शिमला। प्रदेश विजीलेंस ने धर्मशाला नगर निगम के पूर्व महापौर देवेंदर सिंह जग्गी और निगम के पूर्व कार्यकारी अधिकारी महेश दत शर्मा के खिलाफ षडयंत्र कर सरकारी खजाने को नुकसान पहुंचाने व भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम के तहत मामला दर्ज किया है।
विजीलेंस के एएसपी बलबीर सिंह जस्वाल के मुताबिक महेश दत शर्मा के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 420, 120 बी और भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम की धारा 13(2) के तहत जबकि जग्गी के खिलाफ बेईमानी से गलत तरीक से लाभ कमाने के लिए भारतीय दंड संहिता की धारा 420 और 120 बी के तहत मामला दर्ज किया है।
जस्वाल के मुताबिक विजीलेंस के पास जग्गी के खिलाफ एक शिकायत आई थी जिसमें कहा गया था कि जग्गी ने नगर निगम के एक भवन को 20हजार 11 रुपए के किराए पर ली थी व अब बाद में अवैध तौर पर भवन मं बदलाव कर इसे उसेन किराए पर चढ़ा दिया और लाखों रुपए का किराया वसूल रहा है।
जाचं करने पर पाया गया कि यह भवन नगर निगम धर्मशााला के समीप है व पहले इसे बतौर रेस्ट हाउस बनाया गया था। लेकिन 2005 में जब यह भवन निर्माणाधीन ही था तो उसे जग्गी को पटटे पर दे दिया था लेकिन निविदा में जमानत राशि और किराए का कोई जिक्र नहीं किया गया था। शुरू में सदन ने जो प्रसताव पास किया था उसके मुताबिक इसकी जमानत राशि तीस लाख और महीनावार किराया तीस हजार रुपए रखा गया था व पटटे की अवधि 25 साल तक तय की गई थी। यही नहीं 2006 में इस भवन की नीलामी के प्रस्ताव को भी मंजूरी दे दी गई थी लेकिन इसमें जमानत राशि व किराए का जिक्र नहीं था। जबकि 2005 में पअटे पर देने के लिए जो शर्ते निर्धारित की थ्ी व नीलामी के वक्त भी मानी जानी चाहिए थी।
लेकिन तमाम कायदे कानूनों को ताक पर रख कर तत्कालीन कार्यकारी अधिकारी ने जग्गी को लाभ पहुंचाने की नीयत से इस भवन की नीलामी के लिए नए नियम व शर्ते तय कर दी।
एएसपी जस्वाल ने कहा कि 2005 में बाद इस भवन की नीलामी के लिए निविदा मंगवाई गई थी लेकिन इसमें जमानत राशि और किराए का जिक्र नहीं था तो इसे वापस ले लिया गया। इसके बावजूद सदन के जमानत राशि और किराए के प्रस्ताव को मंजूर कर देने के बावजूद कार्यकारी अधिकारी नेअपने स्तर पर निविदा में बोलीदाता की ओर से सबसे ज्यादा राशि दर्शाने रकम को बतौर किराया तय कर दिया और जमानत राशि व किराए का जिक्र किए बगैर दोबारा निविदा मंगवा ली और सदन की मंजूरी भी नहीं ली। बाद में जब भवन को जग्गी के हवाले कर दिया गया तो कार्यकारी अधिकारी ने सदन की मंजूरी के बगैर जग्गी को इस भवन को गिरवी रख कर किसी भी बैंक से कर्ज लेने के लिए अधिरकृत कर दिया। इसके अलावा इस भवन को किसी भी बैंक या बीमा कंपनी को किराए पर दिया जासकता है इस बावत भी अनापति प्रमाणपत्र दे दिया।
जस्वाल ने कहा कि भवन का कब्जा लेने के बाद जग्गी ने भवन के पहली मंजिल को आइसीआइसीआइ बैंक को पअटे पर दे दिया और दूसरी को बजाज अलायंस बीमा कंपनी को दे दिया। जांच में पाया गया कि जग्गी ने 14 दिसंबर 2006 से 31 दिसंबर 2019 तक आइसीआइसीआइ से 1 करोड़ 21 लाख 46 हजार 649 रुपए वसूले जबकि बजाज अलायंस से एक जनवरी 2009 से 31 दिसंबर 2019 तक 39 लाख 47 हजार 971 रुपए किराए के तौर पर वसूले । इस तरह उसने कुल एक करोड़ 60 लाख 94 हजार 620 रुपए कमा लिए जबकि नगर परिषद धर्मशाला को महज 18 लाख 38 हजार 869 रुपए किराए के दिए। इस तरह से उसने सरकारी खजाने को नुकसान पहुंचाया है।
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