शिमला। मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने 12 दिसंबर 2023 को अपने मंत्रिमंडल में दो मंत्रियों राजेश धर्माणी और यादविंदर गोमा को शामिल तो कर लिया है लेकिन आज 1 जनवरी 2024 को 20 दिनों के बाद भी उन्हें पोर्टफोलियों नहीं दिए हैं। संविधान में बिना पोर्टफोलियों के मंत्रियों का कोई प्रावधान ही नहीं हैं। ऐसा कोई अनुच्छेद नहीं है जिसके तहत बिना पोर्टफोलियों के मंत्री बनाए जा सकते हो।
कानूनविदों के मुताबिक भरतीय संविधान इस तरह की इजाजत नहीं देता हैं। इसके अलावा प्रदेश राज्य सरकार के अपने रूल्स आफ बिजनेस हैं। उनमें भी बिना पोर्ट फोलियों के मंत्रियों का कहीं कोई प्रावधान नहीं हैं।ऐसे में सुक्खू ने कहां के संविधान के तहत बिना पोर्टफोलियों में मंत्री प्रदेश में घुमा रखे हैं। अगर मुख्यमंत्री के पास ऐसी कोई शक्तियां हैं तो वह शक्तियां किस कानून के तहत उन्हें मिली हैं इसका खुलासा तो होना ही चाहिए।
हालांकि इस मसले पर अब तक राजभवन को संज्ञान ले लेना चाहिए था। लेकिन राजभवन ने अभी तक इस बावत कोई संज्ञान ही नहीं लिया हैं। राज्यपाल सरकार के मुखिया है ।बीते दिनों तमिलनाडु में ऐसा ही एक मामला सामने आया था। वहां पर एक मंत्री जेल चला गया । वहां की सरकार ने उसका विभाग लेकर किसी और को दे दिया लेकिन उसका पोर्टफोलियों मंत्री का ही रखा।
राज्यपाल ने इस बावत सवाल उठा लिया कि क्या बिना पोर्टफोलयों के मंत्री रखने के लिए संविधान में कोई प्रावधान हैं। वहां पर यह विवाद खड़ा हो गया ।
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बड़ी मसला यह है कि सुक्खू खुद विधि में स्नातक हैं। उन्हें निश्चित तौर पर मुख्यमंत्री के कर्तव्यों और शक्तियों का भान तो होगा ही। इसके अलावा उन्हें संविधान की भावना का भी पता होगा ही। भारतीय संविधान में कानून के अलावा परंपराओं को वहन करने का चलन है। लेकिन देश में बिना पोर्टफोलियों के मंत्री बनाने की परंपरा भी नहीं हैं।
सुक्खू सरकार में दो मंत्री गोमा व धर्माणी मंत्री तो बन गए हैं लेकिन 12 दिसंबर 2023 से लेकर 1 जनवरी 2024 तक उन्होंने क्या काम किया हैं। वह मंत्रिमंडल की बैठक में शामिल हो रहे है। मंत्रिमंडल में किस विभाग की हैसियत से बैठ रहे हैं। इसके अलावा दोनों मंत्री सदन में भी बतौर मंत्री शामिल रहे हैं।
अब यह बहस का मुददा हो गया है कि जब तमिलनाडू में बिना पोर्टफोलियों के मंत्री के लिए संविधान का मैनडेट नहीं है तो हिमाचल में कैसे हो सकता हैं।
सुक्खू यह नहीं कह सकते कि पोर्टफोलियों देने के लिए आलाकमान से सहमति चाहिए। संविधान में आलाकमान का कहीं कोई जिक्र नहीं है। कोई भी मुख्यमंत्री अपनी शक्तियों और कर्तव्यों को आउटसोर्स नहीं कर सकता है।हालांकि मुख्यमंत्री सुक्खू ने आज इस मसले पर मीडिया की ओर से पूछे सवाल को यह कह कर टाल दिया हो अगर संविधान में ऐसा कहीं कोई प्रावधान हैं तो उन्हें भी बता दें। वह जो भी कह रहे हों लेकिन उन्हें मसले को संजीदता से लेना चाहिए। या फिर प्रदेश की 75 लाख जनता को यह बताना चाहिए कि संविधान के किस अनुच्छेद के तहत बिना पोर्टफोलियों के मंत्री बनाने का प्रावधान हैं।
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