शिमला। हिमाचल प्रदेश के जनजातीय क्षेत्रों की कठिन भौगोलिक परिस्थितियों के मद्देनजर इन क्षेत्रों में विकास को गति प्रदान करने के लिए वर्तमान प्रदेश सरकार इन क्षेत्रों की ओर विशेष ध्यान दे रही है। सरकार द्वारा इन क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के सामाजिक व आर्थिक उत्थान के लिए कार्यान्वित की जा रही विभिन्न योजनाओं के तहत पर्याप्त धनराशि उपलब्ध करवाई जा रही है। विकास के विभिन्न मानकों से यह स्पष्ट है कि सरकार के सतत् प्रयासों के सकारात्मक परिणाम सामने आए हैं और राज्य के जनजातीय क्षेत्र आज प्रदेश के अन्य क्षेत्रों के समान आर्थिक उत्थान, विकास एवं समृद्वि के पथ पर अग्रसर हैं।
प्रदेश के जनजातीय क्षेत्र, जो पहले काफी पिछड़े हुए थे और विकास के नाम पर यहां कुछ भी नहीं था। लेकिन, आज यहां परिस्थितियां बदली हैं और इन क्षेत्रों में सड़क, शिक्षण व स्वास्थ्य संस्थानों के वृहद नेटवर्क के साथ-साथ अन्य मूलभूत सुविधाएं भी उपलब्ध हैं। इन क्षेत्रों में आज 579 प्राथमिक विद्यालय, 102 माध्यमिक पाठशालाएं, 47 उच्च पाठशालाएं, 73 वरिष्ठ माध्यमिक पाठशालाएं, 4 डिग्री महाविद्यालय, 5 औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थान, 2 नागरिक अस्पताल, 10 सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र, 43 प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र तथा 104 उप-स्वास्थ्य केन्द्र सरकारी क्षेत्र में कार्यरत हैं।
इन क्षेत्रों में 5 आयुर्वेदिक अस्पताल, 70 आयुर्वेदिक चिकित्सालय, 47 पशु अस्पताल, 130 पशु औषद्यालय, 2584 किलोमीटर मोटर योग्य सड़कें तथा शत-प्रतिशत गांवों में विद्युत आपूर्ति की सुविधा उपलब्ध करवाई गई है। वर्तमान प्रदेश सरकार ने इस वित्त वर्ष के दौरान जनजातीय क्षेत्रों में अनेक शिक्षण एवं स्वास्थ्य संस्थान खोले व स्तरोन्नत किये हैं। इसके अतिरिक्त, सड़कों, सिंचाई योजनाओं एवं अन्य नागरिक सुविधाएं उपलब्ध करवाने के लिये विशेष प्रावधान किया गया है।
मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह का जनजातीय क्षेत्रों एवं यहां रहने वालों लोगों के प्रति विशेष स्नेह और लगाव है। उन्होंने जनजातीय क्षेत्रों का लगातार व्यापक तौर पर दौरा किया है और अपनी हर यात्रा के दौरान उन्होंने जनजातीय क्षेत्रों को शिक्षण, स्वास्थ्य एवं अन्य संस्थानों, सड़कों, मिनी सचिवालय की सौगात देने के अलावा अन्य विकासात्मक कार्यों को गति प्रदान की है।
समय के साथ-साथ राज्य योजना से जनजातीय उप-योजना के लिए धनराशि में व्यापक वृद्धि की गई है, जो वर्ष 1974-75 में 9.05 करोड़ रुपये से बढ़कर इस वित्त वर्ष के दौरान 395.47 करोड़ रुपये हो गई है। इन क्षेत्रों के लिये वर्ष 2012 से वर्ष 2017 के दौरान 12वीं पंचवर्षीय योजना के आकार को 2052 करोड़ रुपये निर्धारित किया गया है। जनजातीय उप-योजना के आरम्भ से अब तक सरकार ने इस योजना के तहत 4203.35 करोड़ रुपये की धनराशि व्यय की है।
प्रदेश के कुल क्षेत्रफल का 42.49 प्रतिशत भाग जनजातीय क्षेत्र में आता है और वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार इन क्षेत्रों की आबादी प्रदेश की कुल जनसंख्या का महज़ 2.53 प्रतिशत है। जनजातीय क्षेत्रों की साक्षरता दर 77.10 प्रतिशत तथा जनजातीय क्षेत्रों में लिंग अनुपात 1018 है, जो राज्य के औसत 972 की तुलना में काफी बेहतर है।
वर्ष 1974-75 में आरम्भ की गई जनजातीय उप-योजना के अन्तर्गत अधिकांश जनजातीय लोगों को सम्मिलित किया गया था। वर्ष 1987-88 में जनजातीय उप-योजना के तहत शत-प्रतिशत जनजातीय जनसंख्या को शामिल किया गया। वार्षिक बजट में एकल समेकित मांग को अपनाने तथा एकीकृत जनजातीय विकास परियोजना में सिंगल लाईन प्रशासन प्रणाली को लागू किया गया। इससे जनजातीय समुदायों का सामाजिक-आर्थिक विकास तेजी से सुनिश्चित हुआ है।
