किल था। इसके अलावा अगर सुप्रीम कोर्ट सरकार से ये पूछ लेता कि ये नुकसान कैसे हुआ तो सरकार सुप्रीम कोर्ट में ये साबित नहीं कर पाती। इसी तरह की अजीब दलीलें धूमल सरकार में बनी कमेटी ऑफ सेक्रेटरीज ने दी थी। इस कमेटी ने कहा था कि ब्रेकल के खिलाफ लगाए आरोपों को कानूनी तौर पर साबित करना असंभव है।हालांकि प्रदेश हाईकोर्ट ने इन दलीलों को दरकिनार कर दिया था ।
उधर,कहा जा रहा है कि प्रधानमंत्री मोदी के लाडले अदाणी को सरकार 280 करोड़ रुपए देने को ही राजी हुई है । इस पर ब्याज नहीं दिया जाएगा। हालांकि ये अपने-आप में आश्चर्यजनक है। इससे भी ज्यादा अश्चर्यजनक ये है कि ये पैसा रिलायंस से लेकर अदाणी को दिया जाएगा। चूंकि सरकार के खजाने में पैसा नहीं है। इसलिए ये सब किया जा रहा है।इस सारे खेल में सरकारी खजाने को क्या मिलेगा ,इसका ये जवाब दिया जा रहा है कि प्रोजेक्ट के लगने में होने वाली देरी से होने वाला नुकसान बच जाएगा। ये जवाब कानून के पैरों पर खड़ा होने लायक कितना है, ये सवाल है। इसके अलावा सरकार के अफसरों की दलील है कि 280 करोड़ रुपय अदानी के खातों से आया था। उसने तब की सरकारों को चिटठी भी भेजी थी ।चूंकि मामला हाईकोर्ट में था तो सरकार ने उसे कंसोरटीयम का सहयोगी बनने कर इजाजत नहीं दी होगी। लेकिन उसने चिटठी जरूर भेजी थी।
अब सवाल वही पुराना है कि जब सरकार ने पैसा लिया ही नहीं तो अदाणी को वापस क्यों लौटाया जाएगा।या तो कैबिनेट ये फैसला लेती कि वो अप फ्रंट मनी के 280 रुपए ब्रेकल को वापस कर रही है उसका अदाणी से कोई लेना देना नहीं है। ब्रेकल को ये पैसा वापस हो ही नहीं सकता था क्योंकि उसने सरकार के साथ फ्राड करके ये प्रोजेक्ट हथियाया था। ये पैसा सरकार को जब्त करना था ।इस मसले पर वीरभद्र सरकार व उनकी कैबिनेट बुरी तरह फंस गई है।सुप्रीम कोर्ट में सरकार बार बार कहती रही है कि वो इस प्रोजेक्ट को रिलायंस को न देकर दोबारा टेंडर मंगाएंगी व दोबारा टेंडर मंगाएं भी गए।लेकिन एक कंपनी के अलावा कोई आगे ही नहीं आया। ये भी आश्चर्यजनक है।सबसे गंभीर ये है कि इस मसले पर देश के कारपोरेट घराने और सरकार मिलीभगत के संदेह में है और जिसकी नदी,पानी व जमीन है वो कहीं दूर-दूर तक नजर ही नहीं आ रहे है। नदी ,जमीन वपानी तो प्रदेश की जनता का है। वो चंद लोगों के गिरोह का नहीं है।
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