शिमला। प्रदेश उच्च न्यायालय ने शिमला नगर निगम के नाभा वार्ड से कांग्रेस पार्षद रही सिमी नंदा और समरहिल से वामपंथी नेता राजीव ठाकुर की याचिका पर सुनवाई करने के बाद इन दोनों वार्डों के पुनर्सीमांकन के जिला उपायुक्त के आदेशों पर तत्काल प्रभाव रोक लगा दी है। जिला उपायुक्त के इन आदेशों को मंडलायुक्त ने बहाल रखा था।
प्रदेश उच्च न्यायालय की न्यायाधीश न्यायमूर्ति सबीना और न्यायमूर्ति सत्येन वैद्य की खंडपीठ ने आज यह रोक लगाई। अब नगर निगम के चुनावों के और टलने का रास्ता का साफ हो गया है।
पिछले दिनों प्रदेश उच्च न्यायालय ने इन वार्डों की पुनर्सीमांकन को लेकर दायर याचिका पर इस मामले पर याचिकाकर्ता की आपतियों पर दोबारा गौर करने के इस मामले को जिला उपायुक्त को वापस भेज दिया था। लेकिन जिला उपायुक्त ने आपतियों को दरकिनार कर अपना पहले का आदेश बहाल रखा । इस आदेश को मंडलायुक्त के सामने चुनौती दी गई तो मंडलायुक्त ने भी जिला उपायुक्त् के आदेश को बहाल रखा।
सोमवार को सिमी नंदा व ठाकुर ने उच्च न्यायालय में दोबारा से याचिका दायर की थी जिस पर आज मंगलवार को सुनवाई हुई। खंडपीठ ने जिला उपायुक्त के आदेशों पर रोक लगाते हुए सचिव शहरी विकास, जिला उपायुक्त शिमला,मडलायुक्त और राज्य चुनाव आयोग से जवाब तलब किया है और मामले की सुनवाई 16 अगस्त तक स्थगित कर दी है। जाहिर है किअब 16 अगस्त को शिमला नगर निगम के चुनाव नहीं होने है। नगर निगम शिमला का कार्याकाल 18 जून को समाप्त हो चुका है।
सिमी नंदा व राजीव ठाकुर ने इससे पहले उच न्यायालय में दायर याचिका में कहा था कि जिला उपायुक्त याचिकाकर्ता की ओर से उनके सामने रखे असल तथ्यों पर विचार करने में विफल रहे।
अदालत ने पाया था कि जिला उपायुक्त को बराबर आबादी, वार्ड की सघनता और वार्ड एक दूसरे से भौगोलिक तौर पर आपस में मिले होने चाहिए और वार्ड की सीमाएं चिन्हित होनी चाहिए जैसे बिंदुओं पर विचार करना चाहिए था। अदालत ने पाया था कि जिला उपायुक्त इस तथ्य से प्रभावित रहे कि किसी भी मतदान केंद्र की सीमाओं का अतिक्रमण नहीं होना चाहिए। जबकि इनका नियमों में कोई जिक्र नहीं हैं।
अदालत ने तीन जून को अपने आदेश के तहत जिला उपायुक्त शिमला के सीमांकन के आदेशों और मंडलायुक्त की ओर से अपील के तहत बाहल किए जिला उपायुक के आदेशों को निरस्त कर दिया था। अदालत ने नाभा, फागली, टूटीकंडी, समरहिल और बालूगंज वार्डों की पुनर्सीमांकन का मामला दोबारा जिला उपायुक्त को भेज दिया था व निर्देश दिए थे कि वह याचिकाकर्ता की आपतियों पर दोबारा कानून के तहत फैसला करे।
लेकिन उपायुक्त ने अपने 26 जून के आदेश के तहत याचिकाकर्ता की आपतियों को दोबारा खारिज कर दिया और फैसला सुनाया कि पूर्व के आदेश में किसी भी तरह के बदलाव की जरूरत नहीं हैं। इस आदेश के खिलाफ मंडलायुक्त के समक्ष दायर याचिका को मंडलायुक्त ने आठ जुलाई को खारिज कर दिया।.
जिस पर याचिकाकर्ता ने सोमवार को इन दोनेां आदेशों को निरस्त करने की मांग को लेकर याचिका दायर की थी। अब इस मामले में 16 अगस्त को सुनवाई होंगी।
डीसी व मंडलायुक्त की भूमिकाएं सवालों में
प्रदेश उच्च न्यायालय के आदेेशों के बावजूद डीयी शिमला आदित्य नेगी और मंडलायुक्त प्रियतुुमंडलकी ओर से याचिकाकर्ताओं की आपतियों को दोबारा खारिज कर देने और अपने पहले के आदेशों पर अडिग रहने से इन दोनों अधिकारियों की भूमिका व कानूनों कोउलेकर समझ सवालों में आ गई है। इन दोनेां अधिकारियों के इन आदेशों यह साफ हो रहा है कि इनकी कानून की समझ उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों से कही ज्यादा है। ऐसे में इनके ये आदेश उच्च न्यायालय के अपमान से भी कम नहीं हैं। अब यह उच्च्च न्यायालय देखना है कि वह जयराम सरकार की कनिष्ठ नौकरशााही के इस तरह की दंबगई से कैसे निपटती है। जयराम सरकार में तो कोई किसी पूछने वाला ही नहीं है। उधर, एक वरिष्ठ वकील का कहना है कि अगर नौकरशाही इसी तरह उच्च न्यायालय के आदेशों से सलूक करती ही तो प्रदेश श्रीलंका की राह पर कब पहुंच जाए किसी को पता भी नहीं चलेगाा।
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