जनजातीय उप-योजना को और अधिक आवश्यकता आधारित, व्यवहारिक एवं परिणामोन्मुखी बनाने तथा योजना प्रक्रिया के विकेंद्रीकरण के लिए समेकित जनजातीय विकास परियोजना (आईटीडीपी) आरम्भ की गई है और आईटीडीपी को योजना इकाई के तौर पर लिया गया है।
वर्ष 1986 में पांगी क्षेत्र के लिए सिंगल लाईन प्रशासन को आरम्भ किया गया, जबकि समूचेे जनजातीय क्षेत्र में यह प्रणाली वर्ष 1988 में आरम्भ की गई। प्रदेश में अप्रैल, 2013 में मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में जनजातीय सलाहकार परिषद गठित की गई। परिषद की संस्तुतियों को उच्च प्राथमिकता दी जाती है, जिसे आम-तौर पर स्वीकार कर लिया जाता है या फिर विभागीय उत्तर के उपरान्त परिषद द्वारा संस्तुतियों को निरस्त करने का प्रावधान है।
वर्तमान प्रदेश सरकार ने सत्ता संभालते ही जनजातीय क्षेत्रों में विकास को गति प्रदान की। इसके लिए, विशेष अभियान के तहत विभिन्न कार्यक्रमों एवं योजनाओं को प्रभावी तरीके से लागू किया गया और जनजातीय क्षेत्रों में बड़ी संख्या में रिक्त पड़े पदों को भरने की प्रक्रिया आरम्भ की गई। विभिन्न विभागों के सभी पदों व सेवाओं के लिये दुर्गम क्षेत्र उप-कैडर बनाया गया है। दुर्गम क्षेत्रों में सेवाएं प्रदान करने के लिए कर्मचारियों को प्रेरित करने के उद्देश्य से सरकार ने विभिन्न प्रोत्साहन प्रदान किए हैं। वर्तमान सरकार ने शीतकालीन तथा जनजातीय भत्ते को बढ़ाकर 300 रुपये प्रति माह किया है। जिन कर्मचारियों ने जनजातीय क्षेत्रों में सेवा अवधि के तीन वर्ष पूरे कर लिये हैं, उन्हें वर्षवार अतिरिक्त भत्ता प्रदान किया जा रहा है। इन क्षेत्रों में स्नातकोत्तर डाक्टरों को 40 हजार रुपये प्रति माह तथा एमबीबीएस डाक्टरों को 25 हजार रुपये मानदेय निर्धारित किया गया है।
जनजातीय क्षेत्रों में सर्दियों के मौसम में लोगों की आवाजाही सुनिश्चित बनाने के लिये वर्ष 1981-82 में हैलीकाॅप्टर सेवाएं आरम्भ की गई थीं और वर्ष 1995 से ये सेवाएं उच्च अनुदान दरों पर लोगों को उपलब्ध करवाई जा रही हैं।
प्रदेश सरकार द्वारा पिछले दो वर्षों के दौरान प्राकृतिक आपदाओं के प्रभावितों को तत्काल राहत प्रदान करने के लिए युद्ध स्तर पर कार्य किए गए। इसके अतिरिक्त, पुर्नबहाली के कार्यों को सर्वोच्च प्राथमिकता दी गई। प्रभावित परिवारों, जिनके मकान प्राकृतिक आपदाओं के कारण क्षतिग्रस्त हो गए थे, केे पुनर्वास के लिये उपयुक्त भूमि उपलब्ध करवाई गई। इसके अतिरिक्त भूमिहीनों को गृह निर्माण के लिये नौतोड़ भूमि उपलब्ध करवाने का भी निर्णय लिया गया। नौतोड़ भूमि उपलब्ध करवाने के उद्देश्य से प्रदेश सराकर ने जनजातीय क्षेत्रों को वन संरक्षण अधिनियम से छूट प्रदान की है और नौतोड़ भूमि उपलब्ध करवाने के लिए जनजातीय क्षेत्रों पर वन संरक्षण अधिनियम लागू न करने की अधिसूचना जारी की है। सरकार ने किन्नौर जिला में पुराने हिन्दुस्तान-तिब्बत मार्ग को यातायात के लिये पुनःबहाल करने का निर्णय लिया है ताकि जिले के लोगों को वर्षभर यातायात सुविधा सुनिश्चित बनाई जा सके।
पिन घाटी के तीव्र कीर नाला से स्थाई वैकल्पिक मार्ग बनाने के लिये निविधाएं आमंत्रित की गई हैं। राज्य सरकार ने इस कार्य के लिये 162.97 लाख रुपये की राशि पहले ही स्वीकृत कर दी है ताकि निर्माण कार्य शीघ्र आरम्भ किया जा सके। जनजातीय जिलों में प्रशासनिक मशीनरी को पूरी तरह चुस्त-दुरूस्त बनाया गया है ताकि समय पर मटर, सेब तथा अन्य नकदी फसलों को मण्डियों तक पहुंचाया जा सके।
इसमें कोई संदेह नहीं है कि विभिन्न विकास योजनाएं, नीतियां व कार्यक्रम जनजातीय लोगों का सामाजिक व आर्थिक उत्थान करने में मील पत्थर साबित हो रही हैं और यहां के लोग अन्य क्षेत्रों की बराबरी कर रहे हैं।
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