शिमला।कृषि हिमाचल प्रदेश के लोगों का मुख्य व्यवसाय है, जो किसानों की आर्थिकी में महत्वपूर्ण योगदान दे रही है। प्रदेश को कृषि उत्पादन में आत्म-निर्भर बनाने और किसानों की आर्थिकी में सुधार लाने के लिए सरकार प्रयासरत है। कृषि तथा सम्बद्ध क्षेत्र का सकल घरेलू उत्पाद में 30 प्रतिशत योगदान है। यह क्षेत्र 71 प्रतिशत लोगों को सीधे तौर पर रोज़गार उपलब्ध करवा रहा है। सरकार इस महत्वपूर्ण क्षेत्र को सर्वोच्च प्राथमिकता दे रही है और इस वित्त वर्ष के दौरान 384 करोड़ रुपये व्यय किए जा रहे हैं।
किसानों की आर्थिक स्थिति को सुदृढ़ बनाने के कृषि क्षेत्र के विविधिकरण पर बल दिया जा रहा है। इसके लिए बे-मौसमी सब्जियों के उत्पादन को बढ़ाने के लिए गुणवत्तायुक्त बीज उपलब्ध करवाए जा रहे हैं। प्रदेश के कुल 55.67 लाख हेक्टेयर भौगोलिक क्षेत्र में से लगभग 9.68 लाख हेक्टेयर भूमि पर 9.33 लाख किसानों द्वारा खेती की जा रही है, जो औसतन 1.04 हेक्टेयर है। वर्ष 2005-06 की कृषि गणना के अनुसार 87.03 प्रतिशत छोटे किसानों के पास जोत योग्य भूमि है, जबकि 12.54 प्रतिशत भूमि मध्यम किसानों के और 0.43 प्रतिशत बड़े किसानों के पास उपलब्ध है।
वर्ष 2012-13 के दौरान गत वर्ष के 15.44 लाख मीट्रिक टन की तुलना में प्रदेश में रिकार्ड 15.68 लाख मीट्रिक टन अनाज का उत्पादन हुआ। वर्ष 2012-13 के दौरान आलू की पैदावार 1.83 लाख मीट्रिक टन दजऱ् की गई, जो वर्ष 2011-12 में 1.52 लाख मीट्रिक टन थी। इसी तरह, सब्जियों का उत्पादन भी इस अवधि में 13.57 लाख मीट्रिक टन के मुकाबले 13.80 लाख मीट्रिक टन रिकार्ड किया गया।
प्रदेश की अनुकूल जलवायु के कारण यहां मूल्ययुक्त फसल विविधिकरण की अपार संभावनाएं हैं। राज्य में बे-मौसमी सब्जियों का सालाना उत्पादन 14 लाख मीट्रिक टन तक पहुंच गया है, जो 2500 करोड़ रुपये का है। प्रदेश में अभी तक करीब 10 प्रतिशत क्षेत्र को बे-मौसमी सब्जियों के अंतर्गत लाया गया है और इसके विस्तार के लिए ठोस उपाये किए जा रहे हैं। प्रदेश सरकार इस वित्त वर्ष के दौरान 4 हजार हेक्टेयर अतिरिक्त क्षेत्र को बे-मौसमी सब्जियों के अंतर्गत लाने का प्रयास कर रही है, जिसके लिए 55 करोड़ रुपये का बजट प्रावधान किया गया है।
प्रदेश में ‘डाॅ. यशवंत सिंह परमार किसान स्वरोज़गार योजना’ कार्यान्वित की गई है, जिसके लिए बजट में 100 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है। इस योजना के अंतर्गत 8.30 लाख वर्ग मीटर क्षेत्र में 4700 पाॅली हाऊस लगाने का लक्ष्य रखा गया है। किसानों को बागवानी तकनीकी मिशन के अंतर्गत पाॅली हाऊस लगाने के लिए 85 प्रतिशत अनुदान प्रदान किया जा रहा है। यह परियोजना वर्ष 2016-17 में पूरी की जाएगी। इससे न केवल सब्जियों का उत्पादन बढ़ेगा, बल्कि 20 हजार लोगों को रोज़गार के अवसर भी मिलेंगे।
