शिमला। प्रदेश हाईकोर्ट ने जयराम सरकार को पूर्व की वीरभद्र सिंह सरकार में 2006 में नीदरलैंड की कंपनी ब्रेकल एनवी को किन्नौर जिला में आवंटित किए 960 मेगावाट के जंगी थोपन पन बिजली परियोजना के लिए अदाणी पावर लिमिटेड की ओर से 2007-08 में अपफ्रंट मनी के जमा कराए 280 करोड़ रुपयों को दो महीने के भीतर अदाणी पावर को लौटाने के आदेश जारी किए है। हाईकोर्ट की एकल पीठ ने साथ ही कहा कि अगर दो महीने के भीतर इस रकम को नहीं लौटाया गया तो जयराम सरकार को इस रकम के साथ-साथ जब तक इस रकम को जारी करने तक 9 फीसद ब्याज भी चुकाना होगा।
हाईकोर्ट के न्यायाधीश न्यायामूर्ति संदीप शर्मा ने अदाणी पावर की याचिका को मंजूर करते हुए अपने आदेश में कहा है कि 30 नवंबर 2017 को तत्कालीन मंत्रिमंडल की ओर से अपफ्रंट मनी को अदाणी पावर को न लौटाने के लिए फैसले और 7 दिसंबर 2017 को इस बावत अदाणी पावर को भेजे गए संवाद रदद किया जाता है।
अदालत का यह आदेश इस चुनावी साल में जयराम सरकार के लिए एक बड़ा झटका है। जयराम सरकार पर इल्जाम ही यह है कि सरकार ने इस मामले की पैरवी मजबूत तरीके से नहीं की गई।
पूर्व की वीरभद्र सिंह सरकार ने इस रकम को अदाणी पावर को लौटाने के लिए चार सितंबर 2015 को मंत्रिमंडल की बैठक में फैसला लिया था। लेकिन वीरभद्र सिंह सरकार ने दिसंबर 2017 में जब प्रदेश में आचार संहिता लगी थी तो इस फैसले को वापस ले लिया था।
वीरभद्र सिंह ने सरकार नौ हजार करोड़ रुपए की परियोजना को 2007 को ब्रेकल को जिस अप फ्रंट मनी की शर्त पर आवंटित किया था उन्हीं शर्तों पर छह साल बाद अंबाणी समूह की रिलांयस इंफ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड को आवंटित कर दिया । शर्त यह रखी कि उसे सुप्रीम कोर्ट से याचिका वापस लेनी होगी । साथ ही यह फैसला भी लिया कि जो अपफ्रंट मनी रिलांयस की ओर से जमा कराया जाएगा उस में से अदाणी समूह की रकम को लौटा दिया जाएगा। रिलायंस इंफ्रास्ट्राक्चर ने इस शर्त को मान लिया था और सुप्रीम कोर्ट से रिलायंस इंफ्रास्ट्रक्चर ने याचिका भी वापस ले ली । लेकिन बाद में रिलायंस इंफ्रास्ट्रक्चर ने इस परियोजना को लेने से हाथ पीछे खींच लिए थे।
सुनवाई के दौरान सरकार ने अदालत में दलील दी कि सरकारने अदाणी समूह से कभी अप फ्रंट मनी लिया ही नहीं । अदालत ने कहा कि लेकिन दस्तावेजों से यह साफ हो जाता है कि 280 करोड़ रुपए की यह रकम अदाणी समूह की कंपनियों से ली गई है और यह सब कुछ सरकार के हमेशा जानकारी में रहा है।
एकल पीठ ने कहा कि अदाणी समूह व सरकार के बीच कोई साझेदारी नहीं है यह प्रत्यक्ष तौर सही लगता है कि लेकिन रेकार्ड पर उपलब्ध सामाग्री के मुताबिक पहले ही दिन से सरकार ने अदाणी समूह को ब्रेकल कंपनी का हिस्सेदार मान लिया है।
अगर सब कुछ दरकिनार कर भी दिया जाए तो जब चार सितंबर 2015 को तत्कालीन मंत्रिमंडल ने अप फ्रंट मनी को वापस देने का फैसला ले ही लिया था इस फैसले को वापस लेने बारे सात दिंसबर 2017 को अदाणी समूूह को संदेश देना सही नहीं है। वह भी तब जब मंत्रिमंडल के फैसले की समीक्षा करने के लिए किन्हीं परिस्थितियों और कारणों का हवाला नहीं दिया गया है।
