शिमला। भाजपा आलाकमान ने अनुभवों को दरकिनार कर दिसंबर 2017 में मौजूदा नेता प्रतिपक्ष जयराम ठाकुर मुख्यमंत्री पद पर बिठाया था। 2017 के विधानसभा चुनावों में धूमल सुजानपुर से चुनाव हार गए थे। हालांकि भाजपा आलाकमान उन्हें उतराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर धामी की तरह मुख्यमंत्री बना सकते थे लेकिन भाजपा आलाकमान ने ऐसा नहीं किया। संघ की सवारी पर सवार होकर भाजपा आलाकमान ने धूमल जैसे अनुभवी नेता की जगह जयराम को मुख्यमंत्री बना दिया। जबकि जयराम के पास मंत्री पद का भी दो ढाई साल का ही अनुभव था।
अब बन गए सबसे ज्यादा कर्ज लेने वाले मुख्यमंत्री
प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री डाक्टर यशवंत सिंह परमार से लेकर अब तक जितने भी मुख्यमंत्री हुए हैं उनमें से जयराम ठाकुर सबसे ज्यादा कर्ज लेने वाले मुख्यमंत्री बन गए हैं।विधानसभा के तीन दिवसीय शीतकालीन सत्र के तीसरे व आखिरी दिन आज उप मुख्यमंत्री मुकेश अग्निहोत्री ने सदन में एफआरबीएम एक्ट में संशोधन विधेयक पेश किया। जिसमें उन्होंने खुलासा किया कि प्रदेश का कर्ज बढकर साल के अंत तक 74 हजार 622 करोड तक पहुंच गया हैं। इसमें से जयराम सरकार के पांच सालों में 26 हजार 716 करोड रुपए का कर्ज लिया गया हैं।
यह किसी मुख्यमंत्री की ओर से अब तक लिए गए कर्ज में सबसे ज्यादा कर्ज हैं। मार्च 2017 में पूर्व की वीरभद्र सिंह सरकार प्रदेश पर 48 हजार करोड से कुछ ज्यादा का कर्ज छोड गई थी। तब तत्कालीन मुख्यमंत्री ने वीरभद्र सिंह सरकार पर इल्जाम लगाया था कि कांग्रेस ने प्रदेश को कर्ज के जाल में डूबो दिया हैं। वीरभद्र सिंह सरकार ने 19 हजार करोड के करीब कर्ज लिया था। इस तरह का आंकडा जयराम ने खुद सदन में रखा था। लेकिन उन्होंने खुद कर्ज लेने के तमाम रेकार्ड तोड दिए।
हिमाचल प्रदेश राजकोषीय उतरदायित्व और बजट प्रबंधन अधिनियम के तहत प्रदेश का राजस्व घाटा सकल घरेलू उत्पाद का तीन फीसद से ज्यादा नहीं होना चाहिए। लेकिन जयराम सरकार में मार्च 2022 तक ही राजस्व घाटा सकल घरेलू उत्पाद का छह फीसद तक हो गया हैं। यह अपने आप में भारी वितीय कुप्रबंधन हैं। सदन ने इस राजस्व घाटे को पूरा करने के लिए छह सकल घरेलू उत्पाद का छह फीसद तक कर्ज लेने को मंजूरी प्रदान की। सदन ने इस अधिनियम संशोधन को पारित कर दिया।
इस मौके पर उप मुख्यमंत्री मुकेश अग्निहोत्री ने कहा भी कि विपक्ष इस आंकडे को याद रखे । यह जयराम सरकार के दौरान का कर्ज हैं। संशोधन में मार्च मार्च 2024 के वित साल में कर्ज को सकल घरेलू उत्पाद का 3.5 फीसद और उसके बाद तीन फीसद तक रखने का प्रावधान किया गया हैं। लेकिन यह बेहद कठिन हैं।
वितीय कुप्रबंधन का नतीजा
इस आंकडे ने जयराम सरकार के वितीय कुप्रबंधन की पोल खोल दी हैं। पांच सालों में 26 हजार करोड से ज्यादा का कर्ज अपने आप में घोटाला लग रहा हैं। यह कर्ज कहां परखर्च किया गया इसकी पडताल लाजिमी हो गई हैं। संभवत: सुक्खू सरकार विधानसभा के बजट सत्र में प्रदेश की वितीय स्थिति पर जरूर श्वेत पत्र लाएगी। लेकिन मजेदार यह है कि जयराम सरकार में जिन अधिकारियों के जिम्मे वित का जिम्मा था उन्हें सुक्खू ने मुख्य सचि�ఁव की कुर्सी पर ताजपोशी दे दी है। ऐसे में कैसा श्वेत पत्र आएगा यह देखना दिलचस्प होगा।
आलाकमान न करता गलती तो शायद
आलाकमान अगर अनुभवी नेता धूमल की जगह जयराम को मुख्यमंत्री बनाने की गलती न करता तो शायद तस्वीर कुछ और होती। बेशक धूमल हार गए थे लेकिन उनके अनुभवों को देखते हुए मुख्यमंत्री बना देना चाहिए था। बाद में आलाकमान ने उतराखंड में भी तो ऐसा किया था।
धूमल के पास दो बार वित महकमे को संभालने का अनुभव था। इसके अलावा वह केंद्र से भी कई सौगातें प्रदेश को ले आते व प्रदेश के लिए विशेष पैकेज भी ले आते। वाजपेयी सरकार के दौरान वह ऐसा करने में कामयाब रहे थे। लेकिन जयराम पिछले पांच सालों में केंद्र के सामने प्रदेश के खातिर जुबान खोलने की हिम्मत ही नहीं कर पाए थे। नतीजतन आज प्रदेश बहुत बुरी आर्थिक स्थिति में फंस गया हैं।
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