शिमला।बहुद्देशी परियोजनाएं एवं ऊर्जा मंत्री सुजान सिंह पठानिया ने साई कोठी परियोजना के आवंटन को लेकर को झूठे एवं शरारतपूर्ण करार दिया है। उन्होंने कहा कि ऐसी गलत धारणा बनाई गई है कि साई कोठी परियोजना के वर्ष 2007 में पुर्नावंटन में अनियमितताएं हुईं और दस्तावेज़ों से छेड़छाड़ की गई है, जो कि पूरी तरह झूठ है और राजनीतिक उद्देश्यों की पूर्ति के लिए मामले को सनसनीखेज बनाकर व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह को बदनाम करने के लिए दस्तावेज को तोड़-मरोड़ कर दुष्प्रचार करने का प्रयास है।
उन्होंने कहा कि भाजपा नेता साई कोठी जल विद्युत परियोजना के बारे में महत्वपूर्ण तथ्यों को छुपा रहे हैं। उन्होंने कहा कि वास्तविक स्थिति यह है कि कांग्रेस सरकार ने 12 नवम्बर, 2013 से परियोजना के आवंटन को रद्द किया, जबकि प्रेम कुमार धूमल के नेतृत्व में भाजपा सरकार ने 14 जून, 2002 को मैसर्ज वेंचर एनर्जी एंड टेक्नोलॉजी लिमिटेड को यह परियोजना आवंटित की थी।
पठानिया ने कहा कि मार्च, 2003 में प्रदेश में कांग्रेस सरकार बनी। कांग्रेस सरकार ने कंपनी द्वारा तथ्यों की अवहेलना व गलत तरीके से तथ्यों को पेश करने के दृष्टिगत 20 सितम्बर, 2004 को मैसर्ज वेंचर एनर्जी एंड टेक्नोलॉजी लिमिटेड के साथ परियोजना के समझौता ज्ञापन को निलंबित किया। कम्पनी ने वीरभद्र सिंह के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार को कई बार परियोजना की पुनर्बहाली के लिए सम्पर्क किया। कांग्रेस सरकार ने हर बार परियोजना की पुर्नबहाली के लिए कंपनी के आवेदन को खारिज किया। कंपनी अदालत गई और अदालत ने कंपनी को फोरम पर जाने का अधिकार दिया ।
उन्होंने कहा कि हिमाचल प्रदेश राज्य विद्युत बोर्ड ने मैसर्ज वेंचर एनर्जी एंड टेक्नोलॉजी को साई कोठी परियोजना की पुनर्बहाली की सिफारिश की व साफ किया कि समझौत ज्ञापन को समाप्त करने के सम्बन्ध में निर्णय की समीक्षा राज्य के हित में होगी। एचपीआईडीबी ने भी परियोजना की पुनर्बहाली का समर्थन किया।
उन्होंने कहा कि के के वैद्य ने बोर्ड के तत्कालीन मुख्य अभियन्ता के रूप में सरकार को हिमाचल प्रदेश राज्य विद्युत बोर्ड की सिफारिश के बारे में जानकारी दी। उनके नाम को इस मामले में घसीटकर अनावश्यक तौर पर तोड़ा-मरोड़ा जा रहा है।
बहुद्देशीय परियोजना एवं ऊर्जा मंत्री ने कहा कि मंत्रिमण्डल ने अप्रैल, 2007 में परियोजना को मैसर्ज वेंचर एंड टेक्नोलॉजी लिमिटेड के पक्ष में पुनर्बहाल करने का निर्णय लिया। कम्पनी को सभी आवश्यक स्वीकृतियां प्राप्त करने तथा 16 जून, 2009 तक कार्य आरम्भ करने के लिए दो वर्षों का समय दिया गया।
पठानिया ने कहा कि प्रेम कुमार धूमल, जो उस समय बहुद्देशीय परियोजना एवं ऊर्जा मंत्री भी थे, के नेतृत्व में भाजपा सरकार ने 16 सितम्बर, 2009 से 31 मार्च, 2013 तक कम्पनी को 45 माह एवं 15 दिनों की अवधि के लिए चार बार विस्तार दिया। धूमल के नेतृत्व में भाजपा सरकार वर्ष 2008 से 2012 तक भाजपा कार्यकाल के समूचे पांच वर्ष के लिए इस परियोजना को लगातार विस्तार देती रही व इस तिथि के पश्चात भी 31 मार्च, 2013 तक विस्तार दिया गया। उन्हें यदि 2007 की परियोजना के पुनर्बहाली में कोई विसंगति मिलती तो उनके पास इस परियोजना को रद्द करने के लिए पूरे पांच वर्ष थे। जबकि वे इस परियोजना को बिना अदायगी या विस्तार शुल्क के विस्तार व लाभों की बौछार करते रहे।
बहुद्देशीय परियोजनाएं एवं ऊर्जा मंत्री ने कहा कि प्रदेश सरकार ने चार सितम्बर, 2013 को मंत्रिमण्डल की बैठक में 10 माह की अवधि के लिए विस्तार स्वीकृत करने का निर्णय लिया। इसके लिए कम्पनी पर सभी वैधानिक व गैर वैधानिक स्वीकृतियां प्राप्त करने व निर्माण कार्य आरम्भ करने के लिए 20 हजार रुपये प्रति मैगावाट प्रतिमाह की दर से विस्तार शुल्क लगाया गया।
उन्होंने कहा कि कम्पनी से कोई प्रतिक्रिया न मिलने के अलावा निर्धारित अवधि में देय राशि जमा न करवाने पर कांग्रेस सरकार ने 12 नवम्बर, 2013 से परियोजना आवंटन को रद्द कर दिया।
उन्होंने कहा कि भाजप नेता अनावश्यक तौर पर 2007 में साई कोठी परियोजना की पुनर्बहाली को वर्ष 2011 में वीरभद्र सिंह द्वारा लिए गए ऋण, जब वह प्रदेश में ही नहीं थे और हिमाचल प्रदेश में भाजपा सरकार थी, से जोड़ने की कोशिश कर रहे हैं। वीरभद्र सिंह केन्द्र में मंत्री थे तथा उस समय किसने यह सोचा था कि वह राज्य की राजनीति में वापिस लौटेंगे। उन्होंने प्रश्न किया कि वह कैसे कम्पनी को लाभ पहुंचा सकते हैं।
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