शिमला। वामपंथी मजदूर संगठन सीटू ने इंदिरा गांधी मेडिकल अस्पताल प्रबंधन और रेनबो सिक्योरिटी एंटरप्राइज पर 46 लाख नहीं एक करोड़ दस लाख रुपए का घपला करने का इल्जामलगाया है और इस मामले की प्रदेश हाईकोर्ट के न्यायाधीश की अध्यक्षता में न्यायिक जांच कराने की मांग की है।
इस घपले के पीछे भाजपा नेता और उनके लाडलों का हाथ होने का संदेह जताया जा रहा है। बताते है कि इस धंधे में पूर्व कांग्रेस नेता के लाडले को आगे किया हुआ है और पीछे अपनी टीम धकेली हुई है। हालांकि सीटू ने किसी नेता का सीधे-सीधे नाम नहीं लिया है लेकिन अंदरखाते कहा जा रहा है कि प्रदेश विवि के बाद अब इंदिरा गांधी मेडिकल अस्पताल में भी आउटसोर्स का धंधा शुरू किया गया
सीटू के राज्यध्यक्ष विजेंद्र मेहरा और सचिव रमाकांत मिश्रा ने यहां आयोजित संवाददाता सम्मेलन में कहा कि इन तमाम अनियमितताओं की न्यायिक जांच कर दोषियों सजा दी जाए।
उन्होंने कहा कि तीन करोड़ के ठेके में एक करोड़ रुपए से ज्यादा घपला कर दिया गया है। इस मामले की जांच के लिए हाईकोर्ट के मुख्यन्यायाधीश को जांच की मांग को लेकर सीटू की ओर से चिटठी भी लिखी जा रही है। मेहरा ने सवाल उठाए कि 187 सुरक्षा कर्मियों की निर्धारित संख्या में से 50 कम सुरक्षा कर्मियों का एक का 48 लाख रुपए ,ईएसआई के मेडिकल फंड का 12 लाख रुपये ,ईपीएफ का साढ़े
21 लाख रुपये ,सुरक्षा कर्मियों की छुट्टियों के 15 लाख रुपये किसके खाते में चले गए। इसके अलावा सबसे कम अनुभव,योग्यता व गुणवत्ता के बावजूद रेनबो कम्पनी को ठेका कैसे मिला। व इतनी सारी अनियमितताओं के बावजूद रेनबो कम्पनी को एक साल के बाद ठेके के अवधि खत्म होने के बावजूद अवधि विस्तार कैसे और क्यों दी गयी।
उन्होंने कहा कि हिमाचल जोन के ईएसआई राज्य निदेशक की ओर से रेनबो कम्पनी पर ईएसआई के लाखों रुपये के गबन की रिपोर्ट देने के बावजूद रेनबो कम्पनी आईजीएमसी में कैसे अपना कार्य जारी रखे हुए है। इस पूरे मामले में घोटालों का सूत्रधार कौन है। टेंडर वितरण के समय बिना लाइसेंस के रेनबो कम्पनी को ठेका कैसे व किन नियमों के तहत दिया गया। इस कम्पनी का श्रम विभाग में पंजीकरण व लाइसेंस ठेका मिलने के लगभग एक साल बाद अगस्त 2019 में बना जो नियमों के पूरी तरह विपरीत था।
उन्होंने यह भी सवाल उठाया कि ठेके के आवंटन के समय जमा की जाने वाली 26 लाख रुपए की राशि या मार्जिन मनी जमा न होने के बावजूद भी यह ठेका रेनबो कम्पनी को क्यों दिया गया। रेनबो कम्पनी ने कॉन्ट्रैक्ट की शर्तों के अनुसार आज तक मजदूरों की हाजिरी के लिए बायोमेट्रिक क्यों नहीं लगाए।
इसके अलावा ठेके की शर्तों के अनुसार सुपरवाइजर के चार पद सृजित थे व जिनका वेतन 40 हजार रुपए तय था। इसी तरह मुख्य सुरक्षा अधिकारी का वेतन 50 हजार रुपये तय था। उन्हें केवल 18 से 23 हजार रुपये वेतन देकर इन पांच लोगों के वेतन से हर साल लगभग 14 लाख रुपये का घोटाला किया जा रहा है,उस पर प्रबंधन क्यों खामोश है।
आईजीएमसी की रेड क्रॉस बिल्डिंग जोकि असुरक्षित घोषित की जा चुकी है उसमें रेनबो कम्पनी को कमरे देने की मेहरबानी के पीछे क्या मुख्य कारण हैं। अगर भविष्य में यह बिल्डिंग अचानक गिर जाए व किसी की मौत हो जाये तो क्या उसकी जिम्मेवारी आइजीएमसी प्रबंधन व रेनबो कम्पनी लेगी। कहीं असुरक्षित घोषित किये गए रेड क्रॉस भवन के इन कमरों को अनैतिकता के कार्यों के लिए तो नहीं इस्तेमाल किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि इन सभी घोटालों व अनियमितताओं के बावजूद भी रेनबो कम्पनी का ठेका क्यों बरकरार है।
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