इस बात से तो शायद आप भी इनकार नहीं करेंगे कि जब भी चुनाव नजदीक आते हैं, वैसे ही हमारे मंत्री और सत्ता में बैठी सरकार साधु संतो की ओर भागती नज़र आती है। मध्यप्रदेश में मामा जी यानि शिवराज सिंह चौहान की सरकार ने एक विशेष फरमान जारी कर पांच साधुओं को अपनी सरकार से जोड़ने का फैंसला लिया है। सामान्य विभाग प्रशासन के अपर सचिव केके कतिया द्वारा जारी आदेश में कहा गया है, प्रदेश सरकार ने पांच विशिष्ट साधु संतो को राज्यमंत्री का दर्जा दिया है। इनमें डिंडोरी के नर्मदानंद महाराज, अमरकंटक के हरिहरानंद महाराज, कम्पयुटर बाबा, इंदौर के भय्यू महाराज एंव पंडित योगेंद्र महंत शामिल है।
इन बाबाओं को राज्यमंत्री के तौर पर 7500 रु. सैलरी, आवास के लिए 15000 रु. मासिक भता , सरकारी गाड़ी हर माह 1000 किलोमीटर के लिए डीजल तथा ड्राइवर साथ ही 3000 रु. सरकारी भता भी मिलेगा। इसके अलावा पीए रखने की अनुमति मोबाइल बिल, टीए, डीए इत्यादि। इन सभी को नर्मदा किनारे क्षेत्रों में वृक्षा रोपण, जल संरक्षण और स्वच्छता के विषय पर जन जागरुकता फैलाने के लिए बनाई गई एक कमेटी में शामिल किया गया है।
अब आप सोच रहे होगें की ख़बर यहां खत्म होती है, लेकिन आपको बतातें चलें की असली ख़बर यहां से शुरु होती है। सवाल यह है कि आखिर इन बाबाओं को राज्यमंत्री का दर्जा क्यूं दिया गया। आपको बता दें कि बीते 28 मार्च को इंदौर के गोम्मटगिरी स्थित कलिक आश्रम में संतो की एक बैठक हुई थी। इस बैठक में 1 अप्रैल से 15 मई 2018 तक नर्मदा घोटाला रथयात्रा निकालने पर निर्णय लिया गया। भारत में वैसे कंम्पयूटर का अविष्कार तो नहीं हुआ लेकिन इसके नाम पर बाबा जरुर हुये है। जिनका मानना है कि उनका दिमाग कम्पयूटर से भी तेज है। अगर आपको ध्यान हो तो यह वही कम्पयूटर बाबा है जो 1 अप्रैल से 15 मई 2018 तक नर्मदा घोटाले के खिलाफ निकाली जाने वाली रथ यात्रा का नेतृत्व करने वाले थे। इनका मानना था की राज्य सरकार ने नर्मदा के किनारे 6 करोड़ पौधे लगाने की आड़ में एक बहुत बड़े घोटाले को अंजाम दिया है। लेकिन लगता है राज्यमंत्री की कुर्सी मिलते ही यह उस घोटाले और रथ यात्रा के विचार को अपने जहन से निकाल चुके हैं।
इस फैसले के बाद से सरकार और मुख्यमंत्री के इस फैसले का विरोध भी किया जा रहा है। विरोध इतना तेज है कि मामला हाईकोर्ट तक जा पहुंचा है। रामबहादुर नाम के एक शख्स ने मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की इंदौर बेंच में एक जनहित याचिका दाखिल की है, जिसमें उन्होंने राज्यमंत्रियों की संवैधानिकता पर सवाल उठाये है। फिलहाल मामला कोर्ट में है लेकिन यहां पर यह समझना काफी मुश्किल है कि क्या इस फैंसले से प्रदेश सरकार जनता को लुभाने का प्रयास कर रही है, या फिर नर्मदा के नाम पर किये गये घोटालों को छुपाने का। इसके अलावा यहां से यह देखना भी काफी दिलचस्प हो जायेगा कि क्या सता में आने के बाद प्रदेश के नये राज्यमंत्री जनता में जागृती फैलायेंगे या खुद सता के आदि बन जायेगें।
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