शिमला। आगामी लोकसभा चुनावों के लिए धूमल-शांता के मिशन 2018 की वजह से कांगड़ा संसदीय हलके से भाजपा प्रत्याशी का फैसला नहीं हो पा रहा है। जबकि तीन सीटों पर एक अरसा पहले प्रत्याशियों के नाम तय हो गए है।इनकी औपचारिक घोषणा ही की जानी बाकी है। इनमें से शिमला से वीरेंद्र कश्यप, हमीरपुर से अनुराग ठाकुर व मंडी से जयराम ठाकुर चुनाव मैदान में होंगे।
कांगड़ा से पार्टी शांता कुमार को चुनाव मैदान में उतारना चाहती है। पार्टी में उनके धुर विरोधी प्रेम कुमार धूमल भी यही चाहते है। लेकिन रणनीतिक तौर पर शांता कुमार लोकसभा चुनाव को लड़ने से इंकार कर रहे है। मौजूदा समय में वह राज्यसभा सदस्य है और उनका कार्याकाल मार्च 2014 में समाप्त हो रहा है। पार्टी सूत्रों के मुताबिक उनकी निगाह 2018 के विधानसभा चुनाव पर है। वह प्रदेश का मुख्यमंत्री बनना चाहते है। उनकी मंशा को प्रेम कुमार धूमल भी भांप गए है। बीते दिनों धूमल की शांता से गुफ्तगू भी हुई है।
शांता का भाजपा के प्रधानमंत्री पद के प्रत्याशी नरेंद्र मोदी से भी सुलह हुई है। शांता व मोदी एक जमाने में एक दूसरे के धूर विरोधी रहे है।1998 में प्रदेश में धूमल सुखराम की गठबंधन सरकार बनाने में मोदी का बड़ा दखल रहा था। जबकि शांता कुमार नहीं चाहते थे कि सुखराम की हिमाचल विकास कांग्रेस से गठबंधन कर सरकार बनाई जाए। लेकिन तब धूमल मुख्यमंत्री बन गए और शांता धड़े की ओर से विद्रोह करने के बावजूद ये सरकार पांच साल तक चली। ऐसे में मोदी और शांता के बीच हुई सुलह के कई मायने है। लेकिन इस सुलह से धूमल को कठिनाई हो सकती है।
जानकार बताते है कि पार्टी इसी वजह से भाजपा से निलंबित अपने सांसद राजन सुशांत की पार्टी में वापसी नहीं कर रही है।पार्टी अध्यक्ष सतपाल सत्ती साफ कर चुके है कि जब तक वो पार्टी अध्यक्ष है तब तक सुशांत को पार्टी में नहीं आने दिया जाएगा।कई दिनों से शांता और सुशांत की दोस्ती गाढ़ी हुई है।शांता पार्टी में सुशांत की वापसी चाहते है और वही चुनाव लड़े ये भी चाहते है। जबकि धूमल कतई नहीं चाहते कि सुशांत लोकसभा के चुनाव लड़े ।अगर सुशांत भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ते है तो शांता उन्हें जिताने के लिए पूरा जोर लगा देंगे।अगर सुशांत प्रदेश में रहते है तो वह भी शांता के मिशन 2018 में रोडा डालने का काम कर सकते है।इसलिए उन्हें सोच समझकर दिल्ली का रास्ता दिखाने की रणनीति है। निलंबन की मार झेल रहे सुशांत के लिए भी इससे नफा ही है।
कांगड़ा से कांग्रेस का कोई प्रत्याशी अभी फाइनल नहीं हुआ है। जरूरत पड़ी तो हिलोपा का साथ भी लिया जा सकता है।हिलोपा के दूलोराम मूल रूप से शांता के ही आदमी है। यूं भी हिलोपा को वापस भाजपा में आना ही है।शांता ने खुद भाजपा में रहकर भाजपा के दो टुकड़े करवा दिए ये अपने आप में बड़ी कामयाबी है।वो ऐसा 1998 से लेकर 2003 में करने की कोशिश कर चुके थे। लेकिन तब कामयाब नहीं हुए थे। अब उनकी रणनीति कामयाब हुई है।वैसे भी शांता धड़ा ये मानकार चल रहा है कि धूमल युग अब अवसान की ओर है। खेल खत्म हो हो गया है। भाजपा के नेताकेशांता पर आरोप रहे है कि जिसने भी उनका साथ दिया उन्होंने सबसे पहले ही उसी कारे चित किया। अब यही ख्याल धूमल को लेकर भी पार्टी के नेताओं का है।
मार्च 2014 के बाद शांता कुमार पूरी तरह से फ्री हो जाएंगे और वह लोकसभा के चुनाव लड़ाएंगे और उसके बाद 2018 के लिए जमीन तैयार करेंगे। धूमल,उनके बेटों और वीरभद्र सिंह के बीच इन दिनों नूरा कुश्ती चली है। अगर कोई डील नहीं हुई तो ये नूराकुश्ती आगे बढ़ेगी।शांता इन दोनों परिवारों के बीच चल रही जंग को लेकर अब तक मौन रहे है ।उन्होंने तभी जुबान खोली जब विजीलेंस ने उनके लाडले व पूर्व मंत्री किशन कपूर के खिलाफ एफआईआर दर्ज की।धूमल परिवार के खिलाफ होने वाले सरकार के हमलों के जवाब में आगे भी शायद ही जुबान खोले।
उधर कांग्रेस में अभी तक कुछ भी फाइनल नहीं है। शिमला से कई प्रत्याशियों के नाम गिनाए जा रहे है। हमीरपुर में स्थिति साफ नहीं है। अनुराग की वजह से ये सीट बेहद महत्वपूर्ण है और कांग्रेस हाईकमान खासतौर पर इस सीट पर फोक्स कर रही है। कांगड़ा से भी किस को टिकट मिलेगा ये तय नहीं हो पा रहा है।हाईकमान से वीरभद्र को तरजीह मिलेगी या पार्टी को ये भी साफ नहीं है। ऐसे में कांगड़ा को छोड़ कर भाजपा काफी आगे निकल चुकी है।
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