शिमला। टाटा से लेकर देश के बाकी बड़े कारोबारियों की कंपनियों ने प्रदेश में सालों तक बिजली प्रोजेक्टों के ठेके अपने पास रखे लेकिनअब सरकार से ही ही 700 करोड़ रुपए की मांग की जा रही हैं। मांग ही नहीं की जा रही हैं, इस बावत अदालतों ने इन कंपनियों के पक्ष में फैसलें सुना दिए हैं।
कई मामलों में तो हाईकोर्ट ने सरकार को आदेश दे दिए है कि अपील तभी सुनेंगे जब ये पैसा हाईकोर्ट में जमा करा दिया जाएगा। खाली खजाने वाली सुक्खू सरकारअब अदालतों में अर्जी दे –दे कर समय मांग रही हैं।
यहां ये याद रहे कि 700 करोड़ तो महज 13 कंपनियों के ही हैं।
इन मामलों में करोड़ों रुपया तो ब्याज का ही हैं। यानी ये कंपनियां ब्याज के सहारे ही करोड़ों रुपया सरकारी खजाने से कमाने जा रही हैं। जबकि न तो बिजली प्रोजेक्ट ही लगे और न ही सालों से प्रदेश को इनसे कोई आय ही हुई । लेकिन नेताओं और नौकरशाहों ने अपने-अपने समय में ये डंका जरूर बजाया कि प्रदेश के लिए उन्होंने कितने करोड़ का निवेश ला दिया है।
मजे की बात है कि इन कारोबारियों ने अदालतों में साबित भी कर दिया कि उन्हें ये प्रोजेक्ट सरकार की खामियों की वजह से छोड़ने पड़ रहे हैं। यह सब कैसे हुआ ये सब कुछ जांच का मामला हैं लेकिन उदयोगपतियों के खिलाफ जांच नेता लोग करेंगे ऐसा अब होता नहीं हैं। वीरभद्र ,धूमल से लेकर जयराम तक तो हुआ नहीं अब सुक्खू के शासन में उम्मीद करना बेमानी हैं।
नेता और नौकरशाह कटघरे में
अब यहां पर प्रदेश के नए –पुराने नौकरशाह और नेता कटघरे में हैं कि जब अदालतों में कंपनियों की ओर से दलीलें दी जा रही थी तो सरकार की पैरवी करने वाले कानून विद और उनके पीछे उनका सहारा बने नौकरशाह व नेता जिनमें नए पुराने तमाम मुख्यमंत्री व बिजली मंत्री शामिल हैं वो क्या कर रहे थे।
ये नौकरशाह व नेता पिछले दो दशकों से निवेश के नाम पर हिमाचल के लोगों को ठगते आ रहे हैं और कारोबारियों को जनता का खजाना खोल के रखा हुआ । करों में तमाम तरह की छूटें दी जा रही और करोड़ों रुपयों की सुविधाएं भी इनकी झोली में डाली जा रही हैं। भ्रष्टाचार की तो संभवत: कोई सीमा ही नहीं हैं।
960 मेगावाट के जंगी थोपन बिजली प्रोजेक्ट की जांच ही बहुत कुछ बता देगी। लेकिन विजीलेंस है कि दुबक के पड़ी हुई हैं।
यही नहीं जो भी नई सरकार सत्ता में आती है वह सबसे पहला काम ही बिजली नीति को बदलने का करती हैं।लोगों से जमीनों कौडि़यों यों की भाव ली जाती है और अगर लोग अपना हक मांगे तो उनके लिए पुलसियां इंतजाम तो हैं ही। चंबा में एक कंपनी ने इसी बात पर अदालत(आर्बिट्रेटर) के जरिए मुआवजा हासिल कर लिया कि उसका कामकाज आंदोलनकारियों की वजह से बंद रहा।
नौकरशाहों व नेताओं की पहचान जरूरी
लेकिन अब समय आ गया है कि उन नौकरशाहों व नेताओं की पहचान उजागर हो जिन्होंने हिमाचल के हितों को बेच डाला हैं। ये सात सौ करोड़ रुपए तो महज ट्रेलर है यानी वो रकम है जिसे इन कंपनियों या उदयोगपतियों नेआर्टिबिट्रेशन और अदालतों में जीत लिया हैं। (हालांकि अपील के फैसले अभी होने हैं)लेकिन अपील पहले से हाईकोर्ट ने कई मामलों में साफ कर दिया है कि पहले अदालत में पैसा जमा कराया जाए। अब सुक्खू सरकार पैसा जमा कराने के लिए बगले झांक रही हैं।
मुफत बिजली नहीं हैं खाली खजाने की वजह
याद रहे प्रदेश के नागरिकों के लिए मुफत बिजली देना बिजली बोर्ड या सरकार के खजाने का खाली होने की वजह नहीं हैं। वो तो थोड़ी सी रकम होती हैं।
सरकार का खजाना खाली होने की वजह उदयोगपतियों के लिए सब कुछ छोड़ देना हैं। वो नीतियां है जो जनता के पैसे की झोली उदयोगपतियों की झोली की ओर कर दी गई हैं। मिलीभगत किसकी व किस स्तर पर हैं ये जनता से आखिर कब तक छिपाया जाता रहेगा।
बिजली बोर्ड के कर्मचारियों व पेंशनरों के लिए वेतन के लाले ऐसे ही नहीं पड़े हैं। उनके पीछे के कारणों में जाएंगे तो न जाने क्या –क्या निकलेगा और कितनों के चेहरे बेनकाब होंगे।
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