शिमला। पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह सरकार ने वीरभद्र सिंह के लाडले अफसरों के बचाने के लिए दागी जांच की जिसकी वजह से एचपीसीए घोटाले में पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल, उनके पुत्र भाजपा सांसद अनुराग ठाकुर और एचपीसीए के बाकी पदाधिकारी बच निकले हैं। हालांकि बीते दिनों ने मीडिया से बातचीत करते हुए वीरभद्र सिंह की ओर से कहा गया था कि अदालत ने सभी मामलों को एक ही झाड़ू से साफ कर दिया।
एचपीसीए मामले में वह सुप्रीम कोर्ट के फैसले से नाराज थे लेकिन बीते रोज गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट में एचपीसीए से संबधित बची आखिरी एफआइआर को लेकर जब सुनवाई हो रही थी तो वीरभद्र सिंह की ओर से पैरवी कर रहे वरिष्ठ वकील अनूप जार्ज चौधरी पेश नहीं हो पाए।
दिलचस्प यह है कि इस मामले में आरोपी धूमल, अनुराग ठाकुर व अन्य और अभियोजक हिमाचल सरकार एक हो गए थे। चूंकि वीरभद्र सिंह को अनुराग ठाकुर ने व्यक्तिगत तौर पर भी पार्टी बना रखा तो उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में किस तरह से
अपना पक्ष रखा होगा,इसका पता नहीं हैं। लेकिन जयराम सरकार का आरोपियों को पूरा साथ रहा व जयराम सरकार की ओर से प्रदेश महाधिवक्ता सुप्रीम कोर्ट में खुद पेश हुए व कहा कि सरकार इस मामले को वापस लेना चाहती हैं।
जयराम सरकार की दलील थी कि ये मामले राजनीतिक प्रतिशोध की भावना से बनाए गए थे। बड़ा सवाल यह है कि प्रदेया की अदालतों में आज ऐसे कितने मामले है जो बदले की भावना से दायर हुए हैं व जिन्होंने ऐसे मामले दायर किए हैं उनके खिलाफ क्या कार्रवाई की जा रही हैं।
लेकिन बड़ा सवाल अभी जिंदा है कि अगर वीरभद्र सिंह के समय उनके लाडले अधिकारियों को बचाने के लिए दागी जांच की गई थी तो संबधित जांच करने वालों के खिलाफ कोई कार्रवाई क्यों नहीं होनी चाहिए।
अगर बदले की भावना से मामले बनाए गए तो ऐसे मामले बनाने वालों के खिलाफ भी कार्रवाई क्यों नहीं होनी चाहिए। जिन अधिकारियों ने यह तमाम कांड किए वह आज कहां हैं। वह सरकारी नौकरी में क्यों होने चाहिए।
बड़ा सवाल यह भी है कि केंद्र की मोदी सरकार ने इस मामले में फंसे आइएएस अधिकारियों के खिलाफ अभियोजन की मंजूरी क्यों नहीं दी। क्या इसलिए की प्रदेश में कांगेस की वीरभद्र सिंह की सरकार थी और इस मामले में प्रदेश के
भाजपा नेता धूमल व भाजपा संसद अनुराग ठाकुर फंसे हुए थे। अगर राज्य की एजेंसियो ंव अधिकारियों ने गलत अभियोजन मंजूरी मांगी तो ऐसे अफसरो क खिलाफ मोदी सरकार ने आचरण नियमों के तहत क्या कार्रवाई की।
सत्ता में बैठी सरकारेंं देश को केला गणराज्य बनाने पर क्यों तूली हैं। इन तमाम सवालों के कोई जवाब नहीं मिल रहे हैं। जवाब एक ही है हर स्तर पर मिली भगत ।
यहां जाने क्या हुआ सुप्रीम कोर्ट में
सुप्रीम कोर्ट ने हिमाचल प्रदेश क्रिकेट एसोसिएशन के तत्कालीन अध्यक्ष व भाजपा सांसद अनुराग ठाकुर के धर्मशाला स्थिति क्रिकेट स्टेडियम के साथ शिक्षाा विभाग के क्वार्टरों को ढहाने व इस पर कब्जा करने को लेकर दर्ज एफआइआर को भी सुप्रीम कोर्ट ने रदद कर दिया । यह भाजपा सांसद अनुराग ठाकुर ,उनके पिता व पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल
व एचपीसीए के तमाम पदाधिकारियों के लिए बड़ी राहत हैं। अब पूर्व की वीरभद्र सिंह सरकार की ओर से एचपीसीए मामले में दर्ज तमाम एफआइआर रदद हो चुकी हैं। सुप्रीम कोर्ट ने एफआइआर नंबर 14 /2013 के साथ ही इस मामले में कांगड़ा की विशेष अदालत में दायर चालन को भी रदद कर दिया हैं।