इस संदेश में कहा गया है कि इस रकम को न लौटाने के लिए दिसंबर 2017 में कहा गया कि कानूनी जटिलताओं और ठेके की पेचिदगियों का हवाला दिया था लेकिन कानूनी जटिलताओं और ठेके की पेचिदगियों को लेकर कोई व्याख्या नहीं की गई जबकि महाधिवक्ता भी इस बिंदु परअदालत में कुछ साफ नहीं कर पाएं।
अदालत ने कहा कि इस रकम को अदाणी समूह को लौटाने से अगर किसी को तकलीफ होती तो वह ब्रेकल कंपनी थी। लेकिन उसने पहले ही लिख कर दे दिया था कि अदाणी को इस रकम लौटाने पर उसे कोई आपति नहीं है। ऐसे में कानूनी जटिलताओं और ठेके की पेचिदगियां क्या है यह समझ से परे हैं। अदालत ने कहा कि सरकार ने इस परियोजना को एसजेवीएनएल को आवंटित कर दिया है जबकि अप फ्रंट नहीं लिया जा रहा है। ऐसे में सरकार को कोई नुकसान नहीं हो रहा है।
यही नहीं अदालत ने यह भी कहा है कि जब ब्रेकल को यह परियोजना आवंटित की गई थी तब सरकारी विभागों ने तमाम दस्तावेजों की पड़ताल की थी। ऐसे में ब्रेकल को ही हरेक खामी के लिए जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है।
यह है मामला
दिसंबर 2006 में इस परियोजना को तत्कालीन वीरभद्र सिंह सरकार ने नीदरलैंड की कंपनी ब्रेकल को आवंटित कर दिया था। लेकिन ब्रेकल तय समय के भीतर अप फ्रंट मनी जमा नहीं करा पाया। इस पर इस परियोजना को लेने के लिए दूसरे नंबर पर रिलायंस इंफ्रास्ट्रक्चर ने आपति जता दी।
बाद में मामला अदालत में चला गया और इस बीच प्रदेश में धूमल सरकार सता में आ गइ। सरकार ने इस आवंटन को लेकर जांच करा दी । जांच में पाया गया कि ब्रेकल ने जो कंपनी के साझेदारियों को लेकर जो जानकारी दी है वह जाली है। लेकिन बावजूद धूमल सरकार ने इस परियोजना को ब्रेकल के पास ही रहने दिया। इस पर रिलायंस ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटटखटा दिया। हाईकोर्ट ने 2009 में ब्रेकल को आवंटन के धूमल सरकार के फैसले को निरस्त कर दिया।
इसके बाद अदाणी व अबांणी दोनों सुप्रीम कोर्ट चले गए। 2015 में वीरभद्र सिंह सरकार ने इस परियोजना को रिलायंस को देने का फैसला लिया और रिलायंस से वसूली जाने वाली अपफ्रंट मनी की रकम में से अदाणी समूह को लौटाने का फैसला भी लिया। लेकिन रिलायंस ने बाद में परियोजना लेने से ही इंकार कर दिया। वीरभद्र सिंह सरकार ने दिसंबर 2017 में अदाणी को जानकारी दी कि वह उसे अप फ्रंट मनी लौटाने के फैसले को वापस लेती है।
इसके बाद अदाणी पावर ने 2019 में हाईकोर्ट का दरवाजा खटाखटा दिया। इस बीच जयराम मंत्रिमंडल ने भी इस रकम को लौटाने से मना कर दिया लेकिन उसने भी यह नहीं साफ किया कि वह क्यों ने नहीं लौटाना चाहती है। अदालत ने भी अपने फैसले में यही मुददा उठाया है कि सरकार यह बताने की सिथति में नहीं कि वह कानून पेचिदगियां क्या जिसका सामना सरकार को करना पड़ेगा।
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