राजेश शर्मा की कलम से
दिल्ली सरकार को जिस तरह से आड ईवन के प्रयोग के लिए मजबूर होना पड़ा,उसने पूरे देश को प्रदूषण के खतरे से आगाह किया है। आज वाहनों की तादाद बढ़ती जा रही है नतीजतन देश के अधिकांश शहर धूंए की धुंध मे अपना अस्तित्व खतरे में डाल रहे हैं।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के एक सर्वे के मुताबिक आज दुनिया के 25सबसे ज्यादा प्रदूषित शहरों में भारत के 13 शहर शामिल हैं। ये बैचेन करने वाले हैं व इनमें देश की राजधानी दिल्ली सबसे उपर है।
मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक जहरीली हवा के कारण हर साल 55 लाख लोग असमय काल के ग्रास हो रहे हैं। विश्व की तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था चीन और भारत में ही इनमें से आधे से ज्यादा लोग जान गंवाते हैं। भारत,चीन, अमेरिका और कनाडा के शोधकर्ताओं ने अमेरिकन एसोसिएशन फार द एडवांसमेंट आफ साइंस (एएएएस) की वार्षिक बैठक में जो रिपोर्ट रखी है, उससे बहुत ही खौफनाक तस्वीर उभरती है । ऊर्जा एवं औधोगिक इकाइयों से निकलने वाले महीन कण कोयले की राख और वाहनों का धुआं हवा को जहरीला बना रहा है । नतीजतन वायु प्रदूषण मौत की चौथी सबसे बड़ी वजह बन गया है । केवल उच्च रक्तचाप, खराब खानपान व सिगरेट ही इससे अधिक जान लेते है ।
भारत और चीन की स्थिति बेहद खराब है । वायु प्रदूषण की वजह से होने वाली मौत की 55 फीसदी घटनाएं इन्हीं दो देशों में घटती है। 2013 में चीन में करीब 16 लाख और भारत में 14 लाख लोग वायु की खराब गुणवता की वजह से मरे थे। चीन में कोयला, वायु प्रदूषण का सबसे बड़ा कारक है। कोयले के कारण बाहर होने वाले प्रदूषण से 2013 में 3.66 लाख जानें ली थी। यदि इस समस्या की ओर ध्यान नहीं दिया गया तो 2030 तक यह आंकड़ा बढ़कर 13 लाख तक हो सकता है। दूसरी ओर भारत में खाना बनाने के लिए लकड़ी, गोबर के उपले तथा दूसरी आर्गेनिक चीजों का इस्तेमाल हवा को घुटन भरा बना रहा है। रिपोर्ट में कहा गया है कि वर्तमान में वायु प्रदूषण को कम करने के लिए किए जा रहे सारे प्रयास नाकाफी हैं। यदि इससे होने वाली मौतों की संख्या को बढ़ने से रोकना है तो तत्काल कदम उठाने की जरुरत है। रिपोर्ट में भारी जनसंख्या वाले एशियाई देशों को खासतौर पर चेतावनी दी गई है कि अगर वायु की गुणवता सुधारने के लिए तुरंत उपाय नहीं शुरु किए गए तो अगले 20 सालों में समस्या और विकराल हो जाएगी । ब्रिटिश कोलंबिया के माइकल ब्राउर के अनुसार भारत, बांग्लादेश, और पाकिस्तान में स्थिति बदतर हो रही है। चीन वायु प्रदूषण पर काबू कर सकता है लेकिन वहां के हालात पहले ही खराब हैं।
आज वायुमंडल को क्षति पहुंचाने मे जितना योगदान मोटर-गाड़ियों का है उतना ही योगदान कारखानों और अन्य चीजों का भी है। इस बात मे कोई अतिश्योक्ति नही कि वाहनों से होने वाले प्रदूषण को रोकने के लिए कार्य किए जा रहे है। उदाहरण के लिए राजधानी दिल्ली को ही ले लीजिए जहां हाल ही मे सम-विषम फार्मुले का पहला चरण सफलतापूर्वक पार कर लिया गया है. जिसके कारण 88 लाख वाहनों में से 44 लाख वाहन सड़कों से हट गए, जिससे उत्सर्जन मे 50 फीसदी कमी आई। इसे देखकर अन्य शहर भी इसे अपनाने पर विचार कर रहे है लेकिन सिर्फ इससे प्रदूषण खत्म हो जाएगा यह सोचना गलत है, यह तो बस शुरुआत भर है।
एक और बात जिसे हम हमेशा नजरअंदाज करते आये हैं, देश मे बढ़ रही दिन-प्रतिदिन कूड़े की समस्या जिसका हल आज तक कोई निकाल नही पाया है। सबसे बड़ी हैरानी की बात तो यह है कि जब हम कभी ट्रेन से सफर करते है तो शहर आने का अंदेशा हमे कूड़े के ढेर से पता चलता है क्योंकि शहर का सारा कूड़ा शहर से बाहर फेंक दिया जाता है और शहर में जगह-जगह पसरे कूड़े के ढेर जो मिट्टी में मिलकर जमीन की तरह समतल नही हो जाता उसे जलाया जाता है। इसके बावजूद शहर के उच्च पदों पर आसीन अधिकारी कहते हैं कि उनका शहर साफ है। जिस जगह कूड़ा फेंका और जलाया जा रहा है उसका आसपास के क्षेत्रों पर क्या असर पड़ रहा है इससे उन्हें कोई फर्क नही पड़ता और न ही इसके बारे मे कोई सोचता है।
अगर समय रहते हमने इस समस्या को नही निपटाया तो आने वाले समय मे यह मानव जाति के लिए और विनाशकारी साबित हो सकता है। इसलिए सरकार को चाहिए कि जो कानून इससे संबधित बनाये गए है उनमें संशोधन करे, और समाज के हर तबके को साथ लेकर कार्य करे ।
राजेश शर्मा हिमाचल प्रदेश सेंट्रल यूनिवर्सिटी शाहपुर,कांगड़ा में पत्रकारिता विभाग में अध्ययनरत है।
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