शिमला। प्रदेश के डीजीपी 1989 बैच के IPS अधिकारी संजय कुंडू को लेकर एक के बाद एक करके खुलासे हो रहे हैं। प्रदेश हाईकोर्ट की ओर से कुंडू की रिकॉल याचिका खारिज करने को लेकर सुनाए गए फैसले में जिक्र किया गया है कि उनका डीएसपी अमित ठाकुर के साथ भी धमकाने वाला रवैया रहा है।
कुंडू की ही एफआइआर की जांच करने गए थे डीएसपी अमित ठाकुर
हाईकोर्ट के फैसले में शिमला एसपी की एक जनवरी 2023 की स्टेटस रपट का हवाला दिया गया है। इस रपट में कहा है कि संजय कुंडू की ओर से कारोबारी निशांत शर्मा के खिलाफ छोटा शिमला थाने में धारा 211,469,499, 500 और 505 के तहत दर्ज की गई शिकायत की जांच के दौरान जांच अधिकारी अमित ठाकुर डीजीपी कार्यालय गए थे।
जांच के दौरान डीजीपी कुंडू की the tone and manner of the DGP was not only intimidating but also impeding in the investigation. यानी की कुंडू की टोन और तरीका धमकाने वाला ही नहीं बल्कि जांच में बाधा डालने वाला भी था।कुंडू ने तल्खी से अमित ठाकुर से कहा कि जो तुमने किया और जो तुम कर रहे हो उसके परिणाम भुगतने होंगे। इस मामले को 28 दिसंबर को गृह सचिव के नोटिस भी लाया गया ।
स्टेटस रपट में आगे यह लिखा था कि –
. That it is most humbly submitted that the investigation done till date, on the basis of material evidences collected, in terms of real, physical and electronic, are sufficiently corroborating as well as point needle of suspicion strongly towards the role playing of DGP, Sanjay Kundu, DGP,HP, in the commission of the crime alleged by the complainant in the Daily dairy No.78 dt.4.12.2023 of Police Station East, Shimla, District Shimla, HP and imputations leveled in FIR No.98/2023 dt.4.11.2023….”
अदालत ने अपने फैसले में जिक्र किया है कि डीएसपी ने इसकी शिकायत एसपी शिमला से की जिसमें 14 दिसंबर को डीजीपी की ओर से उसके साथ किए गए धमाकाने वाले रवैये का जिक्र है।
28 दिसंबर को एसपी शिमला ने इस बावत प्रधान सचिव गृह को चिटठी लिख कर इस शिकायत का हवाला दिया और कहा कि जांच अधिकारी को डीजीपी के अनुचित प्रभाव से अथारिटी से सुरक्षित करने की जरूरत हैं। पूरी संभावना है कि डीजीपी जो इस समय पुलिस विभाग के केंद्रीय कमांड में हैं , वह जांच कर रहे अधिकारियों को फंसा व नुकसान पहुंचा सकते हैं।
एसपी संजीव गांधी ने गृह सचिव को भेजी अपनी चिटठी में लिखा कि डीजीपी के खिलाफ इस मामले में गंभीर नोटिस लेने की जरूरत हैं अन्यथा जांच सच तक नहीं पहुंच पाएगी।
खंडपीठ ने कहा कि संभवत: यही सामाग्री थी जिसने हमें कुंडू को डीजीपी के पद से हटाने के लिए बाध्य किया था। खंडपीठ ने कहा कि 26 दिसंबर को हम निष्पक्ष जांच को लेकर ही चिंतित थे लेकिन जब जांच अधिकारी को धमकाने का उदाहरण सामने आया तो लगा कि जांच की प्रक्रिया में असल में दखल दिया जा रहा हैं। ऐसे में क्या कुंडू को डीजीपी के पद रखना सुरक्षित होता, हमारे सामने यह सवाल था।
खंडपीठ ने कहा कि जब अदालत ने कुंडू के वकील संजय जैन से इस सामाग्री के बारे में पूछा तो जैन कहा कि एसपी शिमला की मंशाए ठीक नहीं हैं क्योंकि एसपी के खिलाफ पिछले साल उनकी कारगुजारियों को लेकर सवाल उठाए थे। इस बावत सरकार से एसपी के खिलाफ कार्रवाई करने को भी डीजीपी कुंडू ने लिखा था। कुंडू की रिकाल याचिका में इस तरह के कई इल्जाम एसपी के खिलाफ थे। जैन ने कुंडू के हवाले से कहा कि एसपी शिमला ने तथ्यों को तोड़ा मरोड़ा हैं डीजीपी की छवि को नुकसान पहुंचाने के लिए गलत तरीके से पेश किया हैं।
लेकिन इन तमाम इल्जामों का सुक्खू सरकार के एजी यानी महाधिवक्ता अनूप रतन ने विरोध किया ।
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