सुुप्रीम कोर्ट ने वीरभद्र सिंह की ओर से इस मामले में पैरवी कर रहे वकील डी के ठाकुर की तमाम दलीलें खारिज कर दी। वीरभद्र सिंह की ओर से इस मामले में पैरवी कर रहे वरिष्ठ वकील अनूप जार्ज चौधरी आज सुप्रीम कोर्ट में पैरवी करने के लिए हाजिर नहीं हुए।
न्यायमूर्ति ए के सीकरी, अशोक भूषण और अबदुल नजीर की तीन जजों की पीठ ने इस एफआइआर को रदद कर दिया।
अदालत ने कहा कि इस मामले में जब अधिकारियों को छोड़ दिया हैं तो बाकियों के खिलाफ कैसे मुकदमा चलाया जा सकता हैं।
याद रहे वीरभद्र सिंह सरकार के सता में आने के बाद 3 अक्तूबर 2013 को विजीलेंस ने भाजपा सांसद अनुराग ठाकुर, उनके पिता व पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल और एचपीसीए के पदाधिकारियों के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा447,201,120बी के अलावा 3पीडीपी और भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम के तहत ये एफआइआर दर्ज की थी।
एफआइआर में कहा गया था कि एचपीसीए ने पूर्व मुख्यमंत्री धूमल की सरकार में अधिकारियों से मिलीभगत कर स्टेडियम के साथ शिक्षा विभाग की 720 वर्ग मीटर जमीन पर बने क्वार्टर व दूसरे भवनों को गिराकर उक्त जमीन को अपने कब्जे में ले लिया।
वीरभद्र सिंह सरकार में इस बावत खेल विभाग ने शिकायत की थी। विभाग ने कहा था कि इस जमीन पर चार आवासीय भवन बने थे। जिन्हें अधिकारियों से मिलकर एचपीसीए ने ढहा दिया था। विजीलेंस ने जांच में पाया था कि 14 मार्च 2008 को डीसी कांगड़ा ने एक बैठक ली जिसमें एचपीसीए के प्रतिनिधि भी शामिल हुए। लेकिन इस बैठक के लिए कहीं से कोई लिखित न्यौता ही नहीं था। जांच में यह भी सामने आया था कि इन क्वार्टरों में रहने वाले शिक्षकों ने कभी नहीं कहा कि ये भवन जर्जर हैं। इसके अलावा एचपीसीए ने भी कभी नहीं कहा कि इन आवासों से स्टेडियम के भीतर
इनसे खिलाड़ियों को कोई खतरा हैं। जांच में पाया गया था एसडीओ ने इस बैठक के दूसरे दिन ही स्टेटस रिपोर्ट दे दी थी जबकि आकलन की चिटठी 25 दिन बाद लिखी गई।
विजीलेंस ने इस मामले में स्पेशल कोर्ट अदालत में चालान पेश किया । इसको अनुराग ठाकुर ने प्रदेश हाईकोर्ट में चुनौती दे दी व इस एफआइआर व ट्रायल को रदद करने का आगह किया। अनुराग ठाकुर ने अपनी याचिका में कहा कि कि एफआइआर 12 में अतिक्रमण मामले में निशानदेही को गैरकानूनी करार दे चुके हैं। ऐसे में यह मामला बनता हीनहीं ।
जस्टिस त्रिलोक चौहान ने अनुराग की याचिका छह अप्रैल 2017 को खारिज कर दी । इसके खिलाफ अनुराग ठाकुर ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दे दी। आज तीन जजों की खंडपीठ ने कहा कि इस मामले में विजीलेंस को सरकार ने अधिकारियों के खिलाफ अभियोजन की मंजूरी ही नहीं दी। एचपीसीए निजी पार्टी है ऐसे में निजी पार्टी के खिलाफ भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम के तहत मामला कैसे दर्ज किया जा सकता ।
याद रहे कि सुप्रीम कोर्ट ने एचपीसीए की तीनों एफआइआर पिछल्ली सुनवाई को ही रदद कर दी थी। लेकिन इस एफआइआर की सुनवाई बची थी तो वीरभद्र सिंह की ओर से पेश हुए वकील अनूप जार्ज चौधरी ने कहा था कि इस मामले में उन्हें तो सुना ही नहीं गया हैं। इस एफआइआर के तथ्य दूसरी एफआइआर से अलग हैं। इस पर जजों ने अपनी गलती मानते हुए इस एफआइआर की सुनवाई दोबारा करने के मामले को रिकाल किया। आज इस एफआइआर को भी सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया।
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