प्रदेश सरकार राज्य में काॅफी की खेती की संभावनाओं को भी तलाश रही है। इसके लिए भारत सरकार के काॅफी बोर्ड ने पहले ही संभावित क्षेत्रों का सर्वेक्षण किया है। कांगड़ा, मंडी, ऊना और बिलासपुर जि़लों में काॅफी की खेती की संभावना पाई गई है। वर्ष 2014-15 के दौरान काॅफी बोर्ड की तकनीकी सलाह से इन जि़लों में काॅफी उत्पादन का परीक्षण किया जाएगा।
प्रत्येक विधानसभा क्षेत्र की पंचायतों में वर्ष 2013-14 के दौरान मुख्यमंत्री आदर्श कृषि गांव योजना आरंभ की गई थी, जिसके तहत प्रत्येक पंचायत में कृषि अधोसंरचना के निर्माण और विस्तार के लिए 10 लाख रुपये की राशि उपलब्ध करवाई गई है, जिसके अच्छे परिणाम सामने आए हैं। इस योजना के तहत इस वित्त वर्ष में प्रत्येक विधानसभा क्षेत्र की एक-एक अतिरिक्त पंचायत को इसके दायरे में लाने के लिए 6.80 करोड़ रुपये व्यय किए जा रहे हैं।
किसानों को उत्पादों के अच्छे दाम मिले, इसके लिए प्रदेश सरकार ने कृषि विपणन को सर्वोच्च प्राथमिकता दी है। इस उद्देश्य के लिए वैज्ञानिक तरीके से प्रदेश के विभिन्न स्थानों पर विपणन यार्ड एवं उप यार्डों का निर्माण किया जा रहा है। इस वित्त वर्ष के दौरान मेहंदली, फतहपुर, अणु, भड़शाली, जुखाला, टूटू, टापरी और शिलाई में विपणन यार्ड़ स्थापित किए जा रहें हैं।
प्रदेश सरकार विभिन्न कार्यक्रमों के माध्यम से किसानों को अनेक सुविधाएं उपलब्ध करवा रही है, ताकि कृषि क्षेत्र में उत्पादन को बढ़ाया जा सके और किसानों की आर्थिकी सुदृढ़ बने। प्रदेश सरकार मृदा, भूमि और जल का समुचित दोहन कर इस क्षेत्र को सुदृढ़ बनाने के लिए प्रयास कर रही है, क्योंक प्रदेश का लगभग 18 से 20 प्रतिशत क्षेत्र ही सिंचाई के योग्य है तथा शेष क्षेत्र वर्षा जल पर निर्भर है।
कृषि विभाग 12 बीज फार्मों के माध्यम से खरीफ तथा रबी की फसलों के बीजों का उत्पादन कर रहा है। हर वर्ष लगभग 3500 से 4000 क्विंटल अनाज, दालों और सब्जियों के बीजों का उत्पादन कर रह है। प्रदेश के किसानों को विभिन्न फसलों के लगभग 90 हजार क्ंिवटल प्रमाणित बीज वितरित किए गए हंै। इस योजना के अंतर्गत बीज फार्मों, बीज भंडारणों और जांच व प्रमाणीकरण, अनाज की ढुलाई और बीजों की कीमत पर अनुदान सरकार द्वारा वहन किया जा रहा है और इसके लिए इस वित्त वर्ष में 387 लाख रुपये खर्च किए जा रहे हैं।
कृषि विभाग 11 मृदा जांच प्रयोगशालाओं और 4 सचल मृदा जांच प्रयोगशालाओं के माध्यम से किसानों को निःशुल्क मृदा जांच सुविधाएं उपलब्ध करवा रहा है। हर साल लगभग एक लाख नमूनों का विश्लेषण किया जाता है तथा किसानों को मृदा स्वास्थ्य कार्ड उपलब्ध करवाए जा रहे हैं। हर वर्ष करीब एक लाख किसानों को इसके दायरे में लाया जा रहा है।
भू-जांच सेवाओं को सुदृढ़ बनाने के दृष्टिगत मुख्यमंत्री की बजट घोषणा के अनुरूप प्रदेश में सभी मृदा-जांच प्रयोगशालाओं को सुदृढ़ बनाया जा रहा है। सभी किसान परिवारों को मृदा-स्वास्थ्य कार्ड उपलब्ध करवाने के दृष्टिगत 12 योजना अवधि में मृदा-जांच कार्यक्रम को जारी रखने का निर्णय लिया गया है। राज्य में भू-जांच प्रयोगशाला की क्षमता के अनुरूप हर साल 1.25 लाख मृदा नमूना विश्लेषण तथा मृदा स्वास्थ्य कार्ड जारी करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। प्रदेश में मृदा जांच सेवाओं को सुदृढ़ बनाने के दृष्टिगत 12वीं पंच वर्षीय योजना अवधि के दौरान 219 लाख रुपये तथा वार्षिक योजना 2014-15 के लिए 78 लाख रुपये का बजट प्रावधान किया गया है।
शिमला में कीटनाशक जांच प्रयोगशाला स्थापित की गई है, जहां प्रतिवर्ष 150 से 250 नमूनों की जांच की क्षमता उपलब्ध है। पालमपुर तथा मंडी में बायो नियंत्रण प्रयोगशाला स्थापित की गई है, जहां परोपजीवी संवर्द्धन, बायो एजेंट के विस्तार के साथ-साथ किसानों को प्रशिक्षण का कार्य किया जा रहा है। अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, आईआरडीपी परिवारों तथा पिछड़े क्षेत्रों के किसानों को 50 प्रतिशत लागत पर उपकरणों सहित पौध संरक्षण सामग्री उपलब्ध करवाई जा रही है। इस वित्त वर्ष के दौरान इस पर 22.98 लाख रुपये व्यय किए जा रहे हैं।
हिमाचल प्रदेश बे-मौसमी सब्जियों के उत्पादन और गुणात्मक सब्जी के बीजों के उत्पादन में अग्रणी है। किसानों की आर्थिकी में और सुधार लाने तथा रोजगार के अधिक अवसर सृजित करने के दृष्टिगत 12 योजना अवधि के दौरान इस क्षेत्र को और सुदृढ़ बनाया जा रहा है। इसके लिए, प्रदेश में उपयुक्त क्षेत्रों की पहचान कर उनका व्यापक सर्वेक्षण किया जा रहा है तथा इन क्षेत्रों के किसानों को सब्जी उत्पादन के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है।
छोटे तथा सीमांत किसानों विशेषकर इन क्षेत्रों के अनुसूचित जाति के किसानों को कृषि उपकरणों पर उपदान सुविधा प्रदान की जाएगी ताकि वे व्यापक स्तर पर बे-मौसमी सब्जियों को उत्पादन कर अपनी आर्थिकी को सुदृढ़ बना सकें। ऐसे सभी क्षेत्रों में दालों से सब्जियों की ओर परिवर्तित होने वाली कृषि पद्धति का विशेष तौर पर अनुश्रवण किया जा रहा है। इस उद्देश्य के लिए 12वीं पंच वर्षीय योजना अवधि (2012-13) के लिए 4.03 करोड़ रुपये तथा वार्षिक योजना 2014-15 के लिए 60 लाख रुपये प्रस्तावित किए गए हैं ताकि किसानों की आय में आशातीत वृद्धि सुनिश्चित बनाई जा सके।
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