नई दिल्ली।समाज सेवी मनोहर लाल शर्मा व मशहूर वकील शांति भूषण की ओर से लड़ी गई लंबी जंग के बाद केंद्र सरकार की मिलीभगत से कोल आवंटन ब्लाक के आवंटन में चलाए जा रहे अवैध धंधे पर सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा झटका दिया है। सुप्रीम कोर्ट की तीन जजों की खंडपीठ ने 1993 से लेकर 2009 तक के सभी कोल ब्लाक आवंटनों को अवैध ठहरा दिया है। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से 1993 से लेकर 2009 तक सता में रही कांग्रेस,एनडीए व यूपीए सरकारों के काले कारनामों को उजागर कर दिया है। अगर मनोहर लाल शर्मा और प्रशांत भूषण केंद्र सरकार व ताकतवर कारपोरेट घरानों के ख्िालाफ अपनी जंग जारी न रखते तो राष्ट्र की संपित लूटने वाले इन राष्ट्रीय लूटेरों के चेहरे कभी बेनकाब नहीं होते।
सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद पूर्व कोयला सचिव पी सी पारेख ने मीडिया से बातचीत में अजीबों गरीब बयान दिया। उन्होंने कहा कि जिन लोगों ने कोल ब्लाक में पेसा लगाया है उनका क्या कसूर है। साथ ही उन्होंने ये भी आड़ ली कि इससे विकास रुकेगा। पारेख के बयान ने सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या उन औद्योगिक घरानों को ये पता नहीं था कि वो जो भी कर रहे है वो अवैध है। सुप्रीम कोर्ट की जजमेंट पढ़ने से साफ पता चलता है कि मंत्रियों,नौकरशाहों और कारपोरेट घरानों ने किस बेदर्दी से देश की कोल खदानों को लूटने का काम किया है। सुप्रीम कोर्ट ने इन आवंटनों को रदद नहीं किया है। इस मसले पर आगामी सुनवाई सितंबर में रखी गई है।
मामले में मनोहर लाल शर्मा व्यक्तिगत तौर पर जूझते रहे है जबिक प्रशांत भूषण ने इस मामले में कॉमन कॉज की ओर से पैरवी की है। प्रशांत भूषण ने कहा है कि कोल के ब्लाक कारपोरेट घरानों,राजनेताओं और उनके रिश्तेदारों को सारे कानूनों को ताक पर रख बांट दिए गए।केंद्र सरकार आवंटन चिटठी इन्हें थमा दी और इन्होंने कोल को लूटने का काम शुरू कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने इन सारी चिटठियों को अवैध ठहरा दिया।सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इन चिट्ठियों की कोई वैधता नहीं है।
सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश आर एम लोढ़ा,जस्टिसमदन बी लोकुर और जस्टिस कुरियन जोजेफ ने अपने 163 पन्नों की जजमेंट में कहा कि केंद्र सरकार की ओर से बनाई गई स्क्रीनिंग कमेटियों की ओर से 36 बैठकाें में आवंटित किए गए कोयला ब्लाकों के आवंटन अवैध है।इससे इस राष्ट्रीय संपित का अनफेयर आवंटन हुआ।स्क्रीनिंग कमेटियों ने दिमाग का सही इस्तेमाल नहीं किया।स्क्रीनिंग कमेटियों और सरकारी अदारों ने जो आवंटन किए वो एकत फा थे।प्रतियोगी बोलियों का अभाव था। पारदर्शी प्रक्रिया नहीं थी।
कोल आवंटन को अवैध ठहराने वाली जजमेंट पढ़े यहां
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