शिमला। भाजपा की ओर पैरवी कर रहे वकील की सुक्खू सरकार की ओर से नियुक्त किए गए छह मुख्य संसदीय सचिवों को विधायकी से भी बाहर करने की तमाम दलीलों के बावजूद सुप्रीम कोर्ट ने इन छह विधायकों की विधायकी फिलहाल अगले आदेश तक बहाल रखी हैं। लेकिन सीपीएस की कुर्सी बहाल नहीं की।
13 नवंबर को प्रदेश हाईकोर्ट की जस्टिस विवेक सिंह ठाकुर और जस्टिस बिपिन चंदर नेगी की खंडपीठ ने इन छह मुख्य संसदीय सचिवों को की नियुक्ति को असंवैधनिक करार दे दिया था। इसके अलावा इन्हें आफिस आफ प्राफिट के तहत भी ला दिया था। ऐसे में इन सभी मुख्य संसदीय सचिवों की विधायकी पर भी खतरा मंडरा गया था।
इस फैसले को प्रदेश सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में तुरंत चुनौती दे दी थी।आज मामले की सुनवाई प्रधान न्यायाधीश जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस संजय कुमार की पीठ में हुई। सरकार की ओर से कपिल सिब्बल ने दलीलें रखी और कहा कि विधायकी से अयोग्य ठहराए जाने के मुददे को प्रदेश हाईकोर्ट ने जजमेंट में डिस्कस ही नहीं किया है। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने आगे बढ़ने से रोक लगा दी व इन संसदीय सचिवों की विधायकी फिलहाल बच गई हैं।
उधर, भाजपा की ओर से वरिष्ठ वकील मनिंदर सिंह ने जोरदार दलीलें रखी व सुप्रीम कोर्ट की पहलें की जजमेंटों का हवाला भी दिया। उन्होंने कहा कि ये अयोग्य ठहराए जाने चाहिए। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस बिंदु पर उनकी दलीलों को दरकिनार करते हुए नोटिस जारी कर सभी पक्षों से जवाब मांग लिया है।
अब मामले की अगली सुनवाई 20 जनवरी को होंगी । पीठ ने इस मामले को पहले से चल रही इस तरह की याचिकाओं के साथ जोड़ दिया । फिलहाल सुक्खू सरकार के इन छह मुख्य संसदीय सचिवों की विधायकी पर संकट 20 जनवरी तक टल गया है।
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