शिमला । नेता प्रतिपक्ष जयराम ठाकुर अब तो पूरी तरह से ही Politically Naughty होने लगे है। 25 विधायकों के होने के बावजूद उनने व उनकी भाजपा ने राज्यसभा चुनावों में 40 विधायकों वाले कांग्रेस प्रत्याशी अभिषेक मनु सिंघवी को हरा दिया। छह कांग्रेस विधायकों से भाजपा के प्रत्याशी हर्ष महाजन के पक्ष में वोट दिलवा दिया। यह दीगर है कि हर्ष महाजन के नाम पर लेवल भाजपा प्रत्याशी है जबकि वो नेता कांग्रेस के ही हैं। अब तो लग रहा है कि वह हालीलाज के मां-बेटे के ही हैं। जब उनने कांग्रेस छोड़ी थी तो मां बेटे को लेकर टिप्पणियां की थी।
यही नहीं व्हीप को लेकर भी जयराम व भाजपाइ राज्यपाल के दरवाजे तक जा आए। उनने स्पीकर पर संगीन इल्जाम लगाए।गंभीर चोटों की बात भी की लेकिन एमएलसी उनने जगजाहिर नहीं की। किसी अस्पताल में इजाल की तस्वीर भी जारी नहीं हुई।
ये जांच का मामला है कि जो चिटठी उनने राज्यपाल को दी उसमें विधायकों के दस्तख्त खुद विधायकों ने किए थे या आपस में किसी ने काम कर दिया था। बाद में एंजेसी के लोगों ने अपने स्तर पर कुछ विधायकों की ओर से चुनाव के दौरान भरे हलफनामों पर किए दस्तख्तों को राज्यपाल को भेजी चिटठी पर किए दस्तख्तों से मिलान किया तो उनको कुछ गड़बड़ लगी।
चलों यहां तक तो ठीक था। क्रास वोटिंग कराने के बाद बागी विधायकों को हरियाणा पुलिस और सीआरपीएफ की सुरक्षा में पंचकूला को रवाना कर दिया व सदन में आकर जयराम मांग करने लगे कि कटौती प्रस्तावों पर वोटिंग कराओ। इस दिन का दृश्य तो सदन के कैमरों में कैद है ही । दूसरे दिन जो हुआ वह सब भी कैमरों में कैद हैं। सरकार गिराने का मंसूबा तबाह हो चुका था व किसी तरह बजट पास हो गया।ये सब लोकतंत्र को मजबूत करने के लिए ही था शायद।
जयराम जो कुछ भी कर रहे थे उनको इसके नतीजे पता थे । ऐसे में लोकतंत्र बचा कि नहीं ये बाद में लेकिन अब जयराम इल्जाम लगा रहे है कि अपनी सरकार को बचाए रखने के लिए कांग्रेस सरकार नया षड्यंत्र रच रही है। कांग्रेस सरकार विशेषाधिकार कमेटी द्वारा बीजेपी के सात विधायकों को नोटिस देकर निष्कासित करने का प्रस्ताव लाकर प्रदेश की कांग्रेस सरकार को बचाने का प्रयास कर रही है।
जयराम भूल गए कि लोकतंत्र का प्रदेश की राजनीति से राफता खत्म हो गया है। वो उसी दिन खत्म हो गया था जिस दिन शाम को डिनर करने वाले कांग्रेस के विधायकों ने दूसरे दिन हर्ष महाजन को क्रास वोट किया था। अब न तो जयराम संत है और न ही क्रास वोटिंग कराने वाले कोई महात्मा हैं। पर्दे के पीछे कुछ तो हुआ होगा । कोई लेन देन या कुछ और तो हुआ ही होगा। विधायकों के बिकने के इल्जाम लगे । किसने खरीदे इसका जयराम ठाकुर को पता न हो ये असंभव हैं।
होटलों की मौज का बिल भी तो कोई चुका ही रहा हैं। जयराम के दो- दो सहयोगी होटलों में पहरा लगा आते ही हैं।
जयराम ठाकुर कहते है कि सरकार को यह समझ आ गया है कि वह बहुमत खो चुके हैं और सत्ता में बने रहने के लिए उनके पास संख्या बल नहीं है। इसलिए नियमों की धज्जियां उड़ाकर विधायकों को निष्कासित करने का जो प्रयास हिमाचल प्रदेश की कांग्रेस सरकार कर रही है वह आज तक भारत के इतिहास में किसी भी विधानसभा में नहीं हुआ है। उन्होंने कहा कि यह विधायकों के लोकतांत्रिक अधिकारों का हनन है। लोकतंत्र में इस तरह की तानाशाही बर्दाश्त नहीं की जाएगी। भारतीय जनता पार्टी कांग्रेस सरकार के इस षड्यंत्र की कड़ी निंदा करती है।
जयराम ठाकुर ने बिलकुल सही बात की है लेकिन जो भाजपा का कृत्य रहा है वह क्या है। क्या जयराम व उनकी भाजपा का दामन पाक साफ है । भाजपा में कई विधायक हैं जिनका एक कद था। उनकी नैतिकता पर संशय नहीं किया जा सकता था। लेकिन अब वह सब काली कोठरी से गुजर चुके हैं। सत्ताएं तो आती जाती रहेंगी लेकिन रमेश ध्वाला को आज भी लोग याद करते है कि बिके नहीं। वीरभद्र सिंह उनको खरीद नहीं पाएं थे। क्या जयराम ठाकुर और सहयोगी यह दावे से कह सकते है कि उनने खरीद फरोख्त नहीं की।या उनको इसकी जानकारी नहीं हैं। सरकार गिराने की साजिश नहीं की गई। पर्दे के पीछे के खिलाड़ी कौन है , इसका पता किसको नहीं नहीं हैं। और मंहगे होटलों में वो बागी विधायक क्या –क्या किससे करवा रहे हैं। जाहिर है वहां पर वह ध्यान मुद्रा में तो नहीं बैंठे होंगे।
भीतर की तस्वीरें भी बाहर आ ही जाएंगी। प्रदेश की जनता तो कल्पना कर ही रही है कि कौन विधायक मंहगें होटलों में क्या–क्या कर रहे होंगे। बाकी विधायकों के दिल भी मचल ही रहे होंगे।आखिर वो विधायक होटलों में ठहर क्यों रहे हैं।
भाजपा के कौन-कौन विधायक किस काम में लगे है व कहां-कहां उनने रातें गुजारी हैं वो फोन काल्स डिटेल से तो पता ही लग जाएगा । ऐसे में जयराम ठाकुर या बाकी किसी नेता को (कांग्रेस समेत )लोकतंत्र का स्वांग तो रचना ही नहीं चाहिए। सत्ता की चाश्नी में जनता के पैसे की चीनी कम तो डालनी ही नहीं चाहिए। अन्यथा लूटतंत्र का असल धंधा कमजोर हो जाएगा।अब लोकतंत्र के नाम पर यही धंधा फलफूल रहा है । अब हिमाचल भी इससे अछूता नहीं रहा। हिमाचल की पहचान को दाग लगा दिया गया है। नेताओं का अब यही धर्म रह गया हैं। बाकी Naughty- Naughty बातें तो अब आगे होती ही रहेंगी। लोकतंत्र के नाम पर हो तो जरा शर्म सी आती हैं